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नीट पर फैसला नहीं, अगली सुनवाई 11 को

नई दिल्ली। मेडिकल में दाखिले के लिए हुए नीट यूजी की परीक्षा के पेपर लीक और अन्य गड़बड़ियों से जुड़ी 38 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने पेपर लीक के लाभार्थियों की पहचान करने और उनको अलग करने की संभावना के बारे में पूछा। अदालत ने इस मामले की जांच कर रही सीबीआई से एक रिपोर्ट मांगी है और साथ ही नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए में सुधार के लिए बनाई गई कमेटी के बारे में भी रिपोर्ट मांगी है। सर्वोच्च अदालत ने दोबारा परीक्षा आयोजित करने की मांग करने वालों से एक समेकित रिपोर्ट देने को कहा है। अदालत ने बुधवार यानी 10 जुलाई को शाम पांच बजे तक सारी रिपोर्ट जमा करने को कहा है।

गर्मी की छुट्टियों के बाद सोमवार, आठ जुलाई को ही अदालत में कामकाज शुरू हुआ और पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में नीट पेपर लीक मसले पर सवा दो घंटे से ज्यादा समय तक सुनवाई की। अदालत ने एनटीए को पेपर लीक और दूसरी गड़बड़ी से फायदा उठाने वाले परीक्षार्थियों की जानकारी देने और सीबीआई को जांच की अपडेट देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब 11 जुलाई को होगी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यदि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी 2024 के पेपर लीक ने पूरी परीक्षा को प्रभावित किया है और इसके लाभार्थियों को अलग करना संभव नहीं है तो दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देना होगा। हालांकि साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि अगर पेपर लीक  के लाभार्थियों की पहचान करके उनको अलग किया जा सकता है तो इतनी बड़ी संख्या में छात्रों की परीक्षा दोबारा लेने की जरुरत नहीं रहेगी। गौरतलब है कि शिक्षा मंत्रालय और परीक्षा कराने वाली एजेंसी एनटीए दोनों ने हलफनामा देकर पहले ही अदालत से कहा है कि नीट की परीक्षा दोबारा कराने की जरुरत नहीं है।

अदालत ने कहा कि वो जानना चाहती है कि पेपर लीक से कितने लोगों को लाभ हुआ और केंद्र ने उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की। इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। नीट यूजी की परीक्षा को पूरी तरह से दोबारा आयोजित करने या नहीं करने के संबंध में विचार करने के लिए चीफ जस्टिस की बेंच ने एनटीए को पेपर लीक की प्रकृति, लीक होने वाले स्थानों और लीक होने व परीक्षा आयोजित होने के बीच के समय के बारे में अदालत को पूरी जानकारी देने को कहा है। अदालत ने कहा कि कहा कि यदि संभव हो, तो धांधली के लाभार्थियों की पहचान करने के लिए तकनीक और कानून का इस्तेमाल किया जाए, ताकि 23 लाख छात्रों को दोबारा परीक्षा देने की आवश्यकता न पड़े।

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