नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने में बने आपराधिक कानूनों की जगह बने तीन नए कानून, सोमवार यानी एक जुलाई से लागू हो जाएंगे। पुलिस और न्यायिक महकमे के साथ अन्य सरकारी एजेंसियां इन कानूनों को लागू करने की तैयारी में लगी हैं। माना जा रहा है कि इससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव आएंगे और औपनिवेशिक काल के कानूनों का अंत हो जाएगा। विपक्षी पार्टियां इन तीनों कानूनों पर अमल रोकने की मांग कर रही हैं और इसे लेकर सोमवार को संसद में हंगामा देखने को मिल सकता है।
बहरहाल, भारत सरकार ने पिछले साल अंग्रेजों के जमाने के कानूनों- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून को बदल कर उनकी जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून बनाया गया है। हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि ज्यादातर कानून पहले जैसे ही हैं। फिर भी कुछ कानूनों में बदलाव है और सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अनेक अपराध की धाराएं बदल दी गई हैं। पुलिस और वकीलों को इससे मुश्किल होगी।
नए कानूनों से पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने, एसएमएस यानी मोबाइल फोन पर संदेश के जरिए समन भेजने जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और सभी जघन्य अपराधों के वारदात स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं। पहले भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं हैं। नए कानून में कई पुरानी धाराओं को आपस में मिला दिया गया है, जिससे उनकी संख्या कम हो गई है।
नए कानूनों के तहत आपराधिक मामलों में फैसला मुकदमा पूरा होने के 45 दिन के भीतर आएगा और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी और मेडिकल रिपोर्ट सात दिन के भीतर देनी होगी। नए कानूनों में संगठित अपराधों और आतंकवादी गतिविधियों को परिभाषित किया गया है साथ ही राजद्रोह की जगह देशद्रोह कानून लाया गया है। हालांकि पुलिस को ज्यादा अधिकार देने सहित कई धाराओं को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं।