नई दिल्ली। सांसदों और विधायकों को सदन के अंदर नोट लेकर वोट देने के मामले में मिली आपराधिक अभियोजन से छूट के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को सुनवाई शुरू की। असल में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच 1998 में पांच जजों की बेंच के एक फैसले पर विचार कर रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सांसदों को सदन के अंदर किए गए किसी भी काम के लिए आपराधिक अभियोजन से छूट है। इसलिए उन पर मुकदमा नहीं हो सकता है। दोबारा इसी तरह का मामला आने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई का फैसला किया है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल उठाते हुए कहा है- किसी आपराधिक कार्य में भी क्या सदन में विशेषाधिकार का कवच काम करेगा? क्या हमें कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट देनी चाहिए? क्योंकि कानून के दुरुपयोग की आशंका अदालत से सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होती है। उन्होंने कहा- हम सिर्फ इस बेहद महीन मुद्दे पर विचार करेंगे कि जब मामला आपराधिक कृत्य का हो तब भी विशेषाधिकार का संरक्षण मिलेगा या नहीं, क्योंकि कानून और उसके तहत संरक्षण के प्रावधानों का इस्तेमाल राजनीतिक भ्रष्टाचार के लिए नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- घूसखोरी के मुद्दे को थोड़ी देर के लिए भूल भी जाएं तो सवाल हैं। मान लीजिए किसी ने किसी सांसद पर कोई मुकदमा कर दिया कि उसने सदन में किसी अहम मुद्दे पर चुप्पी साध ली। ऐसे में विशेषाधिकार की बात जायज है। जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा- हम संवैधानिक प्रावधान और उसके इस्तेमाल के बीच संतुलन बनाने के नजरिए से इस मामले में सुनवाई कर रहे हैं। दूसरी ओर सरकार इस मामले को खोले जाने के पक्ष में नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।