नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) आज मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography) देखना या उसे डाउनलोड करना पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आता है। सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला द्वारा लिखित फैसला सोमवार को सुनाया जाएगा। इस वर्ष मार्च में, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस (Notice) जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि निजी तौर पर बाल पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के दायरे में नहीं आता है।
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न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश (N. Anand Venkatesh) की पीठ ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने केवल सामग्री डाउनलोड की थी और निजी तौर पर पोर्नोग्राफी देखी थी और इसे न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के लिए प्रसारित किया गया था। ” चूंकि उसने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त व्यक्ति की ओर से नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है। चेन्नई पुलिस ने आरोपी का फोन जब्त कर पाया कि उसने बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करके अपने पास रखी थी तो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) की धारा 14(1) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की। भारत में, पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000, अन्य कानूनों के तहत, बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण, वितरण और कब्जे को अपराध घोषित किया गया है।