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Nawaz Sharif: शांति का संकेत, नई सरकार का इंतजार…

Image Credit: Times of India

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री Nawaz Sharif ने पहले भी अपने ही देश पर 1999 में भारत के साथ किए गए शांति समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। और मंगलवार को उनका यही आरोप दोहराना समय की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। देश के सबसे शक्तिशाली नागरिक नेता जो अब Nawaz Sharif हैं। उन्होंने 6 साल बाद और भारतीय चुनावों के नतीजों से कुछ दिन पहले अपनी सत्तारूढ़ पार्टी की बागडोर वापस लेते हुए और कारगिल में अपने दुस्साहस के माध्यम से समझौते को विफल करने की बात कही।

डॉन अखबार के अनुसार पीएमएल-एन के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने के बाद Nawaz Sharif ने कहा की एक बार पाकिस्तान ने भारत के अटल बिहारी वाजपेयी साहब के यहां आने और हमारे साथ समझौता करने के जवाब में पांच परमाणु परीक्षण किए थे। और लेकिन हमने इसका उल्लंघन किया और यह हमारी गलती थी। नवाज, जिनके भाई शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि उन्हें मुशर्रफ के कारगिल दुर्घटना के बारे में उनके तत्कालीन समकक्ष ए बी वाजपेयी के फोन कॉल से ही पता चला था। और पाकिस्तानी सैन्य अभियान ने उस शांति प्रक्रिया को विफल कर दिया था।

जिसे उन्होंने उस वर्ष की शुरुआत में लाहौर घोषणा के रूप में वाजपेयी के साथ शुरू किया था। Nawaz Sharif की नवीनतम टिप्पणी जो पहले भी भारत के साथ संबंधों के बारे में सकारात्मक बातें करते रहे हैं। इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं क्योंकि यह भारतीय चुनावों के बीच में और 4 जून को परिणाम घोषित होने से ठीक पहले आई हैं। और पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया कहते हैं की इसे भारत की आने वाली सरकार के लिए पाकिस्तान के वर्तमान सबसे महत्वपूर्ण नागरिक नेता की ओर से एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

Nawaz Sharif के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंध हैं। और 2015 में उनके कार्यकाल में ही दोनों देशों के बीच अंतिम बार ठोस द्विपक्षीय संबंध बने थे। हालांकि जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद सहित सभी मुद्दों को सुलझाने के लिए उन्होंने जो व्यापक द्विपक्षीय वार्ता शुरू की थी और वह पठानकोट आतंकवादी हमले के बाद जल्दी ही खत्म हो गई थी।

अगर मोदी सरकार अगले हफ़्ते वापस आती हैं। तो शरीफ़ बंधु संबंधों में गतिरोध को तोड़ने की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन उस स्थिति में भारत के लिए पहला कदम उठाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से इस्लामाबाद पर ही रहेगी। क्योंकि 2019 में भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद पाकिस्तान ने ही अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाया था और व्यापार संबंधों को समाप्त किया था।

मार्च में पाकिस्तान द्वारा कुछ आगे बढ़ने का संकेत मिला था। जब विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा था की इस्लामाबाद भारत के साथ व्यापार संबंधों को बहाल करने पर गंभीरता से विचार करेगा। और यह बात फिर से स्पष्ट हो गई कि पाकिस्तान भारत के साथ संबंधों को लेकर दुविधा में हैं। जब उनके अपने मंत्रालय ने तुरंत स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ हैं। और संबंधों को सुधारने की ज़िम्मेदारी भारत पर हैं।

पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर कहता हैं की बातचीत तभी संभव है जब भारत कश्मीर में अपने कदमों को वापस ले। कोई भी भारतीय सरकार निश्चित रूप से पाकिस्तान की ऐसी किसी भी मांग को स्वीकार नहीं करेगी और सिवाय इसके कि वह राज्य का दर्जा जल्दी वापस करने की दिशा में काम करे। जैसा कि पिछले साल भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था।

जिसमें तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने को बरकरार रखा गया था। मोदी सरकार के लिए यह फैसला इस बात की पुष्टि करता हैं की पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर की आंतरिक प्रशासनिक प्रक्रिया में कोई हितधारक नहीं हैं। और बेशक पाकिस्तान राज्य का दर्जा बरकरार रखता हैं।

चुनाव कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का विकल्प नहीं हो सकते। अगर मोदी सरकार वापस आती हैं और तो सीमा पार आतंकवाद का सहारा लिए बिना वह इस मुद्दे पर कोई लचीलापन दिखा सकता हैं या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आगे क्या होगा।

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