अरविंद केजरीवाल ग्रेट इंडियन पोलिटिकल थिएटर के सबसे मंजे हुए निर्देशक और निष्णात अभिनेता हैं। वे इस विधा में किसी को भी मात दे सकते हैं। पिछले करीब 14 साल में सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता और मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने इतने किस्म के तमाशे रचे हैं कि उनके सबसे निकटतम प्रतिद्वंद्वी भी उनको देख देख कर हैरान होंगे। उन्होंने साबित किया है कि उनके अंदर तमाशे रचने की अद्भुत और असीमित क्षमता है। लेकिन क्या सिर्फ इस क्षमता के दम पर लगातार चुनाव जीता जा सकता है?
जवाब आसान इसलिए नहीं है क्योंकि भारत में कुछ भी हो सकता है। नेता अलग अलग किस्म के तमाशे रच कर, झांकी सजा कर मतदाताओं को ठगते रहते हैं। कभी विकास की झांकी दिखाई जाती है, तो कभी जाति और धर्म की तो कभी विश्वगुरू बनने का स्वांग किया जाता है, कभी मुफ्त की रेवड़ी बांटी जाती है तो कभी शहादत का ढोंग किया जाता है, कभी मसीहा बना जाता है तो कभी बेटा बन कर ठगा जाता है। भारत का लोकतंत्र पिछले 75 साल से इस किस्म की तमाम नौटंकियों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है।
अरविंद केजरीवाल दिल्ली में अब नई झांकी सजा रहे हैं। नया तमाशा करने जा रहे हैं। यह संयोग है कि जिस समय रामलीला मंडलियां मंचन के लिए भूमि पूजन कर रही हैं उसी समय केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने को शहीद ए आजम भगत सिंह और माता सीता की श्रेणी में रखने का दांव चला है। वे इस्तीफा देने का ऐलान करने गए तो वे ‘भगत सिंह की जेल डायरी’ साथ लेकर गए। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि अंग्रेजी राज की जेल में भी भगत सिंह की चिट्ठियां बाहर पहुंचाई जाती थीं लेकिन उनकी चिट्ठी रोक दी गई। उनकी चिट्ठी रोक दी गई इस आधार पर वे अपने को भगत सिंह से भी महान साबित कर रहे हैं।
यह अलग बात है कि उनकी चिट्ठी घर घर पहुंच गई। हर व्यक्ति को पता चल गया कि केजरीवाल ने चिट्ठी में क्या लिखा है। जेल में जाने के साथ ही उन्होंने मंत्रियों को जो निर्देश भेजे वह भी मंत्रियों तक पहुंचा और दिल्ली के लोगों को उसकी जानकारी हुई। उनकी पत्नी उनसे मिल कर आती थीं और वीडियो संदेश के जरिए दिल्ली के लोगों को बताती थीं कि उनका ‘बेटा’ जेल में बैठ कर उनके लिए कितना चिंतित है। सो, इस तमाशे का कोई मतलब नहीं है कि चिट्ठी रोक दी गई।
दूसरा नैरेटिव यह है कि जेल से बाहर आकर उनको माता सीता की तरह अग्नि परीक्षा देनी है। इस देश के अनेक नेता पहले भी जेल जा चुके हैं। इंदिरा गांधी से लेकर लालू प्रसाद तक, अमित शाह से लेकर शिबू सोरेन तक, जयललिता से लेकर करुणानिधि और चंद्रबाबू नायडू से लेकर हेमंत सोरेन तक अनगिनत नेता, झूठे या सच्चे मुकदमे में फंस कर जेल गए और बाहर आकर अपनी राजनीति जारी रखी। इनमें से किसी ने अपने को सरदार भगत सिंह या माता सीता की तरह बता कर तमाशा नहीं रचा।
असल में केजरीवाल को अपने जेल जाने और भ्रष्टाचार के आरोपों पर इतने तमाशे रचने की जरुरत इसलिए है क्योंकि उनको इस बार के चुनाव में 10 साल के राजकाज का ब्योरा देना है। दिल्ली के लोग भी जानना चाहते हैं कि उनका जीवन बदलने और दिल्ली को दुनिया का सबसे अच्छा राजधानी शहर बनाने के दावे पर चुनाव जीते केजरीवाल ने असल में क्या किया है? क्या दिल्ली के लोगों को उनकी सनातन समस्याओं से वे निजात दिला पाए हैं? दिल्ली की सनातन समस्या बरसात में जलभराव की है, सर्दियों में प्रदूषण की है, सालों भर ट्रैफिक जाम की है, यमुना की सफाई की है, सड़कों पर बिखरी गंदगी की है, कुकुरमुत्ते की तरह हर जगह झुग्गियां बनने की है, अवैध कॉलोनियों की है, सड़कों पर बेतरतीब फैली रेहड़ी, पटरी की है, ट्रांसपोर्ट की है, क्या इनमें से किसी समस्या का समाधान हुआ है?
कुल मिला कर रोज का यह गाना है कि स्कूल और अस्पताल बनवाए। हकीकत यह है कि गिनती के एक या दो नए अस्पताल बने हैं और कुछ स्कूलों में नए क्लासरूम जोड़े गए हैं। आज भी हालात ऐसे हैं कि दिल्ली में केंद्र सरकार के जो अस्पताल हैं उनके आगे 24 घंटे मेला लगा रहता है। दिल्ली सरकार के भी उन्हीं अस्पतालों में भीड़ है, जो दशकों पहले बने हैं। दिल्ली का स्वास्थ्य और शिक्षा का मॉडल भी सिर्फ प्रचार का साधन है। उससे लोगों की जरुरतें पूरी नहीं हो रही हैं। अगर हो रही होतीं तो निजी अस्पतालों और निजी स्कूलों में दाखिले की इतनी मारामारी नहीं चल रही होती।
कुल मिला कर केजरीवाल के पास 10 साल के कामकाज के तौर पर दिखाने के लिए कुछ लोक लुभावन कार्यक्रम हैं। उनकी सरकार दिल्ली के लोगों को दो सौ यूनिट बिजली और 21 हजार लीटर पानी फ्री में दे रही है। बड़ी आबादी को निश्चित रूप से इसका लाभ मिल रहा है। लेकिन धीरे धीरे वह लाभ कम होता जा रहा है। क्योंकि बिजली वितरण कंपनियों को फिक्स्ड चार्ज बढ़ाने और प्रति कनेक्शन लोड बढ़ाते जाने की छूट मिली है। वे पावर यूजेज चार्ज की बजाय दूसरी तरह से पैसे कमा रही हैं। अब केजरीवाल की सरकार महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए नकद देने की योजना लाने वाली है। सवाल है कि इसके आगे क्या दूरदृष्टि है? मुफ्त में कुछ सेवाएं देने या नकद पैसे देने का काम तो वह नेता भी कर रहा है, जो केजरीवाल की तरह बहुत पढ़ा लिखा होने या बहुत दूरदृष्टि वाला या बहुत ईमानदार होने का दावा नहीं कर रहा है।
कुल मिला कर इस बार मुफ्त की रेवड़ी बांटने या स्कूल और अस्पताल का घिसापिटा नैरेटिव बनाने से काम नहीं चलने वाला है। तभी केजरीवाल ने इस्तीफे का नया तमाशा रचा है। इसका मकसद भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटा कर सहानुभूति हासिल करना है। वे नया चेहरा लाकर एंटी इन्कम्बैंसी को कम करना चाहते हैं। भाजपा की ओर से बनाए जा रहे नैरेटिव को बदलना चाह रहे हैं। उनको लग रहा है कि विपक्षी पार्टी और दिल्ली के मतदाताओं को अपने अप्रत्याशित फैसले से चौंका देंगे तो लोग पीछे की सारी बातें भूल जाएंगे। गली गली शराब की दुकानें खोलने और उसके लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोपों को लोग भूल जाएंगे और उनको भगत सिंह मान कर उनकी शहादत पर वोट देंगे।
लेकिन ऐसा होना आसान नहीं है। दस साल की एंटी इन्कम्बैंसी के बाद तो नरेंद्र मोदी की सजाई झांकी भी काम नहीं आई। अयोध्या में राममंदिर का ग्रैंड तमाशा भी काम नहीं आया। उनसे भी लोगों ने सवाल पूछे। महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दे पर लोगों ने मतदान का फैसला किया। संभवतः उससे भी केजरीवाल को सबक मिला है और वे ध्यान भटकाने के उपाय करने में ज्यादा शिद्दत से लगे हैं।