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कोई तो सोचे जलवायु परिवर्तन पर?

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नवंबर का महीना शुरू हुआ तो एक आंकड़ा सामने आया कि इस साल का अक्टूबर पिछले सवा सौ साल का सबसे गर्म अक्टूबर रहा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक 1901 के बाद इस साल यानी 2024 का अक्टूबर महीना औसत और न्यूनतम तापमान के लिहाज से सबसे गर्म अक्टूबर रहा। राजधानी दिल्ली में 1951 के बाद इस साल अक्टूबर में सबसे ज्यादा गर्मी रही। पूरे अक्टूबर में दिल्ली में एक बूंद बारिश नहीं हुई। इसमें संदेह नहीं है कि अक्टूबर के इतना गर्म रहने का कारण वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी है। तभी जापान में भी 1898 के बाद इस साल अक्टूबर सबसे गर्म रहा। लेकिन तापमान में इस बढ़ोतरी के लिए भारत की आंतरिक स्थितियां भी जिम्मेदार हैं। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि नवंबर भी गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ सकता है। भारत, पाकिस्तान और पश्चिम एशिया के देशों के साथ साथ जापान में भी अक्टूबर और नवंबर में रिकॉर्ड गर्मी का अनुमान है।

असल में मौसम के चक्र पर बढ़ता तापमान हावी होता जा रहा है। वैश्विक तापमान में अनुमान से ज्यादा तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और जैसे जैसे तापमान बढ़ता है वैसे वैसे नमी में बढ़ोतरी होती है और फिर उसी अनुपात में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ती है। इनका मिला जुला असर यह होता है कि ताप सूचकांक यानी महसूस की जाने वाली गर्मी जिसे ‘वेट बल्ब टेम्परेचर’ कहा जाता है, वह भी बढ़ जाता है। सरल भाषा में कहें तो तापमान जितना दिखता है उससे ज्यादा महसूस होने लगता है।

तभी हर बार जब लोग यह कहते हैं कि पहले कभी इतनी गर्मी नहीं लगी तो वे असर में महसूस होने वाली गर्मी की बात कर रहे होते हैं। अब 45 डिग्री तापमान पर भी महसूस होने वाली गर्मी 50 डिग्री वाली होती है। अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं होगा, वैश्विक तापमान का बढ़ना रूकेगा नहीं और मौसम का चक्र ठीक नहीं होगा, तो गर्मी इसी तरह बढ़ती रहेगी।

ऐसा नहीं है कि मौसम का चक्र बिगड़ने से सिर्फ गर्मी बढ़ेगी। सर्दी भी बढ़ेगी और बारिश भी ज्यादा होगी। और वह भी संतुलित नहीं होगी। अभी हमने देखा कि कैसे जाती हुई मानसून की बारिश से कर्नाटक और तमिलनाडु के कई हिस्सों में भारी तबाही मची। मौसम विभाग ने 15 अक्टूबर को मानसून की वापसी की आधिकारिक घोषणा कर दी उसके बाद कर्नाटक में राजधानी बेंगलुरू सहित मध्य और दक्षिण हिस्से के कई जिलों में भारी बारिश हुई, जिससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया। उसी समय तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई सहित कई हिस्सों में भारी बारिश हुई। इसकी वजह से अनेक ट्रेनें रद्द करनी पड़ी और हवाई सेवाएं भी प्रभावित हुईं। अभी ओडिशा सहित सात राज्यों में चक्रवाती तूफान दाना का असर दिखा। ऐसे तूफानों की आवृत्ति भी बढ़ती

जा रही है।

मौसम विभाग के हिसाब से इस साल मानसून सामान्य रहा है लेकिन बिहार, झारखंड, ओडिशा सहित पूर्वी भारत के बड़े हिस्से में सूखे के हालात बन गए। अनेक राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई। बारिश का इस तरह असमान होना, हीट वेव के दिन बढ़ना और भीषण सर्दी के दिनों में बढ़ोतरी होना स्थायी परिघटना है। इसका असर आम लोगों के जीवन पर तो दिख ही रहा है यह देश की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह से प्रभावित करेगा।

एशियाई विकास बैंक यानी एडीबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत और पूरे एशिया प्रशांत में जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पर दिखाई देगा। एडीबी की ‘एशिया प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024’ के मुताबिक अगले करीब 50 साल में जलवायु परिवर्तन का एशिया प्रशांत की जीडीपी को करीब 17 फीसदी और भारत की जीडीपी को करीब 25 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी और मौसम का चक्र बिगड़ने से समुद्र का स्तर बढ़ेगा और श्रम उत्पादकता में कमी आएगी, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर होगा। कम आय और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश इसका ज्यादा बड़ा शिकार होंगे। इतना ही नहीं करीब 30 करोड़ लोगों का जीवन तटीय बाढ़ की वजह से खतरे में पड़ेगा।

सवाल है कि इतना बड़ा संकट सामने खड़ा है तो इसकी चिंता किसको है? क्या भारत में कोई इस बारे में सोच रहा है? नेट जीरो का जुमला बार बार बोला जा रहा है लेकिन कार्बन उत्सर्जन जीरो करना तो छोड़िए उसे कम करने के लिए कोई ठोस उपाय हो रहा है? पूरे देश में प्राकृतिक संसाधनों का बेहिसाब दोहन जारी है। जंगल काटे जा रहे हैं। अभी छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल काटने की तस्वीरें और वीडियो खूब वायरल हुए लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ। वहां अडानी समूह की कोयला खदानें हैं। जंगल काट कर कोयला निकाला जाएगा यानी पर्यावरण के लिए दोहरा संकट है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। एक के बाद एक शहर उजड़ते जा रहे हैं क्योंकि पहाड़ों पर लगातार हो रहे खनन और निर्माण कार्य की वजह से पहाड़ दरक रहे हैं।

बड़ी बड़ी पनबिजली परियोजनाओं और दूसरे कल कारखानों की वजह से पहाड़ टूट रहे हैं। लोगों के घरों में दरार आ रही है, जिसकी वजह से मजबूरी में लोगों को घर छोड़ कर जाना पड़ रहा है। पहाड़ काट कर सड़कें और सुरंगें बनाई जा रही हैं। लेकिन उसी अनुपात में सुरंगें धंस रही हैं और सड़क टूट रहे हैं। पर्यटन बढ़ाने के नाम पर बड़े बड़े रिसॉर्ट बन रहे हैं और उसी अनुपात में हर साल आने वाली प्राकृतिक आपदा भी बढ़ती जा रही है। जंगल कट रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं और नदियां प्रदूषित हो रही हैं। देश की शायद ही कोई पवित्र नदी होगी, जिसका पानी नहाने या आचमन करने योग्य रह गया है। भूमिगत जलस्तर यानी ग्राउंडवाटर टेबल लगातार नीचे जा रहा है, जिससे पीने के पानी से लेकर सिंचाई तक का काम मुश्किल होता जा रहा है।

दुनिया के बहुत से देशों में ऐसी स्थिति है लेकिन भारत के लिए ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस समस्या को लेकर किसी भी स्तर पर गंभीरता नहीं दिख रही है। सरकार को कथित विकास, जीडीपी के आंकड़े और तीसरी सबसे बड़े अर्थव्यवस्था बनने की चिंता है। कोई भी पार्टी इसे लेकर गंभीर नहीं है। देश के कारोबारी घरानों में कभी भी इन बातों को लेकर सरोकार नहीं रहा है। उनके लिए परमार्थ के काम का मतलब है कि अपने पूर्वजों के नाम पर फाउंडेशन बना कर उसके जरिए काले धन को सफेद करना और टैक्स चोरी करना। पर्यावरण को लेकर ले देकर एक थिंकटैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट यानी सीएसई दिखता है या इक्का दुक्का पर्यावरणविदों का निजी प्रयास दिखता है।

किसी पॉलिसी प्लेटफॉर्म पर इसकी चर्चा नहीं है कि प्रकृति का आगे क्या रूप होगा। साल दर साल समस्या बढ़ती जा रही है और सरकारें तात्कालिक मुद्दों पर फायर फाइटिंग कर रही हैं। दीर्घावधि के लिए किसी के पास कोई योजना नहीं है। सब कुछ भगवान भरोसे है और इन्हीं स्थितियों के बीच अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत गए हैं। अब वैश्विक स्तर पर भी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए होने वाले प्रयास धीमे होंगे, जिससे भारत की चुनौतियां और बढ़ेंगी।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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