delhi assembly election: दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी दुविधा में दिख रही है। पार्टी ने जिस उत्साह और जोश के साथ चुनाव अभियान की शुरुआत की थी वह धीरे धीरे समाप्त हो गया है।
अब पार्टी रूटीन के अंदाज में चुनाव लड़ रही है और कुछ चुनिंदा सीटों को छोड़ दें, जहां पार्टी के प्रत्याशी अपने दम पर मजबूती से लड़ रहे हैं तो बाकी सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव को औपचारिकता बना दिया है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी के पास साधन की कमी है या प्रत्याशियों का अकाल था, जिसकी वजह से उसका चुनाव अभियान फीका हुआ है।(delhi assembly election)
कांग्रेस के चुनाव अभियान के क्रमशः फीका पड़ते जाने का कारण कांग्रेस की दुविधा है। कांग्रेस भले कह नहीं रही है लेकिन ऐसा लग रहा है कि वह आम आदमी पार्टी के बनाए इस नैरेटिव के चक्र में फंस गई है कि वह भाजपा की बी टीम की तरह चुनाव लड़ रही है।
कांग्रेस के नेताओं ने इस आरोप का जवाब दिया है और नई दिल्ली से चुनाव लड़ रहे संदीप दीक्षित ने बहुत कायदे से, तथ्यों के साथ बताया कि हरियाणा, गुजरात और गोवा में जब आम आदमी पार्टी लड़ी और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया तो क्या वह भाजपा की बी टीम थी?
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लेकिन कांग्रेस आलाकमान इस तर्क को दिल्ली में आजमाने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है। असल में दिल्ली में आम आदमी पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की प्रतिनिधि बन गई है।
विपक्षी गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिव सेना, तृणमूल कांग्रेस आदि ने आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया है।(delhi assembly election)
दूसरी ओर कांग्रेस ‘इंडिया’ ब्लॉक की किसी पार्टी को अपने साथ लाने में कामयाब नहीं हुई है। कम्युनिस्ट पार्टियां अलग छह सीटों पर लड़ रही हैं और राष्ट्रीय जनता दल ने न तो कांग्रेस से दिल्ली में कोई सीट मांगी और न उसके नेता कांग्रेस के लिए प्रचार करने आ रहे हैं।
कांग्रेस से कोई सीट नहीं मांग कर राजद के तेजस्वी यादव ने यह मैसेज बनवाया कि वे दिल्ली के चुनाव में कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे भाजपा को फायदा हो।
तभी दिल्ली में आम आदमी पार्टी ही ‘इंडिया’ ब्लॉक हो गई और कांग्रेस नहीं चाहती है कि वह ‘इंडिया’ ब्लॉक के खिलाफ लड़ती दिखाई दे।(delhi assembly election)
आम आदमी पार्टी के खिलाफ लड़ना एक बात है और समूचे विपक्षी गठबंधन के खिलाफ लड़ना अलग बात है। दिल्ली में कांग्रेस की लड़ाई को ‘इंडिया’ ब्लॉक के खिलाफ लड़ाई मानी जा रही है।
कांग्रेस ने लड़ाई की तीव्रता कम कर दी
आम आदमी पार्टी और ‘इंडिया’ ब्लॉक की दूसरी पार्टियों के साथ साथ मीडिया, सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों और राजनीतिक विश्लेषकों की समीक्षा में भी यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस जितना दम लगा कर लड़ेगी, भाजपा को उतना ज्यादा फायदा होगा।
यानी कांग्रेस का लड़ना और भाजपा का जीतना समानुपातिक हो गए हैं। तभी कांग्रेस ने लड़ाई की तीव्रता कम कर दी है।(delhi assembly election)
उसने चुनाव की घोषणा से पहले उम्मीदवारों की घोषणा करके जो माहौल बनाया था उसे खुद ब खुद कमजोर होने दिया है। नामांकन की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद कांग्रेस एकदम शांत पड़ गई।
उसके किसी बड़े नेता की रैली दिल्ली में नहीं हुई। राहुल गांधी की 22, 23 और 24 जनवरी की लगातार तीन रैलियां तय हुईं। लेकिन वे इससे एक दिन पहले बीमार हो गए।
उसके बाद 22 जनवरी की रैली तो जैसे तैसे हुई लेकिन बाकी रैलियां रद्द कर दी गईं। हैरानी की बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे या महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी उनकी जगह रैली करने नहीं गए।
इस बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि चुनाव जब जोर पकड़ेगा तो पार्टी के सारे नेता रैली करेंगे।(delhi assembly election)
लेकिन चुनाव तो कई दिन पहले ही जोर पकड़ चुका था। दिल्ली में तीन फरवरी तक चुनाव प्रचार होना है उससे एक हफ्ते पहले तक राहुल की सिर्फ एक रैली हुई, जबकि खड़गे और प्रियंका की एक भी रैली नहीं हुई।
कांग्रेस अपने ऊपर कोई कलंक नहीं लेना चाहती(delhi assembly election)
हो सकता है कि प्रचार के बचे हुए आखिरी चार पांच दिन में पार्टी के बड़े नेताओं की रैलियां हों लेकिन 14 जनवरी को मकर संक्रांति के बाद चुनाव अभियान को जिस तरह से कांग्रेस ने पटरी से उतरने दिया
भाजपा व आम आदमी पार्टी के बीच आमने सामने का मुकाबला बनने दिया, उससे लग रहा है कि कांग्रेस अपने ऊपर कोई कलंक नहीं लेना चाहती है।(delhi assembly election)
उसको पता है कि अगर खुदा न खास्ते भाजपा जीत गई तो आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल से लेकर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी तक कोई भी प्रादेशिक क्षत्रप कांग्रेस को नहीं बख्शेगा।
कांग्रेस को यह भी पता है कि वह चाहे जितना दम लगा ले लेकिन खुद चुनाव नहीं जीत सकती है।
कांग्रेस दिल्ली में नहीं जीत सकती
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस को चुनाव लड़ना शुरू करने से पहले इसका अंदाजा नहीं था। कांग्रेस को पहले से पता था कि वह खुद दिल्ली में नहीं जीत सकती है लेकिन चुनाव से पहले यही तय हुआ था कि किसी तरह से आम आदमी पार्टी को हराना है, चाहे भाजपा क्यों न जीत जाए।
इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा था कि अगर आप को हरा कर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व और उनके नैरेटिव को कमजोर नहीं किया गया तो वे हर राज्य के चुनाव में कांग्रेस की परेशानी का सबब बने रहेंगे।
हाल के चुनावों में देखें तो हरियाणा में आम आदमी पार्टी 89 सीटों पर चुनाव लड़ गई। उसे 1.79 फीसदी वोट मिले, जबकि भाजपा और कांग्रेस में सिर्फ 0.60 फीसदी वोट का अंतर रहा।
गुजरात में तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का भट्ठा ही बैठा दिया। वहां आप को 13 फीसदी वोट मिला और कांग्रेस महज 28 फीसदी वोट पर सिमट गई।(delhi assembly election)
पहली बार ऐसा हुआ कि गुजरात में कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं मिलीं कि वह मुख्य विपक्षी पार्टी बन सके। गोवा में भी कांग्रेस को आप की वजह से ऐसे ही नुकसान हुआ था।
तभी कांग्रेस ने तय किया था कि दिल्ली में आप को कमजोर करके ही कांग्रेस उसकी चुनौती से निपटने की स्थिति पैदा कर सकती है। तभी कांग्रेस ने बड़े जोश और उत्साह के साथ चुनाव अभियान शुरू किया।
कांग्रेस की वजह से भाजपा जीत रही
परंतु तब कांग्रेस को अंदाजा नहीं था कि ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां इस तरह से आप के साथ एकजुट होंगी।
उसको इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि यह धारणा इतनी मजबूत हो जाएगी कि कांग्रेस जीतने के लिए नहीं, बल्कि आप को हराने के लिए लड़ रही है और कांग्रेस की वजह से भाजपा जीत रही है।
इस धारणा के मजबूत होने का बड़ा असर मुस्लिम मानसिकता पर पड़ेगा। कांग्रेस ने पूरे देश में मुस्लिम मतदाताओं का सद्भाव हासिल किया है।(delhi assembly election)
लोकसभा चुनाव में उसने जिस तरह से अपने हिस्से की सीटें छोड़ कर समझौता किया और भाजपा को हराने के लिए ‘इंडिया’ ब्लॉक का गठन कराया। उससे मुस्लिम मतदाता उसके साथ एकजुट हुए हैं।
अब कांग्रेस नहीं चाहती है कि उनके बीच यह मैसेज जाए कि कांग्रेस के कारण दिल्ली में भाजपा जीती है। तभी कांग्रेस पीछे हटती दिख रही है।
सोचें, अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने निजी तौर पर राहुल के ऊपर हमला किया। उनकी पार्टी ने बेईमान नेताओं की एक सूची तस्वीरों के साथ विज्ञापनों में दी है, जिसमें राहुल की तस्वीर भी शामिल है।
राहुल की यूएसपी ही कांग्रेस ने उनकी ईमानदारी और बेबाकी को बनाया है। केजरीवाल ने उसको टारगेट कर दिया। फिर भी कांग्रेस सिर्फ चुनाव आयोग में शिकायत करके रह गई।(delhi assembly election)
कांग्रेस को पूरी ताकत से दिल्ली की सड़कों पर उतरना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
कांग्रेस अपने संकल्प पर कायम नहीं(delhi assembly election)
कांग्रेस ने दलित, मुस्लिम और प्रवासी वोट को ध्यान में रख कर दिल्ली का चुनाव अभियान शुरू किया था। उसने लक्ष्य तय किया था कि यह वोट आम आदमी पार्टी से वापस हासिल करना है।
कांग्रेस का मानना था कि भाजपा जीतती है तो जीते। आखिर वह इतने राज्यों में सरकार में है तो दिल्ली में भी उसकी सरकार बन जाएगी तो कोई आफत नहीं आ जाएगी।
लेकिन केजरीवाल को नहीं रोका गया तो अगले लोकसभा चुनाव तक वे कांग्रेस की नाक में दम किए रहेंगे। वे हर जगह या तो जरुरत से ज्यादा सीट मांगेंगे तालमेल के लिए या अकेले लड़ कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे।
आप ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचा कर ही इतनी जल्दी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया है। लेकिन कांग्रेस अपने इस संकल्प पर कायम नहीं रह सकी।(delhi assembly election)
सहयोगी पार्टियों के दबाव और मुस्लिम धारणा पर असर की चिंता में उसकी दुविधा बढ़ी और उसका चुनाव अभियान पटरी से उतर गया।