राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

निष्ठा का फूहड़ प्रदर्शन क्या जरूरी है?

Delhi New CM AtishiImage Source: ANI

Delhi New CM Atishi: भारत में स्कूल और कॉलेजों की पढ़ाई में छात्रों को कई विषयों के महत्व पर निबंध लिखना सिखाया जाता है। इसमें हर तरह के तर्क और तथ्य से निबंध के विषय को न्यायसंगत ठहराया जाता है। इसी तरह से ‘भारतीय राजनीति में निष्ठा का महत्व’ भी एक विषय हो सकता है। हालांकि इसके लिए तर्क खोजने कहीं दर्शनशास्त्र या इतिहास की किताबों में जाने की जरुरत नहीं होती है। इसे प्रमाणित करने वाले अनगिनत तर्क और तथ्य रोजमर्रा की राजनीति में दिख जाएंगे।

सबसे ताजा मामला दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी का है। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के सबसे प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ी हैं। वे रोड्स स्कॉलर रही हैं और इस स्कॉलरशिप के तहत उन्होंने दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्था ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्नात्तकोत्तर की पढ़ाई की है। लेकिन वे मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने कहा कि ‘दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है अरविंद केजरीवाल’। उन्होंने यह भी कहा कि उनको बधाई नहीं दी जाए क्योंकि यह दुख की घड़ी है।

also read: देश की सबसे महंगी भारतीय व्हिस्की…कीमत 5 लाख, अल्कोहल 44.5%

केजरीवाल को फिर से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाना

आतिशी ने अपने कार्यकाल का लक्ष्य तय किया कि अगले चुनाव में अरविंद केजरीवाल को फिर से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाना है। इतना ही नहीं, जब वे बतौर मुख्यमंत्री कामकाज संभालने गईं तो उस कुर्सी पर नहीं बैठीं, जिस पर मुख्यमंत्री रहते उनकी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल बैठते थे। वे उस ‘सिंहासन’ के बगल में दूसरी कुर्सी लगा कर बैठीं। पता नहीं किसी ने उनको सुझाव नहीं दिया अन्यथा वे उस ‘सिंहासन’ पर ‘खड़ाऊं’ रख कर नीचे भी बैठ सकती थीं। फिर भी उन्होंने खड़ाऊं के प्रतीक का इस्तेमाल किया और कहा कि वे भरत की तरह छाया राज ही करेंगी।

सोचें, क्या भारत में अपनाई गई लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में ऐसे किसी तमाशे की इजाजत हो सकती है? याद करें कैसे एक समय शिव सेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे ने कह दिया था कि वे रिमोट से सरकार चलाते हैं तो देश में कितना बवाल मच गया था। उनके बयान को लेकर खूब बहस हुई थी और कहा गया था कि यह दुख की बात है कि एक संविधानेत्तर शक्ति का निर्माण हो गया है, जो राज्य की लोकतांत्रिक सरकार को रिमोट से चलाती है। लेकिन अब तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ रहा व्यक्ति ही खुद को मुख्यमंत्री नहीं मान रहा है और कह रहा है कि मुख्यमंत्री तो केजरीवाल ही हैं। ऐसे व्यक्ति से क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वह मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन कर पाएगा?

भारतीय राजनीति की प्रमुख प्रवृत्ति

असल में यह भारतीय राजनीति की सबसे प्रमुख प्रवृत्ति हो गई है, जिसमें पार्टी के सर्वोच्च नेता के प्रति निष्ठा का फूहड़ सार्वजनिक प्रदर्शन सबसे जरूरी होता है। तभी आतिशी के लिए केजरीवाल के प्रति अपनी निष्ठा से ज्यादा उस निष्ठा का प्रमाण देना जरूरी है। उनको पता है कि वे विधायक दल के विश्वास की वजह से नहीं, बल्कि केजरीवाल की कृपा से मुख्यमंत्री बनी हैं। हालांकि, हर मुख्यमंत्री या मंत्री पार्टी के आलाकमान की कृपा से ही बनता है और वह इस बात को मानता भी है लेकिन अब इस मानने का अधिक से अधिक फूहड़ तरीके से प्रदर्शन जरूरी हो गया है।

हो सकता है कि हाल के दिनों में घटित हुए कुछ राजनीतिक घटनाक्रम की वजह से ऐसा करना ज्यादा जरूरी हो गया हो। इस साल जनवरी के अंत में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जेल गए तो उन्होंने अपने और अपने पिता के भरोसेमंद साथी चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन चम्पई सोरेन थोड़े समय के बाद अपने को उस गद्दी का स्वाभाविक दावेदार मानने लगे। तभी उनकी निष्ठा संदिग्ध हो गए और जेल से बाहर निकलने के बाद हेमंत सोरेन ने उनको मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। इसके बाद वे बागी हो गए और भाजपा में चले गए। इससे पहले बिहार में नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हारने के बाद अपने भरोसेमंद जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन वे भी स्वतंत्र राजनीति करने लगे, जिसकी वजह से नीतीश को नौ महीने में ही उनको हटाना पड़ा। हटने के बाद वे भी बागी हो गए और अलग पार्टी

बना ली।

इन दो उदाहरणों के बाद विशुद्ध रूप से आलाकमान की कृपा से मुख्यमंत्री या मंत्री बनने वालों को लिए जरूरी हो गया कि वे जितने खुले तरीके से अपनी निष्ठा का प्रदर्शन कर सकते हैं उतने खुले तरीके से करें। पहले भी निष्ठा का प्रदर्शन होता था लेकिन आमतौर पर सावधानी और सूक्ष्मता के साथ इसका प्रदर्शन होता था। डॉक्टर मनमोहन सिंह इसकी मिसाल माने जा सकते हैं। इसके बरक्स जिसने भी ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ के अंदाज में निष्ठा का प्रदर्शन किया उसकी थू थू दशकों बाद तक चलती रहती है।

aslso read: जम्मू-कश्मीर में वातावरण अच्छा है, भाजपा की सरकार बन रही: मोहन यादव

नेताओं के बीच पद के लिए प्रतिस्पर्धा

अभी से पहले लंबे समय तक भारतीय राजनीति में निष्ठा और चापलूसी के बीच बारीक सा फर्क बना रहा था। इसका कारण यह था कि मुख्यमंत्री या मंत्री बनने वाले नेता अपने दम पर भी नेता होते थे और उनका खुद का भी राजनीतिक वजूद होता था। एक समान कद और लोकप्रियता वाले कई नेताओं में से किसी एक को मुख्यमंत्री या मंत्री पद के लिए चुना जाता था। नेताओं के बीच पद के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा चलती थी।

लेकिन अब नेताओं की योग्यता व क्षमता की जगह विशुद्ध रूप से निष्ठा को प्राथमिकता दी जाने लगी है। ऐसे आधारहीन नेताओं को उच्च पदों पर बैठाया जाने लगा, जिनकी एकमात्र योग्यता पार्टी के शीर्ष नेताओं के प्रति निष्ठा होती है और उस निष्ठा का फूहड़ प्रदर्शन करने में भी जिनको कोई हिचक नहीं होती है। हाल के दिनों में अलग अलग राज्यों में नियुक्त हुए अनेक मुख्यमंत्रियों के चेहरे से यह प्रवृत्ति परिलक्षित होती है।

बहरहाल, आतिशी ने अपने बयानों और अपने आचरण से यह सवाल खड़ा किया है कि क्या भारत का लोकतंत्र अब भी उसी कालखंड में है, जब सिंहासन पर खड़ाऊं रख कर राज किया जाता था? क्या लोकतंत्र में खड़ाऊं राज की मंजूरी दी जा सकती है? लोकतंत्र में मुख्यमंत्री जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है। वह विधायकों के विश्वास से मुख्यमंत्री बनता है और उसकी प्रतिबद्धता जनता के प्रति होती है। आतिशी ने इस बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन किया है।

अगर वे ऐसा नहीं भी करतीं तो केजरीवाल के नेतृत्व की सर्वोच्चता पर कोई सवाल नहीं खड़ा हो रहा था। और वे अपनी निष्ठा अपने आचरण से प्रदर्शित कर सकती थीं। आतिशी ने अपने आचरण से जितना हैरान और निराश किया उतना ही हैरान और निराश केजरीवाल ने भी किया, जिन्होंने यह तमाशा न सिर्फ होने दिया, बल्कि इस तमाशे का आनंद लिया। ऐसा लग रहा है जैसे आतिशी ने केजरीवाल के अहम की तुष्टि के लिए ही यह तमाशा किया हो। इससे एक नई परंपरा भी शुरू हुई है। आने वाले दिनों में जिसको भी मौका मिलेगा वह अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता के प्रति इसी तरह से निष्ठा का फूहड़ प्रदर्शन करेगा। यह बड़े नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की प्रवृत्ति को फैलने से पहले रोकें।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें