EVM Controversy: इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में गड़बड़ी के सवालों से शुरू होकर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों का संदेह अब समूची चुनाव प्रक्रिया तक पहुंच गया है।
मतदाता सूची में अनियमितता, चुनाव कराने की प्रक्रिया पर संदेह और गिनती में गड़बड़ी तक के आरोप लगाए जा रहे हैं। तभी सवाल है कि कांग्रेस सिर्फ आरोप लगाएगी या उसकी कोई योजना है?
क्या उसकी योजना यह है कि वह जब तक चुनाव नहीं जीत जाती है तब तक आरोप लगा कर चुनाव आयोग को संदेह के घेरे में खड़ा करती रहेगी?
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ये सवाल बहुत गंभीर इसलिए हैं क्योंकि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां जहां चुनाव जीतती हैं वहां ईवीएम या चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप नहीं लगाती हैं।
जैसे जम्मू कश्मीर में चुनाव जीतने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने अपने को ईवीएम और दूसरी गड़बड़ियों के विपक्ष के आरोपों से दूर कर लिया।
उलटे यहां तक कहा कि कांग्रेस को इसका रोना बंद करना चाहिए। अब तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग को ‘स्वंतत्र व निष्पक्ष चुनाव’ के लिए धन्यवाद दे रहे हैं।
इसी तरह झारखंड में चुनाव जीते हेमंत सोरेन ने एक बार भी ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी का मुद्दा नहीं उठाया है। वे भी विपक्ष की बयानबाजी से दूर हैं।
महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों पर सवाल
चुनाव समीक्षा वगैरह से जुड़े रहे जानकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दोहरापन भी इस मामले में दिख रहा है।
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजों के बाद अंग्रेजी के एक बड़े अखबार में भारी भरकम लेख लिख कर योगेंद्र यादव ने महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों पर सवाल उठाए।
उन्होंने महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के फॉरेंसिक जांच की बात कही क्योंकि वहां उनके और दूसरे पत्रकारों या कथित जानकारों के आकलन से उलट भाजपा चुनाव जीत गई।
लेकिन योगेंद्र यादव ने इसी तरह के फॉरेंसिक आकलन की बात झारखंड के चुनाव नतीजे को लेकर नहीं कही, जहां हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम और कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा को हराया।
बिल्कुल यही कहानी झारखंड में
महाराष्ट्र के नतीजे की फॉरेंसिक जांच की उनकी मांग इस तथ्य पर आधारित थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को 43 फीसदी और भाजपा गठबंधन को 42 फीसदी वोट मिला था तो…
…चार महीने बाद ही विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन का वोट सात फीसदी बढ़ कर 49 फीसदी कैसे हो गया और कांग्रेस गठबंधन का वोट नौ फीसदी घट कर 34 फीसदी कैसे रह गया?
लेकिन बिल्कुल यही कहानी झारखंड में हुई है तो वहां योगेंद्र यादव को फॉरेंसिक जांच की जरुरत नहीं लगी।
गौरतलब है कि झारखंड में 2024 के लोकसभा चुनाव में जेएमएम गठबंधन को 39 फीसदी और भाजपा गठबंधन को 47 फीसदी वोट मिले थे लेकिन…
…छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन का वोट नौ फीसदी कम होकर 38 फीसदी रह गया और जेएमएम गठबंधन का वोट पांच फीसदी बढ़ कर 44 फीसदी से ज्यादा हो गया।
ईवीएम में गड़बड़ी
बहरहाल, योगेंद्र यादव जैसे विपक्षी पार्टियों के सलाहकार हों या खुद विपक्षी दल हों उनको तय करना होगा कि वे क्या चाहते हैं। पहले सभी विशेषज्ञ और विपक्षी दल आरोप लगाते थे कि ईवीएम में गड़बड़ी होती है।
अमेरिका, ब्रिटेन से तरह तरह के विशेषज्ञ आए, जिन्होंने दावा किया कि ईवीएम हैक किया जा सकता है। वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में तो दावा करते रहे लेकिन चुनाव आयोग ने ईवीएम हैक करने की चुनौती दी और ईवीएम तीन दिन तक डिस्प्ले में रखा रहा तब कोई उसे हैक करने नहीं पहुंचा।
लेकिन अब मामला सिर्फ ईवीएम हैक करने का नहीं है, बल्कि पूरी चुनाव प्रणाली पर संदेह पैदा किया जा रहा है।(EVM Controversy)
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित तमाम विपक्षी पार्टियां कह रही हैं कि चुनाव आयोग मनमाने तरीके से लोगों के नाम मतदाता सूची में डाल रहा है या काट कर हटा रहा है।
यह दावा किया जा रहा है कि एक समुदाय विशेष के लोगों के नाम मतदाता सूची से काटे जा रहे हैं।
चुनाव आयोग ने 9.70 करोड़ मतदाता बनाए
लेकिन जितनी बड़ी संख्या में नाम काटे जाने का दावा किया जा रहा है अगर सचमुच ऐसा होता और उस संख्या के 10 फीसदी बराबर लोग भी विरोध में उतरे होते तो बड़ा जन आंदोलन खड़ा हो जाता।
सो, उतनी बड़ी संख्या में नाम काटे जाने के आरोप संदिग्ध व राजनीति से प्रेरित लगते हैं लेकिन मनमाने तरीके से नाम जोड़ने के आरोप सही हो सकते हैं।
जैसे अभी कांग्रेस ने एक आंकड़ा दिया कि केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की नेशनल कमेटी ऑन पॉपुलेशन के अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में 2024 में वयस्क आबादी 9.54 करोड़ होनी चाहिए लेकिन चुनाव आयोग ने 9.70 करोड़ मतदाता बना दिए।
आमतौर पर वयस्क आबादी के 90 फीसदी के करीब मतदाता होते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में सौ फीसदी से ज्यादा मतदाता हो गए। अगर यह आरोप सही है तो चुनाव प्रक्रिया की शुचिता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
मतदान समाप्त होने के बाद वोटिंग
इसके अलावा विपक्ष का एक और आरोप दमदार लगता है कि शाम छह बजे मतदान समाप्त होने के बाद मतदान प्रतिशत में अप्रत्याशित बढ़ोतरी कैसे हो रही है?
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने यह आरोप लगाया है और साथ ही हाल के समय तक भाजपा की केंद्र सरकार को मुद्दा आधारित समर्थन दे रहे नवीन पटनायक ने भी आरोप लगाया है।
उनका आरोप है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में शाम छह बजे जितना मतदान होने की खबर दी गई थी अगले दिन उससे 30 फीसदी ज्यादा मतदान का आंकड़ा दिया गया।(EVM Controversy)
उनका और विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि रात 11 बजे जो आंकड़ा दिया जाता है उसमें भी बड़ा बदलाव हो जाता है।
वे पूछते हैं कि क्या उसके बाद भी वोटिंग हो रही होती है? मतदान प्रतिशत बढ़ने के आरोपों पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने सिर्फ इतना कहा कि शाम छह बजे मतदान खत्म कराएं और मशीन सील कराएं या प्रतिशत बताएं!
उनकी बातों से लगा जैसे मतदान खत्म कराना, ईवीएम सील कराना और मत प्रतिशत बताना अलग अलग काम हों।
हकीकत यह है कि मतदान खत्म होते ही मत प्रतिशत का पता चल जाता है और तभी मशीन सील होती है। ये तीन अलग अलग नहीं, बल्कि एक ही काम हैं।
विपक्ष का आचरण संतोषजनक?(EVM Controversy)
सो, कह सकते हैं कि विपक्ष की ओर से लगाए जा रहे सभी आरोपों के संतोषजनक जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं हैं। परंतु क्या विपक्ष का आचरण संतोषजनक है?
विपक्ष का मकसद क्या सिर्फ यह नहीं दिख रहा है कि लोगों के मन में संदेह पैदा करो और चुपचाप पड़े रहो?
अगर विपक्ष को ईवीएम से लेकर मतदाता सूची, चुनाव प्रक्रिया, वोटों की गिनती आदि को लेकर संदेह है तो वह एक सुनियोजित योजना के तहत ये सवाल उठाए और इसे किसी तार्किक परिणति तक पहुंचाए।
यह बात ठीक नहीं है कि यहां वहां विरोध कर दिया या हारे तो सवाल उठा दिया और जीत गए तो चुपचाप रह गए।
इससे आम मतदाताओं के मन में चुनाव आयोग के प्रति संदेह तो पैदा होता है लेकिन जब विपक्ष का दोहरा आचरण दिखता है तो…
थोड़े समय के कंफ्यूजन के बाद वह स्वीकार कर लेता है विपक्ष का विरोध राजनीतिक है और चुनाव मोटे तौर पर स्वतंत्र व निष्पक्ष हैं।
इसकी कोई गारंटी नहीं…
अगर विपक्ष का आचरण ऐसा ही रहा तो वह आम मतदाताओं के मन में अपने प्रति कोई सहानुभूति पैदा नहीं कर पाएगा।(EVM Controversy)
अगर उसे लग रहा है कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता किसी रूप में प्रभावित हो रही है तो उसे तत्काल इसमें सुधार की योजना के साथ कोई पहल करनी चाहिए।
सिर्फ बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मुंहजबानी मांग ठीक नहीं है। क्योंकि बैलेट पेपर से चुनाव होने पर गड़बड़ी नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं कर सकता है।
फिर भी अगर विपक्ष को चुनाव प्रक्रिया पर संदेह है तो वह पूरे देश में आंदोलन करे, जहां उसने ईवीएम से चुनाव जीते हैं वहां की सरकारों से इस्तीफा कराए,
उसके जीते हुए सांसद इस्तीफा दें और विपक्ष ऐलान करे कि जब तक बैलेट पेपर से चुनाव नहीं होगा और मतदाता सूची को ठीक नहीं किया जाता है तब तक वह चुनाव नहीं लड़ेगा। इसके बगैर उसकी हिट एंड रन की रणनीति उसकी अपनी साख खराब कर रही है।