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जीएसटी सुधार का फैसला भी जल्दबाजी में

जिस तरह से अप्रत्यक्ष कर में सुधार की रामबाण दवा के नाम पर वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी को ‘एक देश, एक कर’ बता कर हड़बड़ी में लागू किया गया उसी तरह आठ साल  के बाद जीएसटी में सुधार को भी जल्दबाजी में लागू कर दिया गया है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये सुधार जरूरी थे और इन सुधारों का लाभ निश्चित रूप से आम लोगों को मिलेगा। लेकिन इसमें भी संदेह नहीं है कि इसे थोड़ा और सोच विचार करके और थोड़ा समय देकर लागू करना चाहिए था। इसी तरह यह भी ध्यान रखना चाहिए था, जब स्लैब घटाए जा रहे हैं तो नए स्लैब नहीं बनाए जाएं।

मंत्री समूह की सिफारिश पर जीएसटी कौंसिल ने 12 और 28 फीसदी कर स्लैब को समाप्त कर दिया लेकिन 40 फीसदी का एक नया स्लैब बना दिया। इस तरह चार स्लैब तो अब भी रह गए। एक जीरो टैक्स का स्लैब है,  उसके बाद पांच और 18 फीसदी के स्लैब हैं और अंत में 40 फीसदी का स्लैब है। बात इतने पर भी समाप्त नहीं हो रही है। 40 फीसदी के स्लैब पर सेस लगाने की मांग राज्यों की ओर से की जा रही है क्योंकि उनका कहना है कि 28 फीसदी के स्लैब में जो चीजें थीं उनमें से कई चीजों पर सेस लगता था। अगर सेस हट जाता है तो 40 फीसदी टैक्स के बावजूद उन उत्पादों पर टैक्स कम हो जाएगा, जिससे राज्यों के राजस्व में कमी आएगी। राज्य चाहते हैं कि या तो सेस लगाया जाए या केंद्र सरकार नुकसान की भरपाई के लिए पहले से चल रहे मुआवजे की व्यवस्था को 2026 के आगे भी जारी रखे।

सुधारों को लागू में दूसरी हड़बड़ी घोषणा में दिखती है। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले से इसकी घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि इस बार दिवाली पर डबल दिवाली मनेगी क्योंकि जीएसटी की दरों में कटौती होगी। उनकी घोषणा के अगले ही दिन खबर आ गई कि सरकार 12 और 28 फीसदी के स्लैब हटाने जा रही है और 12 फीसदी के स्लैब में जितनी चीजें हैं उनमें से 90 फीसदी से ज्यादा चीजें पांच फीसदी के स्लैब में आ जाएंगी। बाजार पर इस घोषणा का बड़ा असर हुआ।

लोगों ने रोजमर्रा के चीजों के अलावा बाकी चीजों की खरीदारी रोक दी। गणेशोत्सव और ओणम के अवसर पर होने वाली खरीदारी में बड़ी गिरावट आई क्योंकि लोग टैक्स कम होने का इंतजार करने लगे। देश के लगभग सभी हिस्सों में इसका असर दिखा। बरसात के मौसम में वैसे भी बाजार में मंदी रहती है लेकिन जीएसटी कम होने की घोषणा ने उस मंदी को बढ़ा दिया।

जीएसटी सुधारों को लागू करने में आ रही मुश्किलों से भी जाहिर होता है कि इसमें जल्दबाजी की गई है। लागू करने में आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए सोमवार, आठ सितंबर को कैबिनेट सचिवालय ने एक अंतर मंत्रालयी बैठक बुलाई थी। सबसे ज्यादा समस्या ऑटो सेक्टर के साथ आ रही है। क्योंकि उनकी जो गाड़ियां फैक्टरी से निकल कर डीलर के पास पहुंच गई हैं लेकिन जिनके बिकने की संभावना 22 सितंबर के बाद की है उन पर सेस  एडजस्ट कैसे होगा, यह बड़ा सवाल है। क्योंकि 22 सितंबर के बाद बिकने वाली गाड़ी पर खरीदार से सेस नहीं लिया जा सकेगा, जबकि कंपनी सेस का भुगतान कर चुकी या उसे करना होगा।

इसी तरह साइकिल, ट्रैक्टर, रासायनिक खाद आदि बनाने वाली कंपनियों ने भी सरकार को अपनी समस्या बताई है। उनके सामने समस्या यह है कि कई कच्चे उत्पादों पर टैक्स ज्यादा है लेकिन उसी से तैयार उत्पाद पर टैक्स कम है। सरकार ने कृषि से जुड़े उपकरणों जैसे ट्रैक्टर और अन्य मशीनरी पर कुछ पार्ट्स पर टैक्स पांच फीसदी है तो कुछ पार्ट्स पर 18 फीसदी हो गया है। ऐसे ही साइकिल पर जीएसटी घटा कर पांच फीसदी कर दिया गया है लेकिन कई कच्चे उत्पादों जैसे स्टील और प्लास्टिक पर 18 फीसदी टैक्स है। उधर बीमा कंपनियां अलग परेशान हैं क्योंकि स्वास्थ्य और जीवन बीमा के प्रीमियम पर जीएसटी 18 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया है। इसका मतलब है कि कंपनियों को मिलने वाला इनपुट टैक्स क्रेडिट अब नहीं मिलेगा। बीमा कंपनियों का कहना है कि इससे उनका संचालन खर्च बढ़ जाएगा।

इन तमाम समस्याओं का रास्ता निकालने का प्रयास किया जा रहा है। अगर हड़बड़ी में इसकी घोषणा करने से पहले हर पहलू पर विचार किया गया होता और इंडस्ट्री के लोगों से बात करके उनकी समस्याओं को समझा गया होता तो पैनिक की स्थिति नहीं बनती।

बहरहाल, इसके बाद एक बड़ी समस्या यह है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी क्या आम लोगों को इसका पूरा लाभ मिल पाएगा? यह सवाल इसलिए है क्योंकि जीएसटी में कटौती  की घोषणा के बाद से खबर आने लगी कि कई कंपनियां अपने उत्पादों की कीमत बढ़ा रही हैं। अगर कंपनियां कीमत बढ़ा देंगी तो कटौती का पूरा लाभ आम लोगों को नहीं मिलेगा। कई पैकेज्ड फूड्स बनाने वाली कंपनियों ने कहा है कि वे कीमत कम करने की बजाय पैकिंग बदलेंगी और मात्रा बढ़ाएंगी।

ध्यान रहे पिछले कुछ समय से देश स्रिंकफ्लेशन झेल रहा था। यानी पैकेट का साइज छोटा होता जा रहा था और कीमतें बढ़ती जा रही थीं। अब कहा जा रहा है कि पैकेट का साइज बढ़ेगा। यह देखने वाली बात होगी साइज में कितनी बढ़ोतरी होती है और कीमत पर उसका क्या असर होता है। इस बात की चिंता केंद्र सरकार को भी है तभी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अब सरकार की नजर इस पर रहेगी कि कंपनियां पूरा लाभ आम लोगों को ट्रांसफर करें। अगर ऐसा नहीं होता है तो पूरी कवायद का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।

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