राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

परिवारवाद कैसे समाप्त होगा?

NepotismImage Source: ANI

नए साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक प्रमुख लक्ष्य राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति दिलाने का होना चाहिए। उन्होंने बड़ी प्रतिबद्धता के साथ यह लक्ष्य तय किया है। परंतु मुश्किल यह है कि राजनीति की ऊपर से नीचे तक सफाई करने और राजनेताओं के ऊपर लंबित मुकदमों को प्राथमिकता के साथ निपटा कर राजनीति को अपराध मुक्त करने का लक्ष्य भी उन्होंने  इतनी ही प्रतिबद्धता के साथ तय किया था। Nepotism

लेकिन आज हकीकत यह है कि भारतीय जनता पार्टी अपराधी छवि के नेताओं को चुनाव में टिकट देने और चुनाव जीतने के बाद मंत्री बनाने के मामले में अव्वल नहीं है तो किसी से पीछे भी नहीं है। तभी राजनीति को परिवारवाद से मुक्त करने की उनकी प्रतिबद्धता को लेकर भी सवाल उठते हैं और ऐसा लगता है कि Nepotism से भारतीय राजनीति को मुक्ति दिलाने से उनका मतलब सिर्फ नेहरू गांधी परिवार या उनके साथ राजनीतिक गठजोड़ करने वाले कुछ अन्य परिवारों को राजनीति में हाशिए पर ले जाना या उनको चुनाव हराना है।

इसके बावजूद अगर नए साल के दूसरे दिन हम इस सवाल पर चर्चा कर रहे हैं कि भारत की राजनीति को Nepotism से मुक्ति कैसे मिलेगी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषित लक्ष्य के साथ साथ इसका एक दूसरा कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने भारत की शीर्ष न्यायपालिका को परिवारवाद से मुक्ति दिलाने की योजना बनाई है। हालांकि अभी तक इस बारे में आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है लेकिन जो खबर आई है उसके मुताबिक चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा है कि हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में ऐसे लोगों को जज नहीं बनाया जाएगा, जिनके परिवार के लोग जज रहे होंगे।

पहली पीढ़ी के वकीलों और जजों के नाम की सिफारिश का निर्णय

बताया जा रहा है कि उन्होंने हाई कोर्ट्स की कॉलेजियम को निर्देश भेजा है कि वे ऐसे वकीलों के नाम जज के लिए नहीं भेजें, जिनके परिवार के लोग जज रहे हों। उन्होंने यह भी कहा है कि पहली पीढ़ी के वकीलों में जो अच्छा कर रहे हों उनके नाम की सिफारिश की जाए। इसका मतलब है कि उच्च अदालतों की कॉलेजियम से हाई कोर्ट में जज बनने के लिए पहली पीढ़ी के वकीलों या निचली अदालत के पहली पीढ़ी के जजों के नाम की ही सिफारिश की जाएगी। जब चीफ जस्टिस ने उच्च अदालतों की कॉलेजियम को यह निर्देश दिया है तो निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम भी इस सिद्धांत पर काम करेगी और पहली पीढ़ी के वकीलों या उच्च अदालतों के पहली पीढ़ी के जजों के नाम की सिफारिश ही सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए करेगी।

यह बहुत बेहतरीन और न्यायपालिका की शुचिता और उसके गौरवशाली भविष्य के प्रति आश्वस्ति दिलाने वाली पहल है। इसके बारे में जानना इसलिए भी बहुत सुखद अनुभूति देने वाला है क्योंकि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना खुद ही ऐसे परिवार से आते हैं, जिस परिवार के लोग हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज रहे हैं। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट में जज थे और उनके चाचा जस्टिस हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट में जज थे।

जस्टिस हंसराज खन्ना अपने जीवन काल में ही लीजेंड बन गए थे। उन्होंने इमरजेंसी के समय एडीएम जबलपुर केस में यह फैसला लिखा था कि कोई भी सरकार या कोई भी कानून किसी व्यक्ति से सम्मान से जीने का अधिकार नहीं छीन सकता है क्योंकि यह अधिकार व्यक्ति को किसी संविधान ने नहीं दिया है, बल्कि संविधान की व्यवस्था के पहले से व्यक्ति इस अधिकार के साथ पैदा होता है।

जस्टिस हंसराज खन्ना के भतीजे संजीव खन्ना की पहल: न्यायपालिका में परिवारवाद से मुक्ति

पांच जजों की बेंच में वे अकेले जज थे, जिन्होंने यह फैसला लिखा था और इसकी कीमत उन्हें चीफ जस्टिस की कुर्सी से महरूम होकर चुकानी पड़ी थी। फैसले से नाराज इंदिरा गांधी ने वरिष्ठता में नंबर दो जज हंसराज खन्ना की बजाय चौथे नंबर के जज एमएच बेग को चीफ जस्टिस बनाया और विरोध में जस्टिस खन्ना ने इस्तीफा दे दिया था। सो, इसे प्रकृति का न्याय कह सकते हैं कि जस्टिस हंसराज खन्ना के भतीजे संजीव खन्ना देश के चीफ जस्टिस बने हैं और उन्होंने यह पहल की है कि जजों के परिजनों के नाम की सिफारिश जजशिप के लिए नहीं की जाएगी।

उन्होंने एक दूसरी पहल भी है कि और वह भी बहुत शानदार है। बताया जा रहा है कि उन्होंने तय किया है कि हाई कोर्ट्स या सुप्रीम कोर्ट में जज के लिए किसी के नाम की सिफारिश करने से पहले कॉलेजियम उससे मिलेंगे और बात करेंगे। जिसे जज बनाया जाना है उससे मिलना और उसके विचारों को समझने का प्रयास करना एक बेहद जरूरी पहल है, जो चीफ जस्टिस संजीव खन्ना करते दिख रहे हैं।

क्या प्रधानमंत्री मोदी राजनीति में परिवारवाद मुक्त पहल कर सकते हैं?

ध्यान रहे पिछले कुछ समय से देश की उच्च न्यायपालिका की इस बात के लिए आलोचना होती रही है कि जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए कॉलेजियम की व्यवस्था इसलिए बनाए रखी गई है ताकि जजों के बच्चों को जज बनाया जा सके। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के कानून को अदालत द्वारा खारिज किए जाने को इसी नजरिए से देखा जाता है।

इस धारणा को बदलने और न्यायपालिका को Nepotism से मुक्त करने की लिए चीफ जस्टिस ने जो पहल की है उसी से यह विचार उठा है कि क्या इसी तरह से राजनीति को Nepotism से मुक्त किया जा सकता है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे सूत्र पकड़ कर आगे बढ़ सकते हैं? राजनीति और न्यायपालिका का मामला निश्चित रूप से बिल्कुल अलग है लेकिन इसे आधार बना कर एक छोटी पहल तो निश्चित रूप से की जा सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी से परिवारवाद मुक्त राजनीति की दिशा में पहल की उम्मीद

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि एक लाख युवाओं को राजनीति में लाना है और उन्हें आगे के लिए तैयार करना है। उन्होंने लाल किले से अपने भाषण में यह बात कही थी और उसके बाद से करीब पांच महीने बीत गए हैं। लेकिन ऐसा कहीं दिख नहीं रहा है कि भाजपा पढ़े लिखे, आदर्शवादी और जन कल्याण के लिए प्रतिबद्ध युवाओं की पहचान करके उनको राजनीति में आगे बढ़ाने की कोई पहल कर रही है।

इसलिए प्रधानमंत्री की बात अभी तो धऱातल पर उतरने वाली नहीं दिख रही है। लेकिन जिस तरह की पहल चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट में की है उस तरह की पहल प्रधानमंत्री मोदी सरकार में कर सकते हैं। वे इस बात से शुरुआत कर सकते हैं कि जिन लोगों के पिता या परिवार के दूसरे सदस्य राज्य या केंद्र में मंत्री रहे हैं उनको मंत्री नहीं बनाया जाएगा। यानी जिस तरह से न्यापालिका में पीढ़ी दर पीढ़ी लोग जज होते रहे हैं और उसे रोकने का प्रयास हो रहा है उसी तरह पीढ़ी दर पीढ़ी मंत्री हो रहे लोगों को राजनीति में रोका जाए।

यह एक छोटी शुरुआत होगी लेकिन इसका संदेश बहुत बड़ा होगा। अगर यह सुनिश्चित कर दिया जाए कि जिनके परिवार का कोई सदस्य मंत्री रहा है वह मंत्री नहीं बनेगा और जिनके परिवार के लोग मुख्यमंत्री रहे हैं वे मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं तो यह भारतीय राजनीति में परिवारवाद के अंत की शुरुआत हो जाएगी। इससे नए लोगों में या पहली पीढ़ी के राजनेताओं में बेहतर करने की आकांक्षा जगेगी, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अच्छे लोग राजनीति की ओर आकर्षित होंगे। यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है और इसमें कोई संवैधानिक प्रावधान बाधा भी नहीं बनेगा।

Also Read: बांग्लादेशः आपस में टकराव

इसके बाद सभी पार्टियां इस सिद्धांत को लागू कर सकती हैं। कानून बना कर रोकने की बजाय पार्टियां यह परंपरा बना सकती हैं कि पहले मंत्री रहे लोगों के परिवार से किसी को मंत्री नहीं बनाएंगी और सांसदों व विधायकों के परिवार के सदस्यों को चुनाव लड़ने की टिकट नहीं देंगी। हालांकि यह एक आदर्श की बात है और राजनीति व आदर्श एक दूसरे के विरोधी विचार हैं, इसलिए बहुत उम्मीद तो नहीं की जा सकती है। परंतु प्रधानमंत्री मोदी प्रतिबद्धता जता रहे हैं और चीफ जस्टिस ने एक पहल की है तो नए साल के मौके पर उम्मीद जताने में कोई समस्या भी नहीं है।

Tags :

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *