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ऑपरेशन सिंदूर पर अब मुश्किल राजनीति

मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान की सरजमीं पर स्थित आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने के लिए हुए सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर का राजनीतिक नैरिटव बनाने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने देश का तूफानी दौरा किया है। हरियाणा से लेकर राजस्थान और फिर गुजरात से लेकर बिहार, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के उन्होंने दौरे किए हैं। सोचें, अभी सिर्फ बिहार में विधानसभा चुनाव है।

लेकिन प्रधानमंत्री देश का दौरा कर रहे हैं और हर जगह लोगों के दिल दिमाग में ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के खिलाफ मिली निर्णायक जीत का नैरेटिव स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने ‘गोली का जवाब गोले से देने’, ‘घर में घुस कर मारने’, ‘बिल से खींच कर मारने’ जैसे डायलॉग्स भी बोले।

ध्यान रहे सैन्य अभियान पर राजनीतिक विमर्श स्थापित करना हमेशा आसान होता है। परंतु इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रास्ते में पहले दिन से बाधाएं आ रही हैं और अब तीनों सेनाओं के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान की इस स्वीकारोक्ति ने कि, पाकिस्तान के साथ संघर्ष के पहले दिन भारत ने भी अपने लड़ाकू विमान खोए, उनके अभियान को और मुश्किल बना दिया है। जनरल चौहान के बयान ने पाकिस्तान की प्रोपेगेंडा मशीनरी को बिना मांगे एक बड़ी जीत दे दी है और भारत में बन रहे राजनीतिक विमर्श को कमजोर कर दिया है।

अभी तक ऑपरेशन सिंदूर का राजनीतिक विमर्श बनाने के रास्ते की एक बड़ी बाधा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिख रहे थे। वे 10 मई से लगातार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराई। उन्होंने यहां तक कहा कि व्यापार रोकने की धमकी देकर उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों को युद्ध रोकने के लिए कहा। ट्रंप प्रशासन ने वहां की एक अदालत में हलफनामा देकर यह बात कही है कि ट्रंप की टैरिफ लगाने की असीमित क्षमता ने दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों का युद्ध रूकवाया अन्यथा लाखों लोगों की जान जा सकती थी।

मोदी सरकार के नैरेटिव को झटका लगा

परंतु नरेंद्र मोदी, उनकी पीआर टीम और पिछले 11 साल में मीडिया व सोशल मीडिया में बने राइट विंग के इकोसिस्टम ने ट्रंप और उनके प्रशासन के दावों को खारिज करने के लिए कई नैरेटिव गढ़ लिए हैं। देश की जनता भी सीजफायर और ट्रंप की भूमिका पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है। उसकी नजर में यह महत्वपूर्ण है कि भारत ने पाकिस्तान को उसकी सीमा में घुस कर ठोक दिया।

लेकिन जनरल अनिल चौहान के बयान से पाकिस्तान के खिलाफ मिली निर्णायक जीत का नैरेटिव कमजोर होगा। जनरल चौहान शांगरी ला डायलॉग्स में हिस्सा लेने के लिए सिंगापुर गए थे। वहां उन्होंने ‘ब्लूमबर्ग’ और ‘रायटर्स’ को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘असली मुद्दा यह नहीं है कि कितने विमान गिरे, बल्कि यह है कि वे क्यों गिरे और हमने उनसे क्या सीखा? भारत ने अपनी गलतियों को पहचाना, उन्हें जल्दी सुधारा और फिर दो दिन के भीतर दुश्मन के ठिकानों को लंबी दूरी से निशाना बनाकर एक बार फिर प्रभावी तरीके से जवाब दिया’।

हालांकि उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान जो छह विमान मार गिराने का दावा कर रहा है वह पूरी तरह से गलत है। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि पहले ही दिन भारत के लड़ाकू विमान गिरे थे। उनकी इस बात से ऐसा ध्वनित होता है कि पाकिस्तान ने हार नहीं मानी थी और उसने पलटवार किया था, जिसमें भारत को भी नुकसान हुआ।

एक तरफ प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जीत मिली और भारत के हमले से घबरा कर वह घुटनों पर आ गया और सीजफायर के लिए गिड़गिड़ाने लगा तो दूसरी ओर सीडीएस जनरल चौहान ने कहा कि कोई भी युद्ध बिना नुकसान के नहीं होता है और भारत ने भी अपने विमान खोए।

अगर पहले दिन से भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष में संपूर्ण नियंत्रण और निर्णायक जीत का नैरेटिव नहीं बनाया होता तो जनरल चौहान का बयान उतना असर नहीं डाल पाता, जितना अब डाल रहा है। भारत ने पहले दिन कहा था कि संघर्ष पूरी तरह से एकतरफा था, भारत के नियंत्रण में था और भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। लेकिन अब जनरल चौहान के बयान के बाद नैरेटिव बदल सकता है।

हालांकि अब भी भारतीय सेना की कामयाबी या पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट करने के दावे पर किसी को संदेह नहीं है और न उस पर सवाल उठाया जा रहा है लेकिन पाकिस्तान को पूरी तरह से घुटनों पर ला देने का नैरेटिव कमजोर पड़ेगा। उलटे पाकिस्तान के इस नैरेटिव को बल मिलेगा कि उसने भारत को बराबरी की टक्कर दी। वैसे भी अचानक सीजफायर होने से विश्व बिरादरी में भारत और पाकिस्तान का संघर्ष बराबरी पर छूटने की धारणा बनी है। अब वह धारणा मजबूत होगी।

सामरिक मामलों के जानकार तभी कह रहे हैं कि सांगरी ला डायलॉग्स में सीडीएस जनरल अनिल चौहान को नहीं जाना चाहिए था और अगर वे गए भी तो इतने महत्वपूर्ण मसले पर उनको बयान नहीं देना चाहिए था। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि भारत को बात छिपाए रखना चाहिए था।

भारत को इसका खुलासा करना चाहिए था लेकिन वह खुलासा विदेशी जमीन की बजाय भारत में होना चाहिए था, जहां अपने नुकसान की जानकारी के साथ साथ पाकिस्तान को हुए नुकसान का पूरा ब्योरा बताया जाता। सिंगापुर में जहां सांगरी ला डायलॉग्स के दौरान जनरल चौहान ने यह खुलासा किया वहां पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल भी था।

पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन साहिर शहजाद मिर्जा की अध्यक्षता में उसका डेलिगेशन पहुंचा था, जिसने जनरल चौहान की बातों के आधार पर अपने दावे को प्रचारित किया। इससे पाकिस्तान की सेना को घरेलू नैरेटिव अपने पक्ष में बनवाने में मदद मिली है। अचानक हुए सीजफायर से पाकिस्तान की सेना यह धारणा बनवाने में कामयाब रही कि उसने भारत को जवाब दिया है और अब जनरल चौहान की बातों से भी आम पाकिस्तानियों के बीच सेना के लिए सकारात्मक माहौल बन रहा है। इससे सीमा पर संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।

भारत के एकतरफा सैन्य अभियान की कामयाबी की धारणा को सीडीएस के बयान से नुकसान हुआ है तो दूसरी ओर दुनिया भर के देशों के दौरे पर गए भारतीय नेता, सांसद और राजदूतों का प्रतिनिधिमंडल भी अपनी यात्रा पूरी करके लौट रहा है, जिसको कुछ भी हासिल नहीं होने की धारणा बनी है। भारत का प्रतिनिधिमंडल 33 देशों में गया लेकिन किसी ने पाकिस्तान का नाम लेकर यह नहीं कहा कि वह आतंकवाद को पालने पोसने वाला देश है इसलिए उसके खिलाफ सबको मिल कर कार्रवाई करनी चाहिए।

इसके उलट पाकिस्तान के नेताओं द्वारा चीन, तुर्किए और रूस के दौरे ने उसके अलग थलग होने की धारणा को भी पलट दिया। उसे दुनिया के देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से मदद मिल रही है। सो, सामरिक व कूटनीतिक धारणा में पाकिस्तान अलग थलग नहीं हुआ दिख रहा है। इससे भी घरेलू राजनीति का विमर्श प्रभावित होगा। ऊपर से भाजपा के विजय शाह, जगदीश देवड़ा या रामचंद्र जांगड़ा जैसे नेताओं के बयान और सिंदूर बांटने आदि की झूठी सच्ची खबरों से भी भाजपा के लिए चुनावी माहौल बनाना थोड़ा मुश्किल हो गया है।

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Pic Credit: ANI

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