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मोदी क्यों इतनी कटुता बढ़ा रहे?

मोदी क्यों इतनी कटुता बढ़ा रहे?

Image Source: ANI

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बदलेंगे। वे विपक्ष के साथ विपक्ष और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की तरह बरताव करना शुरू करेंगे। यह भी लग रहा था कि उनकी पार्टी भी अब विपक्षी पार्टियों का सम्मान करेगी क्योंकि देश की जनता ने उनको मजबूत विपक्ष के तौर पर चुना है। गठबंधन की सरकार बनने के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने अपने को हालात के अनुरूप ढाला और मोदी सरकार की जगह हर बार एनडीए सरकार कहना शुरू किया उससे भी लगा था कि प्रधानमंत्री अब पहले से ज्यादा समावेशी होंगे।

लेकिन सरकार के तीन महीने बीतते बीतते फिर वहीं पुरानी कहानी दोहराई जाने लगी है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने उसी अंदाज में राहुल गांधी और कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों पर हमला शुरू किया है तो खुद प्रधानमंत्री ने भी चुनाव आते ही विपक्ष को खास कर कांग्रेस को जानी दुश्मन मान कर उस पर ऐसे कटु हमले शुरू किए हैं, जिसकी उम्मीद सभ्य लोकतांत्रिक देशों में आमतौर पर नहीं की जाती है। हालांकि अब तो सभ्यता, शिष्टाचार और लोकतंत्र सबके मायने बदल रहे हैं। अमेरिका जैसे देश में जब कुत्ते, बिल्लियों और काले, गोरे और बाहरी, भीतरी का ही प्रचार मुख्य हो गया है तो भारत के लिए भी क्या ही कहा जा सकता है!

फिर भी राजनीति में और चुनाव प्रचार में इतनी कटुता बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। हर समय धारणा की लड़ाई लड़ते रहना और धारणा के प्रबंधन में लगे रहना भी राजनीति नहीं है। इसी तरह हर समय राजनीति में स्पिन मास्टर्स का इस्तेमाल भी कोई अच्छी बात नहीं है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा लगातार अपने लिए धारणा प्रबंधन के काम में लगी रहती है और साथ ही विपक्ष के बारे में धारणा बिगाड़ने के लिए हमेशा स्पिन मास्टर्स का इस्तेमाल  करती रहती है।

मिसाल के तौर पर राहुल गांधी से अमेरिका में पूछा गया था कि भारत में आरक्षण कब खत्म होगा तो उन्होंने कहा कि जब समानता आ जाएगी और सबको समान अवसर उपलब्ध होने लगेंगे तभी यह खत्म होगा। सोचें, इसमें क्या गलत है या क्या संविधान के खिलाफ है? संविधान में भी तो शुरुआत में आरक्षण के लिए एक समय सीमा तय की गई थी! राहुल ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा, जो संविधान के खिलाफ हो या आरक्षण का विरोध करने वाला हो।

लेकिन चूंकि उन्होंन एक जगह आरक्षण और दूसरी जगह खत्म शब्द बोला है तो स्पिन मास्टर्स ने उसको ऐसा प्रस्तुत किया कि उन्होंने आरक्षण खत्म करने की बात कही है। जबकि हकीकत यह है कि राहुल ने अनंतकाल तक आरक्षण जारी रहने की बात कही है। उन्होंने कहा कि समानता आ जाएगी तब यह खत्म होगा। लेकिन सबको पता है कि समानता कभी नहीं आएगी। पांच हजार साल पहले भी समानता नहीं थी और पांच हजार साल बाद भी नहीं आएगी।

सो, राहुल ने आरक्षण खत्म करने की बात नहीं कही थी। लेकिन यह बात प्रचारित करके उनकी जुबान काटने की बात होने लगी। महाराष्ट्र के दो नेताओं ने ऐलान किया कि राहुल गांधी की जुबान काट लेनी चाहिए। एक नेता ने तो इसके लिए 11 लाख रुपए के इनाम की घोषणा कर दी। क्या प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता इसकी गंभीरता को समझ रहे हैं? क्या उनको पता है कि इस तरह की घोषणाओं का क्या असर होता है? जिस कट्टरपंथी, जिहादी सोच का आज पूरी दुनिया में विरोध हो रहा है उस सोच की शुरुआत यही से तो होती है। ऐसे ही कोई ऐलान करता है कि अमुक व्यक्ति का सर तन से जुदा करने पर या जुबान काटने पर इनाम दिया जाएगा तो सनकी लोग सर काटने या जुबान काटने पहुंच जाते हैं।

आरक्षण पर ऐसी बात, जो राहुल गांधी ने नहीं कही है उसके लिए उनकी जुबान काटने का फतवा कटुता बढ़ाने वाला तो है ही साथ ही समाज में एक खतरनाक कट्टरपंथी विचार के मजबूत होने का प्रतीक भी है।

इसी तरह कांग्रेस छोड़ कर थोड़े दिन पहले ही भाजपा में गए और चुनाव हारने के बाद भी केंद्रीय मंत्री बने रवनीत सिंह बिट्टू ने राहुल गांधी को आतंकवादी नंबर एक कह दिया। उन्होंने कहा कि वे सबसे बड़े आतंकवादी हैं और उन पर इनाम घोषित होना चाहिए। किस बात के लिए इनाम घोषित होना चाहिए? रवनीत सिंह बिट्टू के दादा खुद आतंकवाद का शिकार हुए हैं। उनके मुख्यमंत्री रहते खालिस्तानी आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी थी।

उनको पता है कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी की भी आतंकवादियों ने हत्या की थी। फिर भी वे राहुल गांधी के लिए इनाम घोषित करने की बात कर रहे हैं। किसलिए? अपने नए राजनीतिक आकाओं के प्रति स्वामीभक्ति दिखाने के लिए ही तो! अन्यथा इतना कटु होने की तो कोई जरुरत नहीं थी।

यह सिर्फ छोटे छोटे नेताओं की बात नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस समय चुनाव प्रचार में कर रहे हैं और जम्मू कश्मीर से लेकर हरियाणा और महाराष्ट्र तक की सभाओं में वे कांग्रेस और अन्य पार्टियों के लिए जैसे कटु वचन बोल रहे हैं वह हैरान करने वाला है। अभी थोड़े दिन पहले खत्म हुए लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने इसी कटुता के साथ विपक्ष के खिलाफ प्रचार किया था लेकिन उसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ। फिर भी वे उसी तरह से प्रचार कर रहे हैं। उनके हिसाब से कांग्रेस को अर्बन नक्सल चला रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस को टुकड़े टुकड़े गैंग चला रहा है। वे कहते हैं कि कांग्रेस की आत्मा से देशप्रेम की भावना का लोप हो गया है। वे कहते हैं कि कांग्रेस को उनका गणेश पूजन करना पसंद नहीं है। प्रधानमंत्री के हिसाब से कांग्रेस देश की सबसे भ्रष्ट पार्टी है। कांग्रेस परिवारवादी है। कांग्रेस नाकारा है, जिसने देश को गर्त में पहुंचा दिया। कांग्रेस आरक्षण विरोधी है। महिला विरोधी है। दलित, आदिवासी विरोधी है। कांग्रेस देश विरोधी ताकतों के साथ है। उनके हिसाब से कांग्रेस और पाकिस्तान का एजेंडा एक है।

हकीकत यह है कि कांग्रेस देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है, जिसके करीब एक सौ लोकसभा सांसद हैं और कई राज्यों में सरकार है। संसद में प्रधानमंत्री उसके साथ ही बैठते हैं। अभी चार संसदीय समितियों की अध्यक्षता कांग्रेस को मिली है। ऐसे में अगर वह देश विरोधी ताकतों से मिली है या अर्बन नक्सल उसे चला रहे हैं या टुकड़े टुकड़े गैंग उसके साथ जुड़ा है और प्रधानमंत्री को यह पता है तो हैरानी है कि उस पर कार्रवाई करने की बजाय वे चुनावी सभाओं में यह बात कह कर वोट मांग रहे हैं! इसका मतलब है कि देश विरोधी ताकतों की कीमत पर भी भाजपा को वोट ही चाहिए, कोई कार्रवाई नहीं करनी है!

हालांकि ऐसा नहीं है कि यह कटुता सिर्फ एक तरफ से फैलाई जा रही है। नरेंद्र मोदी और भाजपा की बात का ज्यादा जिक्र इसलिए है क्योंकि भाजपा सत्तारूढ़ दल है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। दूसरी ओर कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों की ओर से भी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी व अमित शाह के प्रति ऐसी ही कटुता दिखाई जाती है। राहुल गांधी खुद चौकीदार चोर है के नारे लगवाते रहे हैं और प्रधानमंत्री को कायर, नकारा कह चुके हैं। इसके अलावा कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री को बड़े अपशब्द कहे हैं। जेपी नड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में इन सबका जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री के लिए 110 अपशब्द लिखे और बोले गए हैं। जाहिर है दोनों तरफ से कमोबेश एक जैसी कटुता फैलाई जा रही है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को जानी दुश्मन मान कर उस पर हमले किए जा रहे हैं। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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