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लोगों की शोषक, नाकारा नियामक एजेंसियां

regulatory agenciesImage Source: ANI

regulatory agencies: भारत में जितनी नियामक एजेंसियां हैं, शायद दुनिया के किसी और देश में उतनी नहीं होंगी।

लेकिन इतनी नियामक एजेंसियां मिल कर भी भारत के आम नागरिक या आम उपभोक्ता के हितों की रक्षा नहीं कर पाती हैं।

या तो ये नियामक एजेंसियां किसी लायक नहीं हैं यानी उनके पास कोई अधिकार नहीं है या उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता है क्योंकि कॉरपोरेट जगत अपने हिसाब से ही चीजों को संचालित करता है या इन नियामक एजेंसियों की ही कॉरपोरेट के साथ मिलीभगत होती है, जिसकी वजह से ये कुछ नहीं कर पाती हैं।

भारत के आम उपभोक्ताओं की परेशानी में नियामक एजेंसियों की इन तीन कमियों का कुछ न कुछ योगदान है। भारतीय प्रतिभूति व विनियम बोर्ड यानी सेबी की चेयरपर्सन की जैसी कहानियां पिछले कुछ समय में सामने आईं, वह सबने देखी है।(regulatory agencies)

फिर यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सेबी शेयर बाजार में निवेश करने वाले आम भारतीयों के हितों की रक्षा कर पाएगा? लेकिन यह सिर्फ सेबी या किसी एक नियामक एजेंसी का मामला नहीं है। लगभग सबकी स्थिति ऐसी ही है।

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मिसाल के तौर पर विमानन सेक्टर की नियामक एजेंसी है नागरिक विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए। इसका मुख्य काम विमान से उड़ान भरने वाले यात्रियों के हितों की रक्षा करना है।

लेकिन विमानन कंपनियां किस तरह से आम यात्रियों को परेशान करती हैं और उनका कितना शोषण करती हैं इसकी खबरें पढ़ कर सिहरन होती है।(regulatory agencies)

अभी महाकुंभ के समय प्रयागराज जाने वाले उड़ानों का किराया पांच गुना या छह गुना बढ़ा हुआ है। आने जाने की टिकट 50 हजार रुपए में बिक रही है।

डीजीसीए ने विमानन कंपनियों को उड़ानों की संख्या बढ़ाने को कहा और किराया तर्कसंगत बनाने को भी कहा।

लेकिन किसी भी विमानन कंपनी ने डीजीसीए की इस अपील पर ध्यान देने की जरुरत नहीं समझी। विमानन कंपनियां मनमाने तरीके से किराया तय करती हैं।(regulatory agencies)

विमानन सेक्टर में दो कंपनियों का लगभग एकाधिकार हो गया है और सारी चीजें उनके हिसाब से तय होती हैं।

विमान में सीट की संख्या से ज्यादा यात्री

सोचें, क्या किसी सभ्य देश में यह कल्पना की जा सकती है कि किसी विमान में सीट की संख्या से ज्यादा यात्री चढ़ा दिए जाएं और एक यात्री के खड़े होकर यात्रा करके, जिसकी वजह से विमान को उड़ान भरने के बाद लौटना पड़े?

क्या यह कल्पना की जा सकती है कि पटना जाने वाला यात्री उदयपुर जाने वाले विमान में सवार हो जाए और विमान उसे लेकर रवाना हो जाए? लेकिन भारत में यह सब होता है।

सिर्फ पिछले साल मई में 2,719 यात्रियों को बिल्कुल आखिरी समय में विमान में चढ़ने से रोक दिया गया, जबकि उनके पास वैध टिकट थी।(regulatory agencies)

लेकिन विमानन कंपनियों ने फ्लाइट्स ओवरबुक्ड कर रखी थीं यानी सीट से ज्यादा यात्रियों की टिकट कन्फर्म कर दी थीं।

पिछले दिनों खबर आई कि एक उड़ान 10 घंटे लेट हो गई और यात्री हवाईअड्डे पर फंसे रहे। दूसरे देश में यात्रियों के फंसे होने की खबरें आती हैं।

सर्दियों में विमान घंटों देरी से उड़ान भरते हैं। उड़ानों का अचानक रद्द हो जाना भी बेहद आम है। परंतु किसी भी समय डीजीसीए यात्रियों को राहत नहीं दिला पाता है।(regulatory agencies)

भारत में कनेक्टिविटी बेहद खराब(regulatory agencies)

ऐसे ही एक दूसरी मिसाल दूरसंचार की नियामक एजेंसी ट्राई यानी भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की है।

ट्राई को टेलीफोन और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करनी है। लेकिन कोई भी दूरसंचार कंपनी ट्राई के निर्देशों पर ध्यान देने की जरुरत नहीं समझती है।(regulatory agencies)

भारत में कनेक्टिविटी बेहद खराब है और बातचीत के बीच में कॉल ड्रॉप होना बेहद आम है। इसका कारण यह है कि कंपनियों ने बिना बुनियादी ढांचे का विकास किए करोड़ों की संख्या में कनेक्शन बांट दिए।

गुणवत्तापूर्ण सेवा देना उनकी प्राथमिकता में नहीं है। ऊपर से कंपनियां मनमाना शुल्क वसूलती हैं। विमानन सेक्टर की तरह दूरसंचार क्षेत्र में भी दो कंपनियों का एकाधिकार बन गया है।

इसलिए बेचारे उपभोक्ता असहाय हैं। भारत में मोबाइल फोन उपयोक्ताओं में 25 करोड़ ऐसे हैं, जो फीचर फोन इस्तेमाल करते हैं।(regulatory agencies)

यानी उनके पास स्मार्ट फोन नहीं है और वे सिर्फ फोन करने, सुनने या मैसेज के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कंपनियों का कोई भी प्लान बिना डाटा के नहीं था।

डाटा वाला प्लान का शुल्क बढ़ाया

25 करोड़ लोगों के पास ऐसे मोबाइल हैंडसेट हैं, जिनमें वे डाटा इस्तेमाल नहीं कर सकते। फिर भी उनको डाटा वाला प्लान बेचा जा रहा था।

पिछले दिनों ट्राई ने उनके लिए बिना डाटा वाला प्लान लॉन्च करने की हिदायत दूरसंचार कंपनियों को दी। इसका मकसद यह था कि फीचर फोन वाले उपयोक्ताओं को सस्ता प्लान मिले।(regulatory agencies)

दूरसंचार कंपनियों ने डाटा वाला प्लान लॉन्च तो किया लेकिन उसका शुल्क बढ़ा दिया। इतना ही नहीं कंपनियों ने डाटा के साथ वाले प्लान को भी रिवाइज किया और उसकी भी कीमतें बढ़ा दीं।

यानी ट्राई ने दखल दिया को फीचर फोन और स्मार्ट फोन दोनों के यूजर्स पर कंपनियों ने अतिरिक्त बोझ लाद दिया।

तो फिर नियामक की क्या भूमिका(regulatory agencies)

इसी तरह बीमा सेक्टर में नियामक एजेंसी भारतीय बीमा नियामक व विकास प्राधिकरण यानी इरडा है। इसने खुद ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत की बीमा कंपनियां बीमाधारकों के दावों का निपटारा ठीक से नहीं कर रही हैं।

इसकी रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में 83 फीसदी दावों का निपटारा किया गया। कंपनियों ने 11 फीसदी दावे खारिज कर दिए, जबकि 31 मार्च 2024 तक छह फीसदी दावे लंबित थे।

स्वास्थ्य बीमा के मामले में कंपनियों के आंकड़े और खराब हैं। सरकारी कंपनियां तो फिर भी 90 से 98 फीसदी तक दावे निपटा रही हैं और क्लेम की गई रकम के 90 फीसदी या उससे कुछ ज्यादा तक भुगतान कर रही हैं

लेकिन निजी कंपनियां स्वास्थ्य बीमा के 80 फीसदी से कम ही दावे निपटा रही हैं और क्लेम की गई राशि में भी 80 फीसदी से कम का ही भुगतान कर रही हैं।(regulatory agencies)

देश की शीर्ष स्वास्थ्य बीमा कंपनियों में से एक का रिकॉर्ड तो 60 फीसदी से भी कम क्लेम सेटल करने का है। कंपनियां कोई न कोई नुक्स निकाल कर बीमा के दावे खारिज कर रही हैं।

एक तो भारत में वैसे ही स्वास्थ्य बीमा लेने वालों की संख्या अनुपात से बहुत कम है और उनमें भी अगर निजी कंपनियां आधे लोगों का बीमा क्लेम खारिज करें तो फिर नियामक की क्या भूमिका रह जाती है!(regulatory agencies)

उबर मनमाने तरीके से किराया वसूल रही

अक्सर यह खबर आती है कि कैब एग्रीगेटर यानी ओला और उबर जैसी कंपनियां मनमाने तरीके से किराया वसूल रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक एंड्रॉयड फोन से टैक्सी बुकिंग का किराया कम आता है तो आईफोन से बुकिंग पर किराया ज्यादा आता है।

एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक अगर किसी के फोन की बैटरी कम है तो उसको टैक्सी का किराया ज्यादा दिखाया जाता है।(regulatory agencies)

भीड़ भाड़ के समय या त्योहारों के दिन में कंपनियां मनमाने तरीके से किराया बढ़ाती हैं, जिसे सर्ज प्राइस कहा जाता है। बरसों से इस पर बहस हो रही है लेकिन टैक्सी से यात्रा करने वालों को कोई राहत हासिल नहीं हुई है।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय या उपभोक्ता संरक्षण आयोग की ओर से नोटिस भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। एक तरह से आम नागरिक इन कैब एग्रीगेटर्स के बंधक हो गए हैं।

यह सिर्फ टैक्सी का मामला नहीं है। फूड एग्रीगेटर्स भी इसी तरह मनमाने तरीके से कीमतें बढ़ा रहे हैं और दूसरी तमाम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है।(regulatory agencies)

कीमतों में बढ़ोतरी के साथ साथ उनकी पैकिंग छोटी होती जा रही है। यानी उपभोक्ता स्रिंकफ्लेशन का शिकार हो रहे हैं।

पाम ऑयल मिला कर आइसक्रीम बेची जा रही(regulatory agencies)

भारत में खाद्य व पेय उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली एक एजेंसी है एफएसएसएआई यानी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया। इसका काम खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की है।

लेकिन लगभग हर दिन देश के किसी न किसी हिस्से से मिलावटी वस्तुओं की बिक्री की खबरें आती हैं। कंपनियां तमाम नियमों और शर्तों का उल्लंघन करती हैं।

छोटे अक्षरों में वास्तविक सामग्री का जिक्र किया जाता है और बड़े बड़े अक्षरों में कुछ और बता कर उन्हें बेचा जाता है।

सरसों तेल के बड़े ब्रांड भी छोटे अक्षरों में मल्टीसोर्स का जिक्र करके मजे में उत्पाद बेच रहे हैं।(regulatory agencies)

राइस ब्रायन मिला कर सरसों तेल बेचे जा रहे हैं और पाम ऑयल मिला कर आइसक्रीम बेची जा रही है।

सरेआम उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है लेकिन कोई नियामक एजेंसी कुछ नहीं कर पा रही है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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