Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

अचानक सब रिटायरमेंट की बात करने लगे

Alipurduar [West Bengal], May 29 (ANI): Prime Minister Narendra Modi addresses a public meeting, in Alipurduar on Thursday. (ANI Photo)

बड़े आश्चर्य की बात है कि अचानक देश की फिजां में रिटायरमेंट की चर्चा शुरू हो गई। जिधर सुनिए उधर रिटायरमेंट की बातें हो रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल 17 सितंबर को 75 साल के होने वाले हैं और उससे पहले रिटायरमेंट की चर्चा हो रही है, उसका महत्व व जरुरत समझाई जा रही है और रिटायरमेंट के बाद की योजनाओं की चर्चा हो रही है। क्या यह महज एक संयोग है या इन चर्चाओं की टाइमिंग का कुछ और इशारा है? राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक ने 75 साल की उम्र में रिटायर होने की आवश्यकता बताई तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रिटायर होने के बाद की अपनी योजना बताई।

उधर देश के जाने माने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने 70 साल की उम्र में रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि अब वे प्रैक्टिस नहीं करेंगे। इस बीच भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने याद दिलाया कि लालकृष्ण आडवाणी 90 साल की उम्र तक सांसद रहे थे। इस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी अगले कई बरसों राजनीतिक रूप से सक्रिय बने रहने का संकेत दिया।

इन बयानों और घटनाक्रमों पर विचार करने से पहले यह देखने की जरुरत है कि क्या सचमुच भाजपा में 75 साल की उम्र में रिटायर होने का कोई नियम है? अगर नहीं है तो क्यों प्रधानमंत्री मोदी के 75 साल का होने को इतना मुद्दा बनाया जा रहा है? ध्यान रहे 75 साल की उम्र में रिटायर किए जाने का कोई घोषित नियम नहीं है। हालांकि अघोषित रूप से इसे लागू किया गया है।  भले हर बार 75 की उम्र पर नेताओं को रिटायर नहीं कराया गया हो लेकिन नेताओं को रिटायर कराने में उम्र एक पैमाना बना है। लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार से लेकर सुमित्रा महाजन और बाबूलाल गौर तक अनेक मिसाल है, जब उम्र के आधार पर नेताओं को घर बैठा दिया गया।

हालांकि 75 साल से ज्यादा उम्र के अनेक नेताओं को भाजपा ने चुनाव लड़ाया है। सबसे ताजा मिसाल झारखंड में रामचंद्र चंद्रवंशी की है, जिनको भाजपा ने पिछले साल 79 साल की उम्र में विश्रामपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया था। ऐसी मिसाल हर राज्य में है। अब सवाल है कि जब उम्र की सीमा आधिकारिक रूप से तय नहीं की गई है फिर नरेंद्र मोदी के 75 साल की उम्र में रिटायर होने के कयास क्यों लगाए जा रहे हैं और क्यों इस तरह की बातें हो रही हैं, जिनसे उनके ऊपर दबाव बने?

इसका जवाब पिछले साल के लोकसभा चुनाव के नतीजों में देखा जा रहा है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी भाजपा चार सौ सीट के लिए लड़ रही थी। लेकिन भाजपा को 240 सीटें मिलीं। 2019 के मुकाबले उसको 63 सीटों का नुकसान हुआ। उसके बाद मोदी और उनकी टीम बैकफुट पर आई। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू सहित अन्य घटक दलों के समर्थन से सरकार बनी। हालांकि उसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में चुनावी जीत से प्रधानमंत्री का कांफिडेंस वापस लौटा।

इसके बाद उन्होंने विदेश के धुआंधार दौरे किए और एक साल के अंदर उन्होंने 12 देशों का सर्वोच्च नागरिक सम्मान हासिल किया। उनके 11 साल के कार्यकाल में पहले 10 साल में 14 सम्मान मिले थे लेकिन तीसरे कार्यकाल के पहले साल में 12 सम्मान मिले। इस तरह उन्होंने घरेलू राजनीति की कमजोरी को वैश्विक मंच पर विश्वगुरू के रूप में स्थापित होने के नैरेटिव से बदलने का प्रयास किया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इसमें बहुत कामयाबी नहीं मिली है।

बहरहाल, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान बहुत दिलचस्प है। उन्होंने हिंदुवादी विचारक मोरोपंत पिंगले के ऊपर लिखी एक किताब के विमोचन में कहा, ‘जब आपको 75 साल पूरे होने पर शॉल ओढ़ाई जाती है तो समझिए कि दूसरों का मौका देने का समय आ गया है। आपको किनारे हो जाना चाहिए’। यह बात उन्होंने अपने संदर्भ में कही। ध्यान रहे संघ  प्रमुख भी 11 सितंबर को 75 साल के हो रहे हैं। तभी यह कयास लगाया जा रहा है कि क्या मोहन भागवत भी रिटायर होंगे और इससे प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर रिटायर होने का दबाव बनेगा? हालांकि संघ में भी 75 साल की उम्र में रिटायर होने का नियम नहीं है।

मोहन भागवत से पहले केएस सुदर्शन संघ प्रमुख थे और 78 साल की उम्र में सेहत की वजह से रिटायर हुए। फिर भी अगर मोहन भागवत कुछ इशारा कर रहे हैं तो उसका कोई न कोई मतलब है। कहा जा रहा है कि भाजपा के अंदर भी संघ से नजदीकी रहने वाले कई नेता हैं, जो चाहते हैं कि 75 साल की उम्र में रिटायर होने का नियम प्रधानमंत्री मोदी पर भी लागू हो। परंतु मुश्किल यह है कि कोई भी यह बात खुल कर नहीं कह रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी रिटायरमेंट की चर्चा की। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि वे रिटायर होने के बाद योग, ध्यान करेंगे। वेद, उपनिषद पढ़ेंगे और बागवानी करेंगे। इसका मतलब है कि वे अंतिम समय तक किसी पद पर बने रहने या राजनीति में सक्रिय रहने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। ध्यान रहे भारत में हर नेता की इच्छा यही रहती है कि वह पद रहते हुए ही अंतिम सांस ले। उम्र बची रहे और स्वेच्छा से कोई राजनीति से रिटायर हो जाए यह दुनिया के दूसरे आधुनिक, लोकतांत्रिक, पूंजीवादी, उपभोक्तावादी देशों में तो होता है लेकिन भारत में, जहां त्याग और अध्यात्म की महिमा बखानी जाती है वहां नहीं होता है।

इसलिए अमित शाह की कही बात का बहुत महत्व है। वे अभी 61 साल के होने वाले है और उन्होंने योग, ध्यान, एक्सरसाइज से अपने को पहले से काफी फिट बनाया है। सोचें, 61 साल की उम्र में वे रिटायर होने के बाद की योजना पर चर्चा कर रहे हैं! वे कब रिटायर होंगे यह नहीं कहा लेकिन उसके बाद की जो योजना बताई उसके हिसाब से शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हुए, एक निश्चित उम्र में रिटायर हो जाना होगा। सवाल है कि क्या उन्होंने भी प्रधानमंत्री को कोई इशारा दिया? कहा नहीं जा सकता है। पिछले चुनाव के समय अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी के सितंबर 2025 में रिटायर होने की बात कही थी और कहा था कि इस बार चुनाव अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हो रहा है।

तब अमित शाह ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया था और कहा था कि चुनाव के बाद मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे और 2029 में भी मोदी ही नेतृत्व करेंगे। यही बात भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने भी कही है। उन्होंने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी 90 साल की उम्र तक सांसद रहे। यह सही है कि आडवाणी 2014 का चुनाव लड़े थे और तब उनकी उम्र 84 साल थी। इसके बाद पांच साल वे सांसद रहे। जो हो इस बार प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन बहुत खास हो गया है। मोहन भागवत 75 साल पूरे करने पर क्या करते हैं और मोदी क्या करते हैं इस पर सबकी नजर होगी। अगर भागवत रिटायर होते हैं और मोदी नहीं होते हैं तो क्या होगा? अगर दोनों होते हैं तो क्या होगा और अगर दोनों रिटायर नहीं होते हैं तो क्या होगा? इन सवालों का जवाब सितंबर में और उसके बाद की राजनीति में मिलेगा।

Exit mobile version