पता नहीं, देश के हुक्मरानों को यह देख कर शर्म आती है या नहीं कि भारतीय नागरिक कैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या किसी भी सभ्य व विकसित देश की सीमा में अवैध रूप से घुसना चाहते हैं और पकड़े जाने पर अपमानित होकर निकाले जाते हैं या इस कोशिश में मर जाते हैं, घायल होते हैं? हमें तो बड़ी शर्म आती है। अभी एक आंकड़ा आया है कि इस साल के पहले नौ महीने में अमेरिका की सीमा में अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते हुए 90,415 भारतीय पकड़े गए हैं।
यह अमेरिका का सरकारी आंकड़ा है कि हर घंटे 10 भारतीय उसकी सीमा में अवैध रूप से घुसते हुए पकड़े जा रहे हैं। अमेरिका की बॉर्डर पुलिस उनको पकड़ कर वापस उस सीमा में भेज देती है, जहां से वे आए होते हैं। अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश में इस साल एक सौ भारतीयों ने जान गंवाई है और हजारों घायल हुए हैं। सोचें, दूसरे देश में जाने के लिए जेवर और जमीन बेच कर लोग लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं और ऊपर से इतना जोखिम भी उठा रहे हैं!
जो लोग अवैध रूप से अमेरिका में घुसने में कामयाब हो जाते हैं उनको अलग से पकड़ा जा रहा है और जहाज में भर कर भारत भेजा जा रहा है। इस साल अमेरिका अभी तक 11 सौ भारतीयों को निकाल कर वापस भेज चुका है। अवैध रूप से अमेरिका में घुसे भारतीयों से भरा एक जहाज तो 22 अक्टूबर को पंजाब पहुंचा है। अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश में पकड़े जा रहे लोगों में 50 फीसदी गुजराती हैं।
पहला स्थान कथित खाते-पीते, विकसित गुजरात के लोगों का है और उसके बाद पंजाब का नंबर है। सोचें, ये दोनों देश के अपेक्षाकृत संपन्न राज्य हैं। देश की गोबरपट्टी के मुकाबले इनके यहां प्रति व्यक्ति आय बेहतर है। औद्योगिक विकास बेहतर है और जीवन स्तर बेहतर है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल और ओडिशा के मजदूर इन राज्यों में कमाने जाते हैं और इन राज्यों के लोग अमेरिका, कनाडा में घुसने के लिए जान दे रहे हैं!
इसके सामाजिक, आर्थिक कारणों की पड़ताल करने की जरुरत है कि क्यों अपेक्षाकृत संपन्न राज्यों के नागरिक देश छोड़ना चाहते हैं? क्या उनको लग रहा है कि भारत में उनका जीवन स्तर बेहतर नहीं हो सकता है और उन्हें अपने व अपने बच्चों की चिंता में किसी दूसरे सभ्य और विकसित देश में जाना चाहिए? क्या उनको यह लग रहा है कि भारत उनके और उनके बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है या यहां की शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था उनके अनुकूल नहीं है?
क्या उनको भारत में विकास करने, आगे बढ़ने का अवसर मिलता नहीं दिख रहा है? क्या देश की विभाजनकारी राजनीति इसके लिए जिम्मेदार है या बढ़ता क्रोनी कैपिटलिज्म लोगों के अवसर छीन रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि बेहतर अवसर और बेहतर जीवन स्तर की तलाश से ज्यादा भेदभाव की नीतियां, सामाजिक तनाव, राजनीतिक विभाजन, आर्थिक असमानता आदि लोगों को मजबूर कर रही है कि वे देश छोड़ कर जाएं?
ये सवाल इसलिए हैं क्योंकि मध्य वर्ग या निम्न मध्य वर्ग के लोग ही बेहतर जीवन की तलाश में देश छोड़ कर नहीं भागना चाह रहे हैं। संपन्न और उच्च तबके का भी एक बड़ा हिस्सा किसी तरह दूसरे देश की नागरिकता लेने की कोशिश में है। भारत के गृह राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने संसद के पिछले सत्र में एक आंकड़ा दिया, जिसके मुताबिक 2015 से 2023 के बीच नौ साल में देश के 12 लाख 39 हजार से कुछ ज्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ कर किसी दूसरे देश की नागरिकता ली। उससे पहले सन 2000 से 2014 के 14 सालों में सिर्फ 61 हजार करोड़पतियों ने भारत की नागरिकता छोड़ी थी। यानी 2014 से पहले जो सालाना औसत करीब साढ़े चार हजार का था वह अब डेढ़ लाख का हो गया है।
पिछले नौ साल में हर दिन औसतन 377 लोगों ने भारत की नागिरकता छोड़ी। यह आंकड़ा उन लोगों का है, जो वैध तरीके से दूसरे देश में जाकर वहां की नागरिकता ले रहे हैं और भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं। ये लोग अवैध रूप से घुसने वालों से अलग हैं। अवैध रूप से दूसरे देशों में घुसने की कोशिश करने वाले बेहतर जीवन स्तर की तलाश में हैं लेकिन ये लोग बेहतर जीवन स्तर वाले हैं। ये करोड़पति और अरबपति लोग हैं या मेडिकल, इंजीनियरिंग के क्षेत्र के मेधावी पेशेवर लोग हैं। इनका पलायन ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि अपने धन और अपनी मेधा से ये लोग देश के लिए जो कर सकते थे, देश उससे वंचित हो रहा है। इनकी योग्यता और क्षमता का लाभ किसी और देश को मिल रहा है।
सोचें, एक तरफ हर दिन दावा किया जा रहा है कि भारत विश्वगुरू बन रहा है या भारत विश्वमित्र बन रहा है या भारत मैन्यूफैक्चरिंग का हब बन रहा है, भारत दुनिया के देशों के लिए निवेश का सबसे आकर्षक गंतव्य बन रहा है, भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है, देश में अमृतकाल चल रहा है, दुनिया भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है और दूसरी ओर यह हकीकत है कि भारत के नागरिक को किसी भी तरह किसी और देश में चले जाना है। इस विरोधाभास की व्याख्या कैसे हो सकती है? यह कैसे पता चलेगा कि भारत की असलियत क्या है, वह जिसका दावा किया जा रहा है या वह जो शर्मनाक आंकड़ों से जाहिर हो रहा है?
इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है कि आखिर भारत ऐसा क्यों हो गया? क्यों भारत के लोग यहां से वैध या अवैध तरीके का इस्तेमाल करके भाग जाना चाहते हैं? यह भी एक बड़ा सवाल है कि हमारी कूटनीति में सबसे अहम बात दुनिया के विकसित देशों से वीजा की भीख मांगना ही क्यों हैं? अभी हाल में जर्मनी के चांसलर भारत आए तो उनसे 80 हजार अतिरिक्त वीजा को लेकर मोलभाव किया गया।
हम इस बात पर खुश होते हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन या यूरोप का कोई देश भारत के छात्रों और पेशेवरों को इतने हजार या इतने लाख वीजा दे रहा है। इस बात पर भारत में लोग खुश होते हैं कि अमेरिका सबसे ज्यादा वीजा भारतीय छात्रों को दे रहा है। यह खुशी की नहीं चिंता और शर्म की बात होनी चाहिए कि हम हर सभ्य और विकसित देश के आगे वीजा के लिए हाथ फैलाए खड़े हैं या उसकी सीमा में अवैध रूप से घुसने के लिए जान दांव पर लगा रहे हैं। जब हम वीजा के लिए हाथ फैलाते हैं या अवैध रूप से किसी देश में घुसने का प्रयास करते हैं तो पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बेहद दयनीय प्रतीत होता है।
जब हम इस पर खुश होते हैं कि अमेरिका या ब्रिटेन हमारे छात्रों या पेशेवरों को इतनी संख्या में वीजा दे रहा है तो हम यह क्यों नहीं सोचते कि हम अमेरिका या ब्रिटेन के कितने छात्रों या पेशेवरों को वीजा दे रहे हैं? क्या भारत के किसी नागरिक ने कभी सोचा है कि कितने अमेरिकी, यूरोपीय, ब्रिटिश या ऑस्ट्रेलियाई नागरिक भारत में आकर बसना चाहते हैं, यहां की नागरिकता लेना चाहते हैं या यहां पढ़ना और काम करना चाहते हैं? कोई नहीं आ रहा है हमारे देश में बसने या यहां की नागरिकता लेने के लिए।
पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी जो थोड़ा सक्षम है वह भी यूरोप, अमेरिका या ब्रिटेन ही जाना चाहता है। यह स्थिति तभी बदलेगी, जब भारत को सचमुच एक साफ सुथरा, व्यवस्थित और अनुशासित देश बनाने का प्रयास होगा। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि हमें विश्वगुरू या विश्वमित्र बनने की जरुरत नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन या यूरोपीय देश अपने को विश्वगुरू या विश्वमित्र नहीं बताते हैं। भारत को भी एक सामान्य देश बनना है, जहां चौतरफा विकास हो, खुशहाली हो, गैर बराबरी न हो, हवा साफ सुथरी हो, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर व्यवस्था हो और सम्मानपूर्वक जीवन जीने की स्थितियां मौजूद हों।