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चुनाव तो लोक लुभावन घोषणाओं पर ही

लोक लुभावन

भाजपा की केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में लोक लुभावन घोषणाएं नहीं कीं तो इसके लिए उसकी बड़ी वाह-वाही हुई। मीडिया में यह नैरेटिव बना कि नरेंद्र मोदी की सरकार इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर इतने भरोसे में है कि उसे चुनावी साल के बजट में भी कोई लोक लुभावन घोषणा करने की जरुरत नहीं पड़ी। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? क्या सचमुच सरकार अगला चुनाव जीत लेने के भरोसे में है और इसलिए उसने अंतरिम बजट में बड़ी बड़ी घोषणाएं नहीं की और ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने से परहेज किया? असल में यह सचाई नहीं है। न तो केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी चुनावी जीत को लेकर पूरे भरोसे में है और न उसने लोक लुभावन घोषणाओं से परहेज किया है। बजट में भी ऐसी कई घोषणाएं हैं, जिनसे लाभार्थियों की संख्या बढ़ेगी। ये लाभार्थी ही भाजपा और नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े समर्थक हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे बड़ी लोक लुभावन घोषणा पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़ में कर दी थी। राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि उनकी सरकार मुफ्त में पांच किलो अनाज बांटने की योजना को अगले पांच साल तक जारी रखेगी। बहुत सोच समझ कर उन्होंने पांच साल का ऐलान किया। आमतौर पर चुनाव से पहले होने वाली घोषणाओं में यह खतरा रहता है कि जनता उसको समझ जाती है और मानती है कि चुनाव के बाद इस घोषणा पर अमल नहीं होगा। इसलिए सीधे पांच साल के लिए इसे बढ़ाया गया ताकि जनता को भरोसा रहे कि जून के बाद भी योजना जारी रहेगी।

ध्यान रहे इससे पहले हर बार छह छह महीने के लिए इस योजना को बढ़ाया जाता था। इस योजना के लाभार्थियों की संख्या 80 करोड़ है। इनको हर महीने पांच किलो अनाज देने की योजना पर हर साल करीब दो लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा। सवाल है कि जब नवंबर में ही दो लाख करोड़ रुपए की सालाना खर्च वाली लोक लुभावन योजना की घोषणा हो गई तो बजट में और किसी योजना की क्या जरुरत रह गई थी?

दूसरी बात यह है कि पहले से चल रही किसी भी लोक लुभावन योजना को बंद नहीं किया गया है। किसानों को मिलने वाली छह हजार रुपए की किसान सम्मान निधि योजना जारी रहेगी। लखपति दीदी बनाने की योजना के तहत अगले वित्त वर्ष में तीन करोड़ महिलाओं को लखपति बनाने की योजना भी चल रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना चल रही है, जिसके तहत दावा किया गया है कि अभी तक तीन करोड़ घर बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा मध्य वर्ग के लिए मकान बनाने की घोषणा इस बार की गई है।

यह भी बड़ी योजना है, जिसके तहत दो करोड़ घर बनाए जाएंगे। प्रत्यक्ष कर यानी आयकर में किसी नए छूट की जरुरत इसलिए नहीं थी क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा घोषित नया टैक्स रिजीम यानी नई कर व्यवस्था लागू हो गई है, जिसके तहत साढ़े सात लाख रुपए तक की आय पूरी तरह से कर मुक्त होगी। आयकर रिटर्न भरने वाली ज्यादातर आबादी इस दायरे में आ जाएगी। वैसे भी सरकार करदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी का जो दावा कर रही है उसकी हकीकत यह है कि आयकर रिटर्न भरने वाले साढ़े छह करोड़ लोगों में से चार करोड़ तीस लाख के करीब लोगों ने कोई टैक्स नहीं दिया है। सिर्फ रिटर्न भरा है।

दूसरी ओर भाजपा की सरकारों ने राज्यों के लिए जो योजनाएं शुरू की हैं उन्हें भी जारी रखा गया है और साथ ही नई योजनाएं भी शुरू हुई हैं। मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के तहत महिलाओं को साढ़े 12 सौ रुपए प्रति महीने मिल रहे हैं तो उधर छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना शुरू कर दी गई है। इस योजना के तहत महिलाओं को एक हजार रुपए महीना दिया जाएगा। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सात लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट पेश किया है, जिसमें उन्होंने किसानों के लिए मासिक पेंशन की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत राज्य के लघु व सीमांत किसानों को 60 साल की उम्र पूरी करने के बाद तीन हजार रुपए मासिक पेंशन मिलेगी। यह पेंशन महिला और पुरुष दोनों किसानों को मिलेगी। ऐसी अनेक योजना अलग अलग राज्यों में चल रही हैं।

इस बीच बजट के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव पूर्व दौरे पर निकले तो हर राज्य में हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास कर रहे हैं। बजट के बाद वे सबसे पहले ओडिशा गए, जहां उन्होंने एक बार में 63 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। उसके बाद वे असम गए, जहां साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इसमें कामाख्या दिव्यलोक कॉरिडोर का शिलान्यास भी है, जिस पर पांच सौ करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या के भव्य कार्यक्रम के बाद उन्हें मां कामाख्या के मंदिर के सौंदर्यीकरण की परियोजना का शिलान्यास करने का मौका मिला है।

जाहिर है कि अयोध्या में भगवान राम से लेकर असम में मां कामाख्या तक का नैरेटिव लोक लुभावन चुनावी रणनीति का ही हिस्सा है। अगले महीने के पहले या दूसरे हफ्ते में लोकसभा चुनाव की घोषणा होगी। उससे पहले पूरे एक महीने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे देश में दौरे होंगे और हर राज्य में हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास होगा। क्या इसे लोक लुभावन घोषणा में शामिल नहीं करेंगे?

ध्यान रहे पिछले काफी समय से लोक लुभावन घोषणाएं बजट में होनी बंद हो गई हैं। अब बजट से बाहर ऐसी बड़ी घोषणाएं होती हैं। मुफ्त अनाज की योजना की भी पहली बार घोषणा बजट में नहीं हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी की ओर से जितनी गारंटियों का जिक्र किया जा रहा है उनमें से शायद ही कोई गारंटी होगी, जिसकी घोषणा बजट में की गई होगी। अब ज्यादातर घोषणाएं चुनावों से पहले और बजट से बाहर की जाती हैं। इसलिए संभव है कि चुनाव की घोषणा से पहले अगले एक महीने में कोई बड़ी घोषणा हो। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि देश के राजनीतिक हालात किस तरह से बढ़ते बदलते हैं।

अगर विपक्षी पार्टियां एकजुट होती हैं। उनमें सीटों का बंटवारा सहज ढंग से होता है तो संभव है कि कुछ बड़ी बड़ी लोक लुभावन घोषणाएं हों या और भावनात्मक मुद्दे उछाले जाएं। अयोध्या में रामलला विराजमान हो चुके हैं लेकिन मथुरा और काशी का आंदोलन तेज हो गया है। आने वाले दिनों में इसके भी नए रूप देखने को मिलेंगे। मंडल और कमंडल दोनों की राजनीति को साधने के लिए कर्पूरी ठाकुर के बाद लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। यह सब चुनावी राजनीति का ही हिस्सा है। इसलिए बजट में कुछ घोषणाएं नहीं हुई हैं इसका यह मतलब नहीं है कि सरकार बिना किसी लोक लुभावन या भावनात्मक मुद्दे के चुनाव में जा रही है।

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