कहावत है एक पेड़ से उड़ा पंछी वापिस उसी पेड़ पर आकर बैठता है। ग्वालियर के कुंवर साहब ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए सिंधिया फिर कांग्रेस में लौटने का मन बनाते बताए जा रहे हैं। और तो और वे इसके लिए उतावले बताऐ जा रहे हैं। चर्चा है कि पिछले दिनों कई बार सिंधिया ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फ़ोन कर बात करने की कोशिश की पर राहुल ने उनके फ़ोन का रिस्पांसिबिलिटी ही नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे से फ़ोन पर बात की तो उन्होंने साफ जबाव दे दिया कि राहुल गांधी ने ऐसे फ़ैसलों से खुद को अलग कर रखा है और कहा कि मध्यप्रदेश पर कोई भी बात कमलनाथ ही करेंगे।
अब सिंधिया ने कांग्रेस में लौटने की बात किस तरह खडगे से सामने रखी यह खडगे पचा गए पर उन्होंने सिंधिया को यह ज़रूर बता दिया कि राहुल गांधी ने पार्टी में यह ज़रूर कह रखा है कि कांग्रेस छोड़कर सिंधिया के साथ जो दो दर्जन विधायक भाजपा में शामिल हुए थे वे पार्टी में लौट सकते हैं। पर सिंधिया का अपने सवाल का समाधान शायद अटका ही रहा। भला सिंधिया कांग्रेस में लौटते हैं या नहीं या फिर कब लौटते हैं यह बात बाद की रही पर यह ज़रूर कि कांग्रेस को भी इस बात की टेंशन ज़रूर हो रही है कि जिस तरह मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ग्राफ़ नीचे आ गया है उसे देखकर भाजपा कहीं सिंधिया को एमपी में सीएम चेहरा न बना दें। अब सिंधिया पर कांग्रेस क्या फ़ैसला लेती है या सिंधिया खुद क्या फ़ैसला लेते हैं यह तो बाद की बात रही पर यह ज़रूर है सिंधिया अब भाजपा में घुटन तो महसूस करते बताए ही जा रहे साथ ही उनके सांसद साथी भी उन पर टिप्पणी करने ज़रूर लगे हैं।
पिछले दिनों भोपाल कांग्रेस ने जो एक वीडियो सोशल मीडिया पर लोड किया उसमें तो भाजपा के ही एक सांसद सिंधिया को गरियाते सुनाई पड़ते रहे हे। कह रहे हैं भीड़ में कुछ लोग खुद को बुद्धिजीवी कहते हैं लेकिन वे इतने मूर्ख हैं कि उन्हैं यह नहीं पता कि वे बीजेपी में हैं। केन्द्र व राज्य में बीजेपी की सरकार है फिर भी मंच से कह रहे हैं कि 2019 में हमसे गलती हुई थी। इन सांसद महोदय ने इतना भी कह डाला कि मुझे लगता है इन नेताजी को वहीं रहना चाहिए था जहां वे थे। हाँ अगर वे जनप्रिय हैं तो उन्हें वहीं रहकर मुझसे फिर चुनाव लड़ते और जीतते। अब देखने की बात है तो यही कि पार्टी में रहकर पार्टी के ही साथी की टिप्पणी और पार्टी में अनदेखी के बाद भी सिंधिया भाजपा में ही रहते हैं या फिर सिर झुका अपनी मान -मर्यादा के लिए उसी पेड़ पर लौटते हैं जहां से भाजपा के घोंसले की उड़ान भरी थी।
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