भोपाल। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं स्वीकार रहे हो कि देश में 14 हज़ार स्कूलों की हालत खराब है उन्हें पीएम श्री स्कूलों की योजना के तहत उन्नत किया जाएगा एवं प्रदेश में सीएम राइज़ स्कूलों के छात्रों को लाने – ले जाने के लिए बसों का इंतज़ाम नहीं हो सका हो तथा भोपाल के मुख्य अस्पताल में ह्रदय रोग के लिए उपयोग में आने वाली मशीनों के उपकरण महीनों से उपलब्ध नहीं हो रहे हो, ऐसे में मंदिरों के निर्माण के औचित्य पर सवाल तो उठता है ! इतना ही नहीं न्याय व्यवस्था में अदालतों की कमी और न्याय के लिए जजों की नियुक्ति और अमले की कमी के कारण लाखों लोग मुकदमे के फैसले के लिए तारीख पे तारीख की सज़ा भुगतते हो तब राजधरम क्या इन उपासना स्थलों को सुंदर बनाने से पूरा हो जाएगा..?
रही बात सदियों प्राचीन मंदिरों की महता उनके पुरातनता में ही है , उन्हें माडर्न बनाने से श्रद्धालुओं को फर्क नहीं पड़ता, क्यूंकि वे तो अपने आराध्य के विग्रह को अर्घ्य–फूल –बेलपत्र अर्पित करके संतुष्ट हो लेते हैं। हाँ इन धरम नगरियों में आने वाले सैलानी जो मंदिर में दर्शन भी करते हैं, उनके लिए ये सुविधाएं जरूर ठीक लगती है। परंतु कारीडोर या लोक बनाकर सरकार ने दर्शनों में रेलवे की भांति श्रेणिया बना दी है। वे नव रईसों को जो इन नगरियों में तीर्थ करने नहीं वरन धार्मिक टूरिस्टों की भांति आते हैं वे तो वन टाइम खर्चा आसानी से दे देते हैं, परंतु रेगुलर दर्शनार्थी जो हर तीज – त्योहार पर आते है उनको धरम का यह व्यवसायिकरण अखरता है। अभी उज्जैन में स्थानीय महिलाओं द्वारा सावन के मास में महाकाल को जल चढ़ाने को लेकर मंदिर प्रबंधन और महिला समूहों के मध्य काफी “तू-तू मैं मैं” भी हुई। अब दर्शक बताए कि जो लोग नित प्रतिदिन शिव के महाकाल स्वरूप को जल अर्पित करते हैं, उनके सामने यही विकलप है की वे किसी और मंदिर का रास्ता देखे ! अर्थात श्रधा पर व्यवसायिकरण भरी है यानि सब कुछ धंधा बन गया है !
उधर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में भी यही हाल है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने कालम “मन की बात” के 108 वे संस्कारण में भी, काशी में 10 करोड़ तीर्थ यात्रियों के आने का आंकड़ा दिया। वैसे भी काशी में जब वह अपने प्राचीनतम रूप में थी तब – दर्शन और अर्चना पर कोई टिकट नहीं लगता था। तंग गलियों में गुजरते हुए विदेशी यात्रियों के संस्मरणों यह सत्य उजागर है। अब अगर इतने यात्री आए हैं तब भोलेनाथ के नाम पर ट्रस्ट की आय जरूर अरबों रुपयों में हुई होगी। क्यूंकि अब तो टिकट ही सैकड़ा से अधिक है –उसके बाद समीप से दर्शन के अतिरिक्त महसूल वसूला जाता है। श्रद्धा के इन धरम स्थलों पर श्रधालुओं के स्थान पर आजकल सैलानियों की संख्या ज्यादा है। जो पैसे के बल पर हर काम अपनी सुविधा और समय से कराना चाहते हैं। इन नौ रईसों के ही कारण केदारनाथ और बद्रीनाथ में होटलों का निर्माण हुआ और इसी टुरिस्ट प्रवाह के कारण आज इन दोनों स्थानों के रास्ते टूट गए हैं। अब वहां जाना अगम्य हो गया है। सदियों के इतिहास में ऐसा अवसर कभी नहीं सुना या देखा गया !
विदेशों में वे अपनी धरोहर इमारतों की प्राचीनता को बनाए रखने के ही पक्षधर है । वे गुंबदों पर लगी काई को भी साफ नहीं करते। फ्रांस में पेरिस की मशहूर बिल्डिंग वारसाई पैलेस में आग लग गयी थी, यह महल राजतंत्र के समय से फ्रेंच क्रांति और लोकतन्त्र की बहाली तथा प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के आत्म समर्पण का गवाह बना था। वहां की सरकार ने उसे पुनः उसके प्राचीन स्वरूप को बनाने के लिए अरबों फ्रैंक खर्च दिये। उन्होंने उसे माडर्न रूप नहीं दिया। क्यूंकि वहां के इतिहासविदों यही मत दिया था।
एक वे है और एक हम है जो ना केवल उपासना स्थलों को माडर्न लूक दे रहे हंै। बात सिर्फ धार्मिक स्थलंो की ही नहीं है वरन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम को तोड़ – फोड़ कर उसे भी माडर्न लूक दिये जाने के लिए उनकी झोपड़ी और प्रार्थना स्थल को तोड़ दिया गया है, ऐसा खबरों में आया है। उधर आरोपियों के घरों पर बुल्डोजर चलाने वाले भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में बापू द्वारा स्थापित सर्व सेवा संघ की इमारत को धराशायी कर दिया। क्यूं ऐसा किया –किस कानूनी प्रक्रिया से किया, यह सब कुछ नहीं बताया गया। इस तोड़ –फोड़ से वहां के पुस्तकालय में राखी हुए धरोहर –किताबें – हस्त लिखित दस्तावेज़ और बापू के निजी जीवन की कुछ वस्तुएं सब सड़क पर फेंक दी गयी। मानो वह स्थान भी किसी आतंकवादी का आश्रयस्थल हो ! जरा सोचिए कि हम कैसी व्यवस्था में है जहां राज्य शिक्षा – स्वास्थ्य और न्याय नहीं दे पा रहा है पर मंदिर कारीडोर और लोक बनवा रहा है। जैसे मिश्र में फैरो के समय में प्रजा की भूख और सेहत से बेखबर शासक विशालकाय अपनी मूर्तियां बनवाते थे।