भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन बलराम का जन्म होने के कारण इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। इस व्रत को बलराम जयन्ती, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, हल छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ जैसे नामों से भी जाना जाता है। बलराम का अस्त्र हल था। इसीलिए इस षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी पुकारा जाता है। हल षष्ठी के दिन पृथ्वी पूजन होता है। कृषक लोग कृषि कार्य में उपयोग में आने वाली कृषि यंत्रों, वस्तुओं का पूजन करते हैं।
5 सितम्बर-बलराम जयंती
श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलभद्र, संकर्षण, हलधर, हलायुध, रोहिणीनन्दन, काम, नीलाम्बर आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी, जिन्हें चित्रा के नाम से भी जाना जाता है। बलभद्र का विवाह रेवत नाम से प्रसिद्ध कुशस्थली नामक राज्य के राजा काकुदमी की पुत्री रेवती से हुआ था। मान्यता है कि काकुदमी की पुत्री रेवती इक्कीस हाथ लंबी थीं, जिसे बलभद्र ने अपने हल से खींचकर छोटी किया था। इनके संतान के नाम निषस्थ, उल्मुख और वत्सला थे। शक्ति का प्रतीक माने जाने वाले बलभद्र को एक आज्ञाकारी पुत्र, एक आदर्श भाई, एक अच्छा पति इन सभी रूप में मान्यता प्राप्त है। ये अपने शरीर पर नीला वस्त्र और हाथों में हल धारण करते हैं। इनके अस्त्र हल व गदा हैं। इनको नागराज अनंत का अवतार और किसानों का देवता भी माना जाता है।
पौराणिक ग्रंथों में इन्हें अनेक उपाधियों से विभूषित करते हुए इनके पराक्रमों का विशद वर्णन किया गया है। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलराम बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्रीकृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे। यही कारण है कि ब्रजलीला में शंखचूड़ का वध करके श्रीकृष्ण ने उसका शिरोरत्न बलराम को उपहार स्वरूप प्रदान किया था। जरासन्ध को बलराम ही अपने योग्य प्रतिद्वन्द्वी जान पड़े। यदि श्रीकृष्ण ने मना न किया होता तो बलराम प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते। महाभारत युद्ध में बलराम तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिये चले गये। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। दुर्योधन और भीमसेन इनके ही शिष्य थे। उन्होंने अपने अनुज श्रीकृष्ण के साथ बचपन में मथुरा के राजा कंस के पहलवान चाणूर और मुष्टिक में से मुष्टिक का वध किया था। उन्होंने कंस के दानव धेनुक का भी वध किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब (शांब के) द्वारा दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण किए जाते समय कौरव सेना द्वारा साम्ब को बंदी बना लिए जाने पर बलभद्र ने ही उन्हें छुड़ाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। यदुवंश के उपसंहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा नाग निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
भारत के बहुसंख्यकों की मान्यतानुसार यदुवंश वंश में उत्पन्न बलराम श्रीकृष्ण के अग्रज और शेष के अवतार हैं। जैनियों के अनुसार उनका सम्बन्ध तीर्थकर नेमिनाथ से है। पांचरात्र मत के अनुसार बलभद्र भगवान वासुदेव के ब्यूह अथवा स्वरूप हैं। बलराम नारायणीयोपाख्यान में अंकित व्यूह सिद्धान्त के अनुसार विष्णु के चार रूपों में दूसरा रूप संकर्षण है। कंस के द्वारा देवकी-वसुदेव के छह पुत्रों को मार दिए जाने पर देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें संकर्षित करके नन्द बाबा के यहाँ निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। संकर्षण के बाद कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न तथा पौत्र अनिरूद्ध का नाम आता है, जो क्रमश: मनस् एवं अहंकार के प्रतीक हैं। ये सभी देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इन सबके आधार पर चतुर्व्यूह सिद्धान्त की रचना हुई है। जगन्नाथ की त्रिमूर्ति में कृष्ण, सुभद्रा तथा बलराम तीनों साथ विराजमान हैं।
महाभारत और पौराणिक ग्रंथों में अंकित वर्णनों के अनुसार बलभद्र का जन्म विद्रुम वन में हुआ था। बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपूर्वक और ससम्मान कराया। विवाहोपरान्त जब वसुदेव देवकी को विदा कराकर ले जाने लगे, तो उस समय कंस स्नेह पूर्वक उस दंपति का सारथी बनकर हाँक रहा था और अपनी बहन को वसुदेव के घर पहुंचाने जा रहा था। लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई कि जिसे वह पति के घर पहुंचाने जा रहा है, उसी देवकी- वसुदेव का अष्टम पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। यह सुन उस आशंका का तुरंत अंत करने के लिए कंस- देवकी का अंत करने के लिए तैयार हो गया।
वसुदेव ने कंस को शांत करने के लिए वचन दिया कि देवकी के गर्भ से जीतने भी पुत्र उत्पन्न होंगे, उनको वे स्वयं कंस को अर्पित कर देंगे। इस प्रकार देवकी की प्राण रक्षा तो हो गई। परंतु कंस ने अपनी बहन देवकी को पति वसुदेव सहित कारागार में बंदी बना लिया, और उनसे उत्पन्न छह पुत्रों को जन्म लेते ही मार दिया। सप्तम संतान गर्भ में ही नष्ट हो गई। सातवें पुत्र के रूप में शेष के अवतार बलभद्र थे, जिसे श्रीविष्णु ने योगमाया से देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में स्थापित करा दिया। रोहिणी की यह संतान भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन उत्पन्न हुए बलराम थे। आठवें गर्भ में भगवान श्रीकृष्ण थे।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन बलराम का जन्म होने के कारण इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। इस व्रत को बलराम जयन्ती, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, हल छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ जैसे नामों से भी जाना जाता है। बलराम का अस्त्र हल था। इसीलिए इस षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी पुकारा जाता है। हल षष्ठी के दिन पृथ्वी पूजन होता है। कृषक लोग कृषि कार्य में उपयोग में आने वाली कृषि यंत्रों, वस्तुओं का पूजन करते हैं। कृषि के मुख्य साधन खेत जोतने में बैल के साथ प्रयुक्त होने वाली हल की विशेष रूप से पूजन करते हैं। इस अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा, बलराम, श्रीकृष्ण की पूजा, सूर्य उपासना करना अत्यंत शुभदायक माने जाने के कारण स्त्रियां अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करती हैं। अनुष्ठान करती हैं। मंदिरों में हवन करती हैं। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां मुख्य रुप से करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करना अत्यंत ही शुभदायक होता है।
हल षष्ठी के संबंध में एक कथा प्रचलित है, जिसके संबंध में मान्यता है कि हल षष्ठी के दिन व्रत करने के साथ-साथ इस हल षष्ठी कथा को पढ़ने और सुनने से व्रत का शुभ फल प्राप्त होता है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में घर-घर दूध-दही बेचकर अपना घर गृहस्थी चलाने वाली एक ग्वालन अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहती थी। अपने पति के साथ सांसारिक सुख भोगते हुए गर्भवती होती है। प्रसव का समय नजदीक आने पर उसे पीड़ा होने लगी। लेकिन घर में उस दिन का दूध और दही बिक्री नहीं होने के कारण पड़ा हुआ था। इसलिए वह दूध- दही बेचने के लिए बर्तन उठा कर घर से निकल पड़ती है। लेकिन उसकी प्रसव पीड़ा इतनी बढ़ गई कि उसे मार्ग में ही खेत में संतान को जन्म देना पड़ा। प्रसवोपरांत अपनी संतान को कपड़े में लपेट कर वह वहीं रख देती है और सामान बेचने के लिए आगे निकल पड़ती है। संयोगवश उस दिन हल षष्ठी होती है। उस ग्वालन के पास गाय और भैंस दोनों का दूध होता है। गांव- घर में दूध-दही ले घूमने पर ग्राहकों ने कहा कि आज हल षष्ठी है, ऐसे में वे गौ दुग्ध कैसे ले व सेवन कर सकते हैं? वह आज गए नहीं बल्कि भैंस का दूध ही लेंगे। यह सुन ग्वालन ने ग्राहकों को झूठ बोल दिया कि उसका दूध भैंस का ही है। झूठ बोल उसने सभी को दूध बेच दिया। दूध- दही बेच कर ग्वालन अपने बच्चे के पास खेत की ओर लौटती है, परंतु जहां उसने बच्चे को रखा था, उस स्थान पर किसान हल जोत रहा होता है। तभी हल की नोक शिशु पर लगने से उस नवजात बच्चे की मृत्यु हो जाती है। ग्वालन जब वहां पहुंच अपने मृत बच्चे को पाती है, तो विलाप करने लगती है और कहती है कि आखिर उसने ऎसा कौन सा पाप किया जिसके कारण उसके साथ ऎसा हुआ? तभी अचानक उसे याद आता है कि उसने आज झूठ बोल कर गाय के दूध को भैंस का दूध बता कर लोगों को बेच दिया और उनके धर्म को खराब किया। उनके विश्वास के साथ उसने धोखा किया, खिलवाड़ किया। यह समझ आते ही ग्वालिन तुरंत उठ कर उन सभी लोगों के पास जाती है जिनको उसने दूध बेचा होता है। वह सभी से हाथ जोड़ क्षमा मांगती है और उन्हें सच बता देती है। इसके बाद वह खेत में पहुंची तो उसका बच्चा उसे जीवित मिलता है। यह देख वह भगवान का धन्यवाद करती है और प्रतिवर्ष हल षष्ठी का व्रत करने का प्रण लेती है और अपने परिवार के साथ सुख पूर्वक रहती है।