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बंटेंगे तो बचना मुश्किल है

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इस ऐतिहासिक सचाई का भी ध्यान रखने की जरुरत है कि जब भी भारत का समाज और नागरिक बंटते हैं तो देश का नुकसान होता है और बाहरी लोग फायदा उठाते हैं। भारत की भौगोलिक सीमा का सिकुड़ते जाना इसका एक उदाहरण है। एक समय भारत की सीमा का विस्तार पश्चिम में फारस यानी आज के ईरान और दक्षिण पूर्व में मलय द्वीप यानी आज के मालदीव से लेकर जावा, सुमात्रा, कंबोडिया और इंडोनेशिया तक था।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पांच अक्टूबर को महाराष्ट्र के ठाणे में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे, जहां उन्होंने देश के नागरिकों से एकजुट रहने की अपील की। उन्होंने कहा था कि अगर हम बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे। माननीय प्रधानमंत्री के इस बयान की अलग अलग तरीके से और अलग संदर्भों में व्याख्यायित किया जा रहा है। लेकिन इसको समग्रता से देखने का प्रयास नहीं हो रहा है या ऐसे भी कह सकते हैं कि जान बूझकर इसके सबसे महत्वपूर्ण पक्ष को आम नागरिकों की नजरों से ओझल कर दिया जा रहा है। इसे ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है, जैसे यह सांप्रदायिक बात हो और यह किसी संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए समाज को विभाजित करने के उद्देश्य से दिया गया बयान हो। ऐसी ही व्याख्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले बयान की भी की जा रही है। असल में माननीय प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों को ऐसे लोगों से सावधान रहने को कहा था, जो धर्म और जाति के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों से आगाह किया था, जो समाज को बांट कर देश को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगो से सचेत किया था, जो देश विरोधी ताकतों के हाथों की कठपुतली बन गए हैं और देश की एकता व अखंडता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं।

अगर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बयान को ही समग्रता से देखा जाए तो उनका आशय स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने पांच अक्टूबर को ठाणे के कार्यक्रम में कहा था- कांग्रेस जानती है कि उनका वोट बैंक तो एक रहेगा, लेकिन बाकी लोग आसानी से बंट जाएंगे। आसानी से टुकड़े हो जाएंगे। इसलिए कांग्रेस और उसके साथियों का एक ही मिशन है, समाज को बांटो, लोगों को बांटो और सत्ता पर कब्जा करो। इसलिए हमें अतीत से सबक लेना है। हमें एकता को ही देश की ढाल बनाना है और हमें याद रखना है कि अगर हम बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे। हमें कांग्रेस और अघाड़ी वालों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देना है। आज कांग्रेस का असली रंग खुल कर सामने आ गया है। कांग्रेस को अब अर्बन नक्सल का गैंग चला रहा है। पूरी दुनिया में जो लोग भारत को आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं, कांग्रेस अब खुलकर उनके साथ खड़ी है। इसलिए अपनी घोर असफलता के बावजूद कांग्रेस, सरकार बनाने का सपना देख रही है।

वास्तविकता यह है कि माननीय प्रधानमंत्री ने देश के सामने प्रस्तुत एक वास्तविक खतरे की ओर संकेत किया है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां ईस्ट इंडिया कंपनी या उसके बाद ब्रिटिश शासन की तरह ‘बांटो और राज करो’ के सिद्धांत पर चल रही हैं। उनको किसी तरह से सत्ता हासिल करनी है तो वे देश और भारतीय समाज की संरचना को ही छिन्न भिन्न करने में  लग गए हैं। इसके लिए कई तरह से जतन किए जा रहे हैं। कांग्रेस जो कभी राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करने वाली और सभी जातियों व धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी थी वह आज अलग अलग राज्यों में घनघोर जातिवादी पार्टियों की पिछलग्गू बन गई है। वह प्रादेशिक पार्टियों के साथ मिल कर जातियों की पहचान को उजागर कर रही है और उस आधार पर समाज को बांटने का काम कर रही है। उसने समावेशी राजनीति का रास्ता छोड़ दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि हरियाणा में हाल के चुनाव में ही उसकी जातिवादी राजनीति को राज्य के लोगों ने पराजित किया फिर भी वह महाराष्ट्र और झारखंड में इसी तरह की राजनीति कर रही है। वह कहीं जाट राजनीति कर रही है तो कहीं मराठा तो कहीं आदिवासी राजनीति का दांव आजमा रही है। इसके उलट प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की राजनीति सबको साथ लेकर चलने की है।

असल में कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के जरिए एक अल्पसंख्यक वोट बैंक बनाया है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की इसी राजनीति की प्रतिक्रिया में पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मुकाबले ‘जो हमारे साथ हम उनके साथ’ का सिद्धांत अपनाने की सलाह दी। इससे यह भी  संकेत मिलता है कि समाज के अंदर ऐसी सोच बनने लगी है कि जो देश के साथ होगा, समाज के साथ होगा, भारत के हितों के साथ होगा उसी का साथ, उसी का विकास और उसी पर विश्वास करना चाहिए।

बहरहाल, कांग्रेस को पता है कि इस वोट बैंक के आधार पर वह चुनाव नहीं जीत सकती है तो उसने हिंदू समाज में जातीय विभाजन को बढ़ाने का प्रयास शुरू किया।ऐतिहासिक रूप से आदिवासी, दलित और पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय करने वाली कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी अचानक उनके हितैषी बन गए। वे जातिगत गणना कराने और जातियों के लिए आबादी के अनुपात में आरक्षण की बात करने लगे, जबकि वास्तविकता यह है कि पहले उनकी दादी और फिर उनके पिता की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लंबित रखा और लागू नहीं होने दिया। 2004 से 2014 के श्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी कांग्रेस ने उनके हित में कोई काम नहीं किया। 2011 की जनगणना में जाति की गिनती क्यों नहीं हुई इस सवाल का क्या जवाब है श्री राहुल गांधी के पास? परंतु सत्ता से बाहर होने के बाद बेचैनी इतनी बढ़ गई कि किसी न किसी तरीके से सामाजिक विभाजन बढ़ाने का प्रयास शुरू हो गया। ध्यान रखने की जरुरत है कि इसी तरह के सामाजिक विभाजन का लाभ उठा कर मीर कासिम से लेकर मोहम्मद गजनवी, गोरी और मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने भारत को लूटा और हमें गुलाम बना कर रखा। अगर फिर वही गलती दोहराई गई तो देश विरोधी ताकतें मजबूत होंगी।

सामाजिक या जातीय विभाजन के साथ साथ एक अन्य खतरनाक प्रवृत्ति यह दिख रही है कि क्षेत्रीय अस्मिता के आधार पर भी विभाजन का प्रयास हो रहा है। ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है कि जैसे दक्षिण के राज्य भारत के साथ खुश नहीं हैं या उनके साथ गैर बराबरी का व्यवहार हो रहा है। अपने राजनीतिक फायदे के लिए कुछ प्रादेशिक पार्टियां भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता को मुद्दा बना रही हैं। कांग्रेस, जो अब पूरी तरह से परजीवी बन गई है और जिसे प्रादेशिक पार्टियों के कंधे पर चढ़ कर राजनीति करनी है वह भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दे को बढ़ा कर विभाजन कराने में जुटी है। सवाल है कि जब सदियों नहीं, बल्कि सहस्त्राब्दियों से अलग अलग भाषा, बोली और क्षेत्रीय पहचान के लोग भारत में रह रहे हैं तो अब अचानक इस आधार पर विभाजन के प्रयास का क्या उद्देश्य हो सकता है? अगर किसी का संकीर्ण उद्देश्य नहीं हो तो हिंदी बनाम तमिल या हिंदी बनाम कन्नड़, तेलुगू, मलायम का विवाद उत्पन्न करने का क्या कारण हो सकता है? यह ध्यान रखने की बात है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, जिसकी बात कर रहे हैं वह जाति के आधार पर, भाषा के आधार पर, क्षेत्रीय अस्मिता के आधार पर विभाजन की बात है, जिससे बचना हर भारतवासी का कर्तव्य है।

इस ऐतिहासिक सचाई का भी ध्यान रखने की जरुरत है कि जब भी भारत का समाज और नागरिक बंटते हैं तो देश का नुकसान होता है और बाहरी लोग फायदा उठाते हैं। भारत की भौगोलिक सीमा का सिकुड़ते जाना इसका एक उदाहरण है। एक समय भारत की सीमा का विस्तार पश्चिम में फारस यानी आज के ईरान और दक्षिण पूर्व में मलय द्वीप यानी आज के मालदीव से लेकर जावा, सुमात्रा, कंबोडिया और इंडोनेशिया तक था। अगर सिर्फ पिछली सदी की बात करें तो उसमें भारत से अलग होकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश यानी तीन देश बने हैं। क्या भारत ऐसे किसी और विभाजन को स्वीकार कर सकता है? ऐसे किसी भी विभाजन से देश को बचने की जिम्मेदारी हर भारतवासी की है। देश के विभाजन का प्रयास कर रही शक्तियों और उनके टूलकिट की पहचान भी हर नागरिक का उत्तरदायित्व है। यह समझाने की जरुरत नहीं है कि भारत विरोधी षड़यंत्र कहां कहां और किस किस तरीके से चल रहे हैं। कनाडा से लेकर ब्रिटेन और चीन से लेकर पाकिस्तान तक किसी न किसी स्तर पर भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं। कहीं से आतंकवादियों को भारत में प्रवेश कराया जा रहा है और निर्दोष नागरिकों की हत्या की जा रही है तो कहीं खालिस्तान के प्रयोग को हवा दी जा रही है। देश को अंदर से कमजोर करने के लिए ‘अर्बन नक्सल’ गिरोह अलग सक्रिय हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की सहायता कर रहे हैं।

समय रहते इन खतरों को पहचानने और इनसे निपटने के उपाय करते रहने की आवश्यकता है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। आज वैश्विक स्तर पर भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर उभरा है तभी इसे अंदर से कमजोर करने की साजिशें भी तेज हो गई हैं। इसे रोकना हर नागरिक का कर्तव्य है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसी का संकेत किया है। उन्होंने ‘बांटो और राज करो’ की नीति से नागरिकों को सावधान रहने की सलाह दी है। इस सलाह को गंभीरता से लेने की जरुरत है क्योंकि चिंता गंभीर भी है और वास्तविक भी। देश के नागरिक खुद ही समझदार हैं तभी उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष के ‘बांटो और राज करो’ के सिद्धांत को विफल किया और हाल में हरियाणा में भी किया। अब महाराष्ट्र और झारखंड में भी लोग विभाजन करके सत्ता हासिल करने के प्रयास करने वाली पार्टियों को सबक सिखाएंगे।

(लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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