एक दशक से जिस बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी पर भारत गर्व करता रहा वह इस बार ऑस्ट्रेलिया की हो गयी। ऑस्ट्रेलिया में पांच टेस्ट श्रृंखला भारत तीन-एक से हार गया। जीत पर जश्न मनता है, तो हार के कारण कुरेदे जाते हैं। पिछले दशक में दोनों देशों के अलग अलग खिलाड़ियों ने अपने अपने खेल से श्रृंखला को प्रभावित किया।
क्रिकेट में एलन बॉर्डर ऑस्ट्रेलिया के तो सुनील गावस्कर भारत के कप्तान रहे। कप्तान के अलावा अपने समय के महान बल्लेबाज भी रहे। अपने अपने तौर पर आज भी दोनों समाज के सम्मानित नेता हैं। सत्ता की अति आस में लगे सत्तानीति से प्रेरित नेता नहीं, मगर नैतिक मूल्यों को जगाने वाले समाज के लोकप्रिय नेता। क्रिकेट और समाज में उनके नेतृत्व के ही कारण ऑस्ट्रेलिया-भारत के बीच होने वाली टेस्ट श्रृंखला दोनों के नाम पर समर्पित है। उनके कृतित्व और नेतृत्व की याद में टेस्ट श्रृंखला खेली जाती है। एक दशक से जिस बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी पर भारत गर्व करता रहा वह इस बार ऑस्ट्रेलिया की हो गयी। ऑस्ट्रेलिया में पांच टेस्ट श्रृंखला भारत तीन-एक से हार गया।
जीत पर जश्न मनता है, तो हार के कारण कुरेदे जाते हैं। पिछले दशक में दोनों देशों के अलग अलग खिलाड़ियों ने अपने अपने खेल से श्रृंखला को प्रभावित किया। सन् 2014-2015 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर हारने के बाद भारत चार श्रृंखला (दो घर व दो बाहर) जीता। असंभव संभावना के अद्भुत खेल में अपने खिलाड़ियों ने ही यह संभव कर दिखाया था। स्टीव स्मिथ की कप्तानी में 2016-2017 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत में हारना शुरू किया। सिलसिला 2024-2025 श्रृंखला में टूट गया। स्मिथ को 2018 के दक्षिण अफ्रीका दौरे पर गेंद को रेगमाल से रगड़ते हुए पकड़ा गया तो खेल और कप्तानी दोनों से हाथ धोना पड़ा था। उसके बाद से ही ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट नेतृत्व से जूझता रहा। भारत ने दो ऑस्ट्रेलिया दौरे यूं-ही बनाए गए कप्तान टिम पेन के समय में जीते। मगर आज तेज गेंदबाज व सौम्य नेतृत्व के पैट कमिंस ऑस्ट्रेलिया के स्थाई सफल कप्तान हैं।
इसी दौरान भारतीय टीम का नेतृत्व आक्रामक रोष दर्शाने वाले और जुझारू मनोबल से खेलने वाले महान बल्लेबाज विराट कोहली पर रहा। उनके इसी भाव दर्शाते मनोबल के कारण 2018-2019 में कमजोर टिम पेन की ऑस्ट्रेलिया को उनके घर पर भारत ने हराया था। और जब तक विराट का बल्ला तेज चला, उनकी खूब चली। भारत के अगले दौरे 2020-2021 में पहला टेस्ट हारने के बाद विराट घर लौट आए तो अजिंक्य रहाणे कप्तान हुए। टेस्ट हार के बाद अपने खिलाड़ियों ने शानदार खेल खेला और श्रृंखला 2-1 से जीत ली। रहाणे ने नेतृत्व को नई दिशा दी। राहुल द्रविड जब भारतीय कोच हुए तो रोहित शर्मा कप्तान बनाए गए। लाल गेंद के बजाए सफेद गेंद की क्रिकेट पर जोर दिया गया। रोहित की कप्तानी में भारत 2024 का बीसमबीस विश्वकप जीता भी। तब तक राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी, बंग्लोर में नेतृत्व गुण सीखे द्रविड़ भारत के सफल कोच हो गए थे। उनके बाद कोच के तौर पर वी वी एस लक्षमण को राष्ट्रीय अकादमी में तैयार किया जा रहा था। लेकिन अचानक गौतम गंभीर को भारतीय कोच बनाया गया। फिर उनके दौर में न्यूजीलैंड से घर में और ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत की हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कप्तान की खेल क्षमता? कोच की निर्णय योग्यता?
आखिर एक टीम में असल नेतृत्व किसका होता है? कप्तान का, या कोच का? माना जाता है कि नेतृत्व वह योग्यता है जिसमें एक व्यक्ति सामाजिक तौर पर सबका सहयोग, सबका साथ ले कर असाधारण कार्य सिद्ध करने में लगता है। यानी कप्तान भी नेतृत्व कर सकता है और कोच भी। लेकिन क्रिकेट या किसी भी खुले मैदान पर खेले जाने वाले खेल में किसी भी टीम का नेतृत्व तो कप्तान ही करता है। कोच व कोच-मंडल तो कप्तान का सहयोग करते हुए खिलाड़ियों को असाधारण खेलने के लिए प्रेरित ही कर सकते हैं। किसी भी टीम में नेतृत्व किसी एक की बपौती नहीं होता। कप्तान या कोच बेशक योग्यता से बनते हैं। लेकिन नेतृत्व, क्षमता पर निर्भर रहता है। सिडनी टेस्ट में जब रोहित शर्मा ने खुद को बाहर बैठाया तो इसको भी नेतृत्व का निर्णय ही मानना होगा। खुद को जानना-समझना भी नेतृत्व पाना-खोना है।
नेतृत्व वह कला होती है जो असाधारण स्थिति को भी साथियों के लिए सहज बनाती है। इसलिए विदेशी दौरे पर अच्छा क्रिकेट खेलने के लिए सच्चे नेतृत्व की जरूरत सदा रहने वाली है। हार-जीत होती रहेगी। खेल चलता रहेगा। कोहली, रोहित व गंभीर आते-जाते रहेंगे मगर बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी चलती रहेगी। नए नेतृत्व की तलाश सदा जारी है।