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चीन पका रहा ब्रिक्स की नई खिचडी!

सन 2001 में गोल्डमेन सॅक्स ने ब्राजील, रूस, भारत और चीन की आर्थिक शक्ति का विश्लेषण किया था। और उसके एक दस्तावेज में इन देशों के लिए ‘ब्रिक’ शब्द गढ़ा था। इन सभी देशों में नई आर्थिक संभावनाओं की उम्मीदें जागीं। भारत में भी हमें अपने देश के महत्वपूर्ण होने और एक खास वैश्विक दर्जे का अहसास हुआ।

आईडिया 2001 का था। उसके बाद ‘ब्रिक’ में दक्षिण अफ्रीका जुड़ा और शब्द ‘ब्रिक्स’ हो गया।कुछ विश्लेषकों का भरोसा बना कि ब्रिक्स, भीमकाय जी7 को चुनौती देने वाला समूह बनेगा। लेकिन अपेक्षाएं बढने के साथ दबाव और मुश्किले बनी। जोखिम भारी आर्थिक नीतियों और राजनीतिक उथल-पुथल के चलते 2010 में गैर-एशियाई ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आई।ब्रिक्स सम्मेलनों की विज्ञप्तियां में ‘दगाबाज़ पश्चिम’ का जिक्र होने लगा। ‘दगाबाज़ पश्चिम’ उसकी अनदेखी करता। था। सो ब्रिक्स की चमक फीकी पड़ने लगी लेकिन उसका वजूद कायम रहा।

आज याकि22 अगस्त को ब्रिक्स का 15वां शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में शुरू हो रहा है। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के साथ भारत के नरेन्द्र मोदी, ब्राजील के लुइज़ इनासियो लूला द सिल्वा और चीन के शी जिनपिंग इसमें शामिल होंगे। व्लादिमिर पुतिन वहां मौजूद नहीं होंगे। यदि वे वहां आते तो इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य होने के नाते दक्षिण अफ्रीका को रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ मार्च में जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट की तामीली करनी पड़ती। शी जिनपिंग इस सम्मेलन में ब्रिक्स का बोलबाला बढ़ाने के एक बड़े एजेंडे के साथ आ रहे हैं। अमेरिका को पछाड़ने और अपना रुआब बढ़ाने के लिए चीन का प्रयास ब्रिक्स को जी-7 जितना शानदार लेकिन उससे अधिक दमदार बनाने का है। कुछ मझोली शक्तियों का इरादा इस समूह के माध्यम से अपने हितों को साधना है। समूह का दावा है कि 40 से अधिक देशों ने या तो उसका सदस्य बनने के लिए आवेदन दिया है या ऐसा करने की इच्छा जाहिर की है।

लेकिन इस पर सर्वसम्मति नहीं है। विशेषकर भारत इसके खिलाफ है। सम्मेलन के कुछ दिन पहले ही समूह के विस्तार के मुद्दे पर चीन और भारत आपस में भिड़ गए। जानकारों के मुताबिक इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है कि ब्रिक्स को विकासशील देशों का हितरक्षक गुटनिरपेक्ष समूह बनना चाहिए या पश्चिम को खुलेआम चुनौती देने वाला एक राजनैतिक समूह? दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों ने बताया है कि 23 देश समूह में शामिल होना चाहते है।  एक चीनी अधिकारी के मुताबिक “यदि हम ब्रिक्स का विस्तार कर उसके सदस्य देशों की जीडीपी जी-7 के स्तर तक ला सके तो दुनिया में हमारी आवाज बहुत बुलंद हो जाएगी”।

जाहिर ब्रिक्स में नए देशों को शामिल करना मोटामोटी चीन के कहने पर जी-7 के मुकाबले के लिए उठाया एक पश्चिम-विरोधी कदम होगा। वैसे भी, पश्चिमी देश ईरान, बेलारूस और वेनेजुएला की संभावित सदस्यता को रूस और चीन के मित्रों को गले लगाने के रूप में देखेंगे। यही वजह है कि रूस विस्तार के पक्ष में है। चीन विस्तार पर अड़ा हुआ है क्योंकि वह केवल ब्रिक्स के माध्यम से ही अमेरिका और पश्चिम का मुकाबला करने की उम्मीद कर सकता है।उसका बनाया एससीओ पूर्णतः क्षेत्रीय संगठन है और जी-20 बहुत बड़ा है, जिसमें पश्चिम का बोलबाला है। इसलिए चीन के लिए ब्रिक्स ही सबसे अच्छा दांव हो सकता है।

यह पहली बार नहीं है कि बीजिंग ने ब्रिक्स के विस्तार का दबाव बनाया है। उसने दक्षिण अफ्रीका के प्रवेश का भी पुरजोर समर्थन किया था।  उसके बाद से उसने बार-बार नए सदस्य बनाए जाने की वकालत की है, विशेषकर रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से।

यदि सभी सदस्य चीन का साथ दें तो क्या ब्रिक्स, जी-7 का मुकाबला करने मे समर्थ होगा? मुश्किल है। ब्रिक्स, जी-7 की तुलना में बहुत विविधतापूर्ण और खिचड़ी है। इसके सदस्यों में राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य दृष्टि से बहुत विविधिता और अंतर हैं। विस्तार होने पर यह बेमेल समूह ज्यादा बेमेल बन जायेगा। विस्तार होने से ब्रिक्स पश्चिम के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था, वर्ल्ड आर्डर की आलोचना अधिक बुलंद आवाज में कर सकेगा लेकिन पश्चिम का विकल्प बनना और मुश्किल होगा। अर्जेंटीना, ईरान, सऊदी अरब, बेलारूस और इनके जैसे अन्य देशों के ब्रिक्स में आने से ग्रुप के भीतर और बाहर टकराव तथा विभाजन बढ़ेगा। भारत की स्थिति इधर कुआँ उधर खाई वाली है। वह चीन से बड़ा और दबंग बनने की होड़ में है लेकिन चीन को दुत्कारने, रोकने की स्थिति में नहीं है। वह विस्तार विरोधी रवैया अपनाकर अलग-थलग भी नहीं होना चाहेगा। वह चाहता है कि पहले तय हो कि नए देशों को समूह में शामिल करने के आखिर मानदंड क्या है? क्या भारत अपनी बात मनवा सकेगा या चीन की जोरजबरदस्ती के आगे भारत व दक्षिण अफ्रिका सरेंडर होंगे?कुछ भी हो यह ब्रिक्स सम्मेलन महत्वपूर्ण है। यह उतनी ही सनसनी पैदा कर रहा है जितनी उसके गठन के समय हुई थी।इससे आगे संगठन की यात्रा किसी भी दिशा में पलटी मार सकती है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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