कांग्रेस और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी के बीच प्रेम और हित का का यह रिश्ता कब तक रहता है यह बात बाद की है पर फिलाहल तो कांग्रेसियों को इसमें दाल में काला नज़र आ रहा है। दिल्ली के कांग्रेसी तो कम से कम यही मानते हैं कि केजरीवाल मौक़ापरस्त हैं। उनकी हर चाल में कुटिलता है। पर दोनों के बीच यह अखाद्य प्रेम पर राष्ट्रीय कांग्रेस की सहमति है सो बोलना कोई नहीं चाहता ।
दिल्ली कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि यह वही केजरीवाल हैं जो कांग्रेस के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मोटे-मोटे पुलिंदे दिखाकर तबकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भिजवाने की नौटंकी करते रहे ।यही नहीं इससे पहले भी अण्णा हज़ारे जैसे तमाम नेताओं को फुद्दू बनाकर कांग्रेस का वोट बैंक हासिल कर कांग्रेस को पैदल कर दिया और सीएम बना और अब फिर जब अब अपना खेल बिगड़ते दिख रहा है तो कांग्रेस से सद्भाव दिखा रहे हैं। पर दिल्ली के कांग्रेसियों की यह नाराज़गी भी कोई यूँ ही नहीं है।
सत्ता से बाहर की कसक उन्हें आज भी साल रही है बेचारे कांग्रेसी न घर के रहे न घाट के।तब क्यूं करें केजरी से मुहब्बत बात तो यही है। हकीकत जानकर भी जब कांग्रेस के वरिष्ठ ही ऐसा नहीं सोच रहे तो दिल्ली के नेता करें भी क्या। और तभी जब अध्यादेश को लेकर विपक्षी पार्टियों की बंगलौर में बैठक हुई तो कांग्रेस ने तो सोशल मीडिया पर शेयर किया ही केजरीवाल ने भी दिल्ली आते ही अपने प्रवक्ताओं से कांग्रेस पर बयानबाज़ी नहीं करने की हिदायत दी डाली पर कांग्रेस शायद भूल गई कि पिछले दिनों हुई एक बैठक में केजरीवाल ने कहा था कि कांग्रेस ने भाजपा से पीगें बढ़ा ली हैं।
जबकि कांग्रेस खुद भी यह कहती रही है कि केजरीवाल की पार्टी भाजपा की बी टीम है। अब भले दिल्ली के ही नेता यह पूछ रहे हों कि दोनों के बीच यह प्रेम कब तक रहना है तो जबाव तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के पास भी नहीं है। लेकिन मामला 2024 में भाजपा से मुक़ाबले का होगा तो इन नेताओं को भी सहमति के साथ चुप तो रहना ही होगा। अब भला पंजाब में 13 और दिल्ली में सात लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को बहुत कुछ फ़ायदा न हो पर दोनों पार्टी दम ज़रूर भरते दिख रहीं हैं।
ज़ाहिर है कि पंजाब में कांग्रेस की सात और आप के पास एक सीट ही है लेकिन डर यही है कि यहाँ कुछ पाने चक्कर में कांग्रेस कुछ और न खो बैठें और केजरीवाल का यहीं होता देखा जा रहा है। रही बात दिल्ली की सो यहाँ दोनों के हाथ ख़ाली हैं। भाजपा की सातों सीटें हैं। दिल्ली की सात सीटों में से पाँच पर दूसरे नंवर पर आई कांग्रेस को आप पार्टी क्या पांच सीटें देने को तैयार होगी ,और क्या पंजाब में कांग्रेस की जीती सात सीटें भी क्या आप दे देगी।
लेकिन अगर कांग्रेस को दिल्ली में आप की मदद से कुछ हासिल होता दिख रहा है तो बात भी अलग रही। तभी कहा जा रहा है कि दोनों पार्टियों का ये प्यार ये मुहब्बत कब तक परवान चढ़ा रहता है यह बात अलग है पर दिल्ली के भाजपाई यह ज़रूर मानते हैं कि कांग्रेस और आप के मिलने से भाजपा को नुक्सान होना तय है।
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