कांग्रेस के विरोधाभास उसकी पहचान है। दो राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव के बीच हिमाचल प्रदेश की घटना इसकी मिसाल है। हिमाचल प्रदेश दोनों चुनावी राज्यों जम्मू कश्मीर और हरियाणा के बीच स्थित है और वहां की किसी भी खबर का असर निश्चित रूप से दोनों राज्यों की राजनीति पर भी पड़ता है। तभी हिमाचल में अवैध मस्जिदों और अवैध प्रवासियों के खिलाफ आम जनता की मुहिम के असर को कम करने के लिए कांग्रेस ने अपना दोहरा चरित्र दिखा दिया।
दो राज्यों का विधानसभा चुनाव आखिरी दौर में पहुंच गया है। आज यानी रविवार, 29 सितंबर को जम्मू कश्मीर के तीसरे और आखिरी चरण की 40 सीटों के लिए प्रचार बंद हो जाएगा। एक अक्टूबर को मतदान होगा। इसके बाद हरियाणा की सभी 90 सीटों के लिए पांच अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। चुनाव आयोग ने दोनों राज्यों में चुनाव की घोषणा एक साथ 16 अगस्त को की थी।
इस तरह चुनाव की घोषणा हुए डेढ़ महीने हो गए हैं। इस डेढ़ महीने में कांग्रेस पार्टी ने जो मुद्दे उठाए हैं क्या उनके पीछे कांग्रेस की किसी तरह की प्रतिबद्धता नजर आ रही है? कांग्रेस के बड़े नेता खासतौर से उसके सर्वोच्च नेता राहुल गांधी जिन मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं क्या कांग्रेस पार्टी उन मुद्दों को लेकर प्रतिबद्ध है और क्या दोनों राज्यों के मतदाताओं को उस पर भरोसा करना चाहिए?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के वादों में विरोधाभास है और उन पर अमल करने के लिए जरूरी संकल्प शक्ति की कमी है। कांग्रेस एक भी नीतिगत वादा ऐसा नहीं कर रही है, जिसे उसने अपने शासन वाले किसी राज्य में लागू किया हो। मुफ्त में कुछ वस्तुएं या सेवाएं देने का मामला अपनी जगह है। उसके वादे सभी पार्टियां करती हैं और सब पार्टियां उसको लागू भी कर देती हैं। बात बड़े नीतिगत वादों की हो रही है, जिनसे राज्य के लोगों का भला हो और दीर्घावधि में राज्य का विकास हो।
कांग्रेस हरियाणा में ऐसे अनेक वादे कर रही है लेकिन उन वादों को अपने शासन वाले राज्यों में लागू नहीं किया है। कांग्रेस हरियाणा के परिश्रमी और स्वाभिमानी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी देने का वादा कर रही है। सवाल है कि इसमें क्या नया है? अब भी किसानों को अनेक फसलों पर एमएसपी दी जा रही है। लेकिन अगर कांग्रेस यह कहना चाह रही है कि वह एमएसपी की कानूनी गारंटी देगी तो सवाल उठेगा कि ऐसी गारंटी उसने कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के किसानों को क्यों नहीं दी है, जहां उसकी सरकार है? जाहिर है यह वादा किसानों को बरगलाने वाला है। कांग्रेस की मंशा किसी तरह से सत्ता हासिल करने की है।
इसी तरह अग्निवीर के मसले पर कांग्रेस पार्टी झूठ फैला रही है। भारतीय सेना का हर दसवां जवान हरियाणा का है लेकिन कांग्रेस ने अपने लंबे शासन में उनके लिए क्या किया? क्या कांग्रेस ने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की योजना लागू की? केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा की सरकार बनी तब ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की योजना लागू हुई।
अब भी भाजपा का वादा है कि हरियाणा के हर अग्निवीर को सेना से निकलने के बाद पेंशन वाली नौकरी दी जाएगी। लेकिन कांग्रेस इस मामले में भी झूठ फैला कर नौजवानों को बरगलाने का काम कर रही है। नौकरियों के बारे में भी कांग्रेस का रिकॉर्ड ‘खर्ची और पर्ची’ वाला है। इसके उलट श्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली सरकार ने बिना ‘खर्ची पर्ची’ के एक लाख से ज्यादा नौकरियां दीं। अब कांग्रेस हरियाणा में दो लाख नौकरी देने का वादा कर रही है। लेकिन यहीं काम वह अपने शासन वाले राज्यों में क्यों नहीं कर रही है?
इसी तरह का विरोधाभास जम्मू कश्मीर में भाजपा के चुनाव अभियान में दिख रहा है। वहां कांग्रेस ने फारूक और उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस से तालमेल किया है। लेकिन कांग्रेस स्पष्ट नहीं कर रही है कि अनुच्छेद 370 पर उसका क्या रुख है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने खुल कर कहा है कि वह अनुच्छेद 370 की बहाली कराएगी। यह बात उसने अपने घोषणापत्र में भी लिखी है। लेकिन उसकी सहयोगी कांग्रेस का घोषणापत्र आया तो उसमें कहीं भी अनुच्छेद 370 का जिक्र नहीं है। उसके नेता चुनाव प्रचार में भी इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। कांग्रेस को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए था। लेकिन वह चुप है तो इसके पीछे उसकी मंशा कश्मीर घाटी के कट्टरपंथी और अलगाववादी तत्वों को यह मैसेज देने की है कि वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के इस एजेंडे के साथ है तो दूसरी ओर जम्मू क्षेत्र के हिंदुओं को यह मैसेज देना है कि वह नेशनल कॉन्फ्रेंस की इस बात से सहमत नहीं है। यह दोहरापन यानी हिप्पोक्रेसी ही कांग्रेस की राजनीति की पहचान है। वह कट्टरपंथियों और अलगाववादियों के साथ साथ हिंदू मतदाताओं को भी खुश करने की कोशिश कर रही है, जिससे हिंदुओं और घाटी के बहुसंख्यक राष्ट्रवादी मुसलमान दोनों को सावधान रहने की जरुरत है।
कांग्रेस का यह विरोधाभास उसकी पहचान है। दो राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव के बीच हिमाचल प्रदेश की घटना इसकी मिसाल है। हिमाचल प्रदेश दोनों चुनावी राज्यों जम्मू कश्मीर और हरियाणा के बीच स्थित है और वहां की किसी भी खबर का असर निश्चित रूप से दोनों राज्यों की राजनीति पर भी पड़ता है। तभी हिमाचल में अवैध मस्जिदों और अवैध प्रवासियों के खिलाफ आम जनता की मुहिम के असर को कम करने के लिए कांग्रेस ने अपना दोहरा चरित्र दिखा दिया। राज्य सरकार में कांग्रेस के नंबर दो मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर खाने पीने की सभी दुकानों पर दुकानदारों के नाम लिखने का आदेश दिया। लेकिन तुरंत कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने इसका विरोध कर दिया।
कहा गया कि ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ है और यह खबर भी है कि कांग्रेस आलाकमान ने केसी वेणुगोपाल के जरिए विक्रमादित्य सिंह से जवाब तलब किया। क्या इससे यह साफ नहीं दिख रहा है कि कांग्रेस एक तरफ हिंदुओं को खुश करने के लिए यह दिखा रही है कि वह उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियों को लागू कर रही है तो दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं को मैसेज देने के लिए इसका विरोध भी कर दे रही है? असल में यह कांग्रेस का हमेशा से चरित्र रहा है कि उसके नेता अलग अलग जुबान में बोलते हैं और समझते हैं कि उससे नागरिकों को ठग लेंगे। यह ठगने का काम अब नहीं हो पा रहा है क्योंकि सोशल मीडिया के जमाने में तत्काल लोगों तक बात पहुंच जा रही है। भाजपा भी रियल टाइम में कांग्रेस के इन विरोधाभासी नीतियों का खुलासा कर रही है।
कांग्रेस के अंदर एक बड़ा विरोधाभास नेतृत्व को लेकर है। चुनाव अब लगभग खत्म होने वाला है और तब जाकर प्रियंका गांधी वाड्रा को पहली बार जम्मू कश्मीर के चुनाव में उतारा गया। पहले दो चरण में राज्य की 50 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन प्रियंका को कांग्रेस ने प्रचार के लिए नहीं भेजा। सवाल है कि जब वे स्टार प्रचारक हैं और कांग्रेस नेता कह रहे थे कि लोकसभा चुनाव में उनके प्रचार का समूचे विपक्षी गठबंधन को फायदा हुआ था तब उनको राज्यों के चुनाव में क्यों नहीं उतारा गया? हरियाणा में भी 12 सितंबर को नामांकन की प्रक्रिया समाप्त हो गई लेकिन उसके बाद महीने के आखिर तक प्रियंका का कोई कार्यक्रम नहीं लगाया गया। जाहिर है कि भाई बहन की पार्टी में आपसी तालमेल नहीं बन पा रहा है। यह साफ साफ कांग्रेस के अंदर के सत्ता संघर्ष को दिखाने वाला है।
इस तरह का सत्ता संघर्ष चुनाव से पहले ही हरियाणा में दिख रहा है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनाम कुमारी सैलजा बनाम रणदीप सुरजेवाला का संघर्ष पहले दिन से हरियाणा में दिख रहा है। कांग्रेस के सारे नेता ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ का क्विज शो खेल रहे हैं। इस खेल में सब एक दूसरे को निपटाने में लगे हैं। कुमारी सैलजा दलित समाज से आती हैं और जैसे ही उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना दिखी वैसे ही हुड्डा समर्थक उनके पीछे पड़ गए। उनको लेकर जातिसूचक टिप्पणी की गई, जिसके बाद वे कई दिनों तक नाराज होकर घर पर बैठी रहीं।
कांग्रेस आलाकमान ने बड़ी मुश्किल से उनकी मान मनौव्वल करके चुनाव प्रचार में उतारा। सवाल है कि चुनाव से पहले ही जब पार्टी के अंदर सत्ता के लिए इस तरह की सिर फुटौव्वल हो रही है तो चुनाव के बाद क्या होगा इस की सहज ही कल्पना की जा सकती है। दूसरी ओर भाजपा में नेतृत्व पहले से तय है। एकाध नेताओं ने संशय पैदा करने का प्रयास किया तो केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने तत्काल स्पष्ट कर दिया कि भाजपा श्री नायब सिंह सैनी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है और जीतने के बाद सरकार भी उन्हीं के नेतृत्व में बनेगी।
पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर और उनके करीबी मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी की कमान में भाजपा चुनाव लड़ रही है। न तो उसके एजेंडे में कोई विरोधाभास है और न नेतृत्व को लेकर किसी तरह का संशय है। हरियाणा के लोगों को यह फर्क समझने की जरुरत है। उनको राज्य में चल रहे विकास कार्यों की निरंतरता और कांग्रेस की अराजकता व भ्रष्टाचार में से एक को चुनना है। इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि राज्य के लोग राजनीतिक स्थिरता और प्रभावशाली विकास की निरंतरता को चुनेंगे।
(लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)