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मनोरथ के लिए दामोदर द्वादशी व्रत

श्रावण माह को देवताओं का माह माना जाता है। यही कारण है कि श्रावण मास शिव को समर्पित होते हुए भी सभी देवी- देवताओं की पूजार्चना करने का सौभाग्य प्रदान करने वाला महीना के रूप में प्रसिद्ध है। इस महीने में शिव और अन्य देवी देवताओं के साथ ही भगवान विष्णु के पूजन का भी विधान है। भगवान विष्णु के अनेक नामों में से एक नाम दामोदर भी है।

विष्णु भक्ति में एकादशी व द्वादशी तिथियों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि एकादशी के पूजन की भांति ही द्वादशी को भगवान विष्णु का पूजन करने से भक्तों को विष्णु की आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, और सर्वमनोरथ पूर्ण होते हैं। एकादशी की भांति ही महीने में दो बार आने वाली द्वादशी तिथि को कृष्ण पक्ष द्वादशी और शुक्ल पक्ष द्वादशी के नामों से जाना जाता है। पुराणों में सभी महीनों के प्रत्येक द्वादशी व्रत का अपना विशेष महत्व माना गया है। इसकी शुभ विधि-नियम और उद्यापन के द्वारा भक्त सुख एवं शुभ फलों को पाने में सफल होता है। आकाश में सितारों के श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति से चिह्नित श्रावण महीना मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। 

मान्यतानुसार श्रावण के शुभ महीने में सत्य हृदय व शुद्ध मन से भगवान शिव की पूजा करने वाले व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, आध्यात्मिक व सामयिक कई प्रकार के लाभ होते हैं, शिव के द्वारा उसे भांति- भांति से आशीर्वादित किया जाता है। भारत में मानसून से जुड़ा श्रावण माह फसलों की बुआई, उपज, सूखे की रोकथाम आदि कई आवश्यक कृषि कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह महीना कृषि कार्य के लिए उपयोगी मानसून की अनवरत वर्षा के लिए प्रसिद्ध है, और कृषकगण इस महीने में अपने कृष्य कार्यों में पूर्णतः निमग्न होते हैं। फिर भी अच्छी फसलोपज और उज्ज्वल भविष्य की कामना में श्रावण के पूरे महीने में कृषकगण वर्षा से संबंधित देवों की प्रशंसा और उनकी महिमागान करते हुए उन्हें अपना अर्ध्य, श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। 

इसीलिए श्रावण माह को देवताओं का माह माना जाता है। यही कारण है कि श्रावण मास शिव को समर्पित होते हुए भी सभी देवी- देवताओं की पूजार्चना करने का सौभाग्य प्रदान करने वाला महीना के रूप में प्रसिद्ध है। इस महीने में शिव और अन्य देवी देवताओं के साथ ही भगवान विष्णु के पूजन का भी विधान है। भगवान विष्णु के अनेक नामों में से एक नाम दामोदर भी है। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को दामोदर द्वादशी के रुप में जाना जाता है, और इस दिन विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दामोदर द्वादशी व्रत श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के बारहवें दिन पड़ता है। जिसके कारण यह द्वादशी व्रत के रुप में प्रसिद्ध व पूजनीय है। इस दिन भगवान विष्णु को समर्पित अनुष्ठान पूजा करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भक्तों के जीवन में अपार प्रसन्नता, सर्वसुख और समृद्धि का आगमन होता है। 

विष्णु के दामोदर स्वरुप का पूजन करने से भगवदकृपा शीघ्र प्राप्त होने की मान्यता होने के कारण श्रावण शुक्ल द्वादशी तिथि को दामोदर द्वादशी व्रत मनाने की पौराणिक परिपाटी है। दामोदर द्वादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस दिन विष्णु पूजन तथा निर्धन और ज़रूरतमंद लोगों को चावल, फल और वस्त्र का दान करना शुभ माना जाता है। भगवान शिव के साथ ही श्रीविष्णु की कृपा के लिए श्रावण मास की द्वादशी का दिन अत्यंत शुभ है। इस वर्ष 2023 में दामोदर द्वादशी 28 अगस्त दिन सोमवार को मनाई जाएगी। 

दामोदर द्वादशी व्रत के संबंध मे प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक यादव कन्या प्रतिमाह एकादशी का व्रत कर द्वादशी को पारण किया करती थी। अति निर्धन परिवार से होने के कारण वह दही बेचकर जीवन -यापन किया करती थी। एक बार उसने एकादशी का व्रत किया। उसे द्वादशी को पारण करना था। उसने सोचा कि आज दही थोड़ा है, जल्द बिक जाएगा। उसे बेचने के बाद वह पारण कर लेगी। यह सोच वह दही मटके में लेकर बेचने के लिए घर से निकली। उस दिन श्रीकृष्ण और राधा रास कर रहे थे। राधा ने गूलर के वृक्ष को जोर से हिलाया। गूलर का दिव्य पुष्प कन्या की मटकी में जा गिरा। जिसके प्रभाव से मटकी का दही बढऩे लगा। यादव कन्या के द्वारा दही की बिक्री किए जाने के बावजूद दही खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। 

यह क्रम पूरे दिन चलता रहा है, और अनजाने में कन्या ने द्वादशी का व्रत भी कर लिया, इससे भगवान विष्णु ने इस कन्या के द्वादशी का व्रत स्वीकार कर लिया और उस कन्या को मनुष्य जीवन में सुख -समृद्धि प्रदान की और अंत में वह कन्या बैकुंठ धाम में निवास पा सकी। मान्यता है कि दामोदर द्वादशी की कथा के पठन- श्रवण से भगवान विष्णु की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है।

दामोदर द्वादशी व्रत के एक दिन पूर्व श्रावण शुक्ल एकादशी को मनाई जाने वाली पवित्रा एकादशी व्रत भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है। पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है, इसलिए भक्तजन श्रावण शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद द्वादशी के दिन ही भगवान शिव व विष्णु को भोग लगाने के पश्चात अपनी मनोकामना की जल्दी पूरी होने की प्रार्थना करते हुए प्रसाद प्राप्त कर अपने उपवास को तोड़ते हैं। मान्यता है कि पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ दामोदर द्वादशी व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। द्वादशी व्रत करने वाले लोगों को द्वादशी से एक दिन पहले के दिन अर्थात एकादशी की तिथि  से ही रहन- सहन, खान- पान संबंधी कुछ जरूरी नियमों का पालन करना पड़ता है। 

व्रतियों को एकादशी के दिन से ही शुद्ध मन एवं संकल्प के साथ व्रत का आरंभ करना चाहिए। द्वादशी के दिन प्रातः ब्रहमबेला में उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो व्रत एवं पूजन का आरंभ करना चाहिए। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक और विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित कर द्वादशी व्रत कथा का पठन- श्रवण करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा में धूप, फूल, मिठाई, जल, दीप अर्पित करना होता है। इसके बाद भगवान विष्णु का पंचामृत अभिषेक किया जाता है। भगवान की आरती करने के बाद भगवान को भोग लगाना चाहिए। मान्यतानुसार इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने से जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं। सर्व सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। 

इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा -अर्चना भी करने का विधान है। मान्यता है कि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की समन्वित उपासना करने से बल, बुद्धि, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार दामोदर द्वादशी तिथि के दिन श्रद्धा, विश्वास और आस्था के साथ भगवान विष्णु की पूजन करने वाले व्यक्ति को अग्नष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता और वह मृत्यु के पश्चात सतलोक में जाता है। दामोदर द्वादशी तिथि को दिन-रात व्रत करके भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने वाले व्यक्ति को गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है और उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वह पुरुष महान पुण्य का भागी होता है।उस व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं रहती है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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