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दिल्ली के गौरव की स्थापना का चुनाव

Delhi electionImage Source: ANI

जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर भले दिल्ली का आकार छोटा प्रतीत हो लेकिन राजनीतिक प्रभाव और वैश्विक महत्व की दृष्टि से यह संपूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करने वाला राज्य है। इसलिए इस राज्य के शासन के बारे में निर्णय करते हुए मतदाताओं से अतिरिक्त समझदारी और दूरदर्शिता की अपेक्षा रहती है। राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था अन्य राज्यों की अपेक्षा थोड़ी जटिल है। इसलिए भी दिल्ली को ऐसे नेता की आवश्यकता, जो अपनी अंधी महत्वाकांक्षा के पीछे नहीं दौड़ रहा हो, बल्कि केंद्र की सरकार के साथ समन्वय बना कर दिल्ली के विकास और दिल्ली के नागरिकों की बेहतरी के लिए काम कर सके।

अफसोस की बात यह है कि दिल्ली में आम आदमी की उम्मीदें जगा कर सत्ता हासिल करने वाले श्री अरविंद केजरीवाल पहले दिन से दिल्ली से लोगों को बेवकूफ बनाने का काम कर रहे हैं। उनकी बड़ी महत्वाकांक्षा है और उनको लग रहा है कि केंद्र सरकार या यूं कहें कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के ऊपर हमला करके वे अपनी महत्वाकांक्षा पूरी कर लेंगे। इसलिए उन्होंने सत्ता में आते ही दिल्ली के हितों को दांव पर लगा कर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए हर मामले में अनावश्यक रूप से केंद्र के साथ टकराव का रास्ता अपना लिया। ऐसा नहीं कि दिल्ली और केंद्र में हमेशा एक ही पार्टी की सरकार रही है। श्रीमति शीला दीक्षित 1998 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं तब केंद्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और अगले छह साल तक केंद्र व राज्य में दो चिर प्रतिद्वंद्वी पार्टियों की सरकार रही।

लेकिन दोनों सरकारों ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रखते हुए भी दिल्ली के लोगों के हितों को दांव पर नहीं लगाया। दिल्ली में मेट्रो निर्माण का फैसला भाजपा की सरकार ने किया था। श्री साहिब सिंह वर्मा की सरकार ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी, जिसे श्रीमति शीला दीक्षित की सरकार ने आगे बढ़ाया। इसी तरह कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी केंद्र की भाजपा सरकार के समय मिली थी और उसी के प्रयासों से दिल्ली में बुनियादी ढांचे के निर्माण का काम शुरू हुआ था। लेकिन श्रीमति शीला दीक्षित ने किसी काम में अड़ंगा नहीं लगाया। उन्होंने इसमें सहयोग करके काम को आगे बढ़ाया। लेकिन दुर्भाग्य से पिछले 10 साल में श्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार की हर पहल में अड़ंगा डालते हैं और दिल्ली के लोगों के हितों को दांव पर लगाते हैं। देश के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना लागू हो चुकी है लेकिन केंद्र सरकार को श्रेय न मिले इसलिए केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों को इससे वंचित रखा है। यह सिर्फ एक उदाहरण है।

इन परिस्थितियों को देखते हुए दिल्ली के लोगों से यह उम्मीद की जा रही है कि 10 साल वे जिस प्रयोग की वजह से अनेक प्रकार की मुश्किलों का शिकार हुए हैं उस प्रयोग को अगले पांच साल किए दोहराने का जोखिम नहीं उठाएंगे। उनको समझदारी से मतदान करना है और दिल्ली को राजनीतिक और प्रशासनिक भंवरजाल से बाहर निकालना है। उन्होंने पिछले 10 साल में केजरीवाल को हर तरह से रंग बदलते देख लिया है। तभी दिल्ली के आम मतदाताओं के बीच केजरीवाल अपनी विश्वसनीयता गंवा चुके हैं। उन्होंने श्री अन्ना हजारे के साथ जब आंदोलन शुरू किया था तब कहा था कि वे राजनीतिक दल नहीं बनाएंगे। फिर उन्होंने राजनीतिक दल बना लिया। जब पार्टी बना ली तब बच्चों की कसम खा रहे थे कि कांग्रेस से तालमेल नहीं करेंगे लेकिन कांग्रेस से तालमेल भी कर लिया। उन्होंने जिन लोगों के साथ राजनीति शुरू की या जिन लोगों ने उनको मदद देकर स्थापित किया उन तमाम लोगों को उन्होंने किनारे कर दिया। श्री शांति भूषण ने एक करोड़ रुपया देकर केजरीवाल की पार्टी बनवाई थी। लेकिन मौका मिलते ही केजरीवाल ने श्री शांति भूषण और उनके बेटे श्री प्रशांत भूषण दोनों को किनारे कर दिया। उन्होंने श्री योगेंद्र यादव, श्री कुमार विश्वास, प्रोफेसर आनंद कुमार, श्री आशुतोष, सुश्री शाजिया इल्मी जैसे तमाम लोगों को पार्टी से बाहर निकाल दिया। इससे उनके असुरक्षा बोध और नीयत का पता चलता है।

जब केजरीवाल राजनीति में आए तब लोगों ने उन पर विश्वास किया क्योंकि लोगों को लगा कि वे देश के दूसरे नेताओं से अलग हैं। ऐसा मानने के तीन कारण थे। पहला कारण तो यह था कि वे आम आदमी हैं। वे आम आदमी की तरह दिखते थे। नीले रंग की मारूति वैगन आर गाड़ी उनके पास थी। वे नीले रंग की ढीली ढाली कमीज और पाजामे की तरह ढीली पतलून के साथ मोजा और सैंडल पहनते थे। वे हमेशा खांसते रहते थे और सर्दियों की शुरुआत उनके मफलर बांधने से होती थी। लेकिन सत्ता में आते ही उन्होंने कैसे रंग बदला यह सबने देखा।

उन्होंने कहा था कि वे और उनके मंत्री गाड़ी, बंगला नहीं लेंगे और सुरक्षा भी नहीं लेंगे। बाद में पता चला कि उनके सभी मंत्रियों ने बड़े बंगले ले लिए, सब बड़ी गाड़ियों में चलते हैं और सबने सुरक्षा ले रखी है। पहले सबने दिल्ली पुलिस की सुरक्षा ली और जब 2022 में पंजाब में आप की सरकार बनी तो वहां की सुरक्षा अलग से ली। अरविंद केजरीवाल के बारे में तो खुलासा हुआ कि उन्होंने अपने बंगले के रेनोवेशन पर कम से कम 33 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। वे आलीशान बंगले में रहते हैं। छह लोगों के परिवार की देखभाल के लिए 28 लोगों का स्टाफ है। वे सड़क पर गाड़ियों के काफिले के साथ निकलते हैं। उनको भारी भरकम सुरक्षा मिली है और उनके लिए रूट लगाया जाता है यानी आम लोगों को उनके काफिले के लिए रोका जाता है। इस तरह आम आदमी होने का जो अनोखापन था वह खत्म हो गया।

उनका दूसरा अनोखापन यह था कि वे ईमानदार प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का आंदोलन खड़ा किया था। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के भ्रष्ट नेताओं की एक सूची जारी की। बाद में उन सभी कथित भ्रष्ट नेताओं से केजरीवाल ने लिखित या मौखिक माफी मांगी और जिनको भ्रष्ट बताया था उनके साथ राजनीतिक और चुनावी तालमेल किया। खुद और उनकी सरकार के मंत्री शराब नीति घोटाले में या हवाला मामले में जेल गए। अब तो उनके गुरू श्री अन्ना हजारे ने भी कह दिया है कि केजरीवाल शराब की कमाई के नशे में बह गए।

यानी उनके ईमानदार होने की पोल खुल गई। उनका तीसरा अनोखापन यह था कि उन्होंने मुफ्त में बिजली, पानी और महिलाओं की बस यात्रा की शुरुआत की थी। लेकिन अब इसका भी अनोखापन खत्म हो गया है क्योंकि सारी पार्टियां इस तरह की चीजें और सेवाएं मुफ्त में देने लगी हैं। इस मामले में भी केजरीवाल की सचाई इस तरह सामने आई कि उन्होंने पिछले साल फऱवरी में दिल्ली की महिलाओं को हर महीने 11 सौ रुपए देने की घोषणा की और वह योजना शुरू ही नहीं हुई। इसके उलट भाजपा की सरकारें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से लेकर महाराष्ट्र तक महिलाओं को नकद पैसे दे रही है। इस तरह केजरीवाल भी अब बाकी सभी नेताओं की तरह प्रमाणित हो चुके हैं।

उनके अपने चरित्र और राजनीति का अनोखापन तो समाप्त हुआ ही लेकिन इस बीच उन्होंने दिल्ली की स्थिति बेहद खराब कर दी। आर्थिक रूप से दिल्ली के ऊपर बहुत बड़ा बोझ हो गया और जो राज्य एक समय मुनाफे के बजट वाला राज्य था वहां अब कर्ज लेने की जरुरत आन पड़ी है। पिछले 10 साल में दिल्ली की हवा ऐसी हो गई है कि नवंबर से जनवरी के तीन महीने में लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है। यमुना का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि छूने भर से बीमारी हो जाती है। दिल्ली की नालियों की सफाई नहीं होती है, जिसकी वजह से पिछले साल बरसात में दिल्ली के कई इलाके गंदे पानी में डूब गए थे।

लुटियन की दिल्ली में पहली बार ऐसा जलभराव होने की खबरें आई कि सांसदों व मंत्रियों का घरों से निकलना मुश्किल था। वोट की राजनीति के तहत हर जगह अवैध घुसपैठियों को बसाने की उनकी सोच का नतीजा यह हुआ है कि दिल्ली एक विशाल झोपड़पट्टी में बदलती जा रही है, जिसमें किसी भी नागरिक को सम्मानजनक जीवन प्राप्त होना मुश्किल है। आने वाले पीढ़ियों के लिए दिल्ली कैसी बनेगी यह सोच कर दिल दहल जाता है। गर्मी में पीने के पानी और बिजली का संकट है तो बरसात में जलभराव और सर्दियों में प्रदूषण की समस्या स्थायी हो गई है।

दिल्ली में कुछ नाले एमसीडी की देखरेख में हैं तो कुछ पीडब्लुडी के और कुछ दिल्ली जल बोर्ड के। कम से कम नालों के रखरखाव के लिए तो एक विभाग तय कर दिया जाता है। लेकिन ऐसी कोई सोच नहीं है। अलग अलग एजेंसियों के होने का नतीजा है कि पुराने पाइप हटाए बगैर उन्हीं पर नए पाइप डाले जा रहे हैं। यह संसाधनों की बरबादी का एक नमूना है। दिल्ली अपने आप में एक देश है, जहां नगरपालिका से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक और निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय है। फिर भी वही घोड़ा वही मैदान! यह भी सोचन चाहिए कि न्यायपालिका का काम सरकार चलाना नहीं है। उसे मजबूरीवश सरकार के काम में हस्तक्षेप करना पड़ता है।

दिल्ली के लोगों के लिए मौका है कि वे इस स्थिति से मुक्ति पाएं और दिल्ली का गौरव बहाल करने के लिए मतदान करें। चाहे विकास का पैमाना हो या नागरिकों के हितों को पूरा करने का मामला हो या दिल्ली को घुसपैठियों से मुक्ति दिला कर इसे संवारने का मामला हो, इन सबको श्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व में ही पूरा किया जा सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने राजधानी अहमदाबाद को जैसे संवारा वैसे दिल्ली को संवारा जा सकता है। आज अहमदाबाद ओलंपिक की मेजबानी की दावेदारी कर रहा है और दिल्ली कहां है? अगर दिल्ली में भाजपा की सरकार बनती है तो केंद्र और दिल्ली की सरकार मिल कर दिल्ली को फिर से गौरवशाली बना सकते हैं।

बहरहाल, दिल्ली के लोगों के सामने केजरीवाल की राजनीति के दोहरेपन को लेकर क्या सोच बनी है इसे प्रतीकित करने वाला एक व्यंग्य किसी पुराने दिल्लीवाली ने मुझे सुनाया। आप भी पढ़ें-  कुछ लोग (जन-गण) श्री अरविंद केजरीवाल (अ-के) से मिले और पूछा कि, “माननीय महोदय, आम आदमी पार्टी का मुद्दा क्या है? कार्य क्या है?”

अ-के: मैं तुम्हें यह बात एक उदाहरण से समझाता हूं, मान लो कि दो व्यक्ति मेरे पास आते हैं। उनमें से एक साफ सुथरा है और एक गंदा। मैं उन दोनों को नहाने की सलाह देता हूं, बताओ उन दोनों में से कौन नहाएगा?

जन-गण: जो गंदा व्यक्ति है वह स्नान करेगा।

अ-के: नहीं, केवल स्वच्छ व्यक्ति ही नहाएगा क्योंकि उसे नहाने की आदत है। जबकि गंदे व्यक्ति को स्वच्छता का महत्व भी पता नहीं।

अब बताओ कौन नहाएगा?

जन-गण: जी सर, आप सही हैं, स्वच्छ व्यक्ति ही स्नान करेगा, क्योंकि उसे स्नान करने की आदत है।

अ-के: नहीं, गंदा व्यक्ति नहाएगा क्योंकि उसे स्वच्छ होने की जरूरत है। अब बताओ कौन नहाएगा?

जन-गण: जी, बिल्कुल सही कहा आपने गंदा व्यक्ति स्नान करेगा क्योंकि उसे स्वच्छ होने की जरूरत है।

अ-के: नहीं, दोनों व्यक्ति नहाएंगे क्योंकि एक को नहाने की आदत है, और एक को नहाने की जरूरतI अब बताओ कौन नहाएगा?

जन-गण: सर आप सौ प्रतिशत सही कह रहे हैं, दोनों व्यक्ति ही स्नान करेंगे।

अ-के: नहीं, दोनों में से कोई नहीं नहाएगा क्योंकि स्वच्छ व्यक्ति को नहाने की जरूरत नहीं है, और गंदे व्यक्ति को नहाने की आदत नहीं है। अब बताओ दोनों में से कौन नहाएगा?

जन-गण: सर आप हर बार अपनी बात से पलटी मार देते हैं और भ्रमित कर देते हैं, आखिर सही उत्तर क्या है?

अ-के: तुमने आम आदमी पार्टी का मुद्दा और कार्य पूछा था ना? तो वास्तव में सही उत्तर है, आपने क्या कहा, सामने वाले ने क्या समझा, सच क्या है ये महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि लोगों के दिमाग को चकरघन्नी खिलाना, गोलमोल जवाब देना, बातें बदलना, भ्रमित करना, पलटी मारना, यही आम आदमी पार्टी का मुद्दा और कार्य, और यही खासियत है।

परंतु दिल्ली के लोगों को अब यह खासियत नहीं चाहिए। उनको इससे मुक्ति पानी है। वे स्पष्ट बोलने और काम करने वाली पार्टी को चुनेंगे। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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