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बजट 2025 की अपेक्षाएं

Economy crisis Modi governmentImage Source: ANI

नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाले दृष्टिकोण से काम नहीं चलने वाला है। विपक्ष को भी चाहिए कि वो सिर्फ राजनीतिक कारणों से आवश्यक और सकारात्मक सुधारों का विरोध न करे। उसे भी देश की अर्थव्यवस्था के हित में काम करना चाहिए और हर सुझाव पर अड़ंगेबाजी नहीं करनी चाहिए। परंतु क्या देश का तंत्र और व्यवस्था ये जरूरी सुधार होने देगी?

बजट 2025 की तैयारियां चल रही है और उसके साथ ही 2047 तक विकसित भारत बनाने का अभियान भी चल रहा है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का सपना जल्दी से जल्दी भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने और विश्व की सबसे बड़ी तीन अर्थव्यवस्थाओं में भारत का नाम शामिल करने की है। इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री का एक संकल्प ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ भी है और उसी में ‘स्पीड ऑफ डूइंग बिजनेस’ भी निहित है। माननीय मंत्रीगणों और अधिकारिगणों को यह समझ कर इस दिशा में त्वरित कार्य करने की आवश्यकता है। जब प्रशासन तंत्र अवांछित और जबरदस्ती के कानूनी विवादों की संभावना को खत्म करेगा तभी सही मायने में विकास की राह में गति आएगी।

आयकर

बजट में जनता की दिलचस्पी आमतौर पर आयकर के प्रावधानों को लेकर रहती है। इस युग के करदाता आयकर देना चाहते हैं, पर साथ साथ अपेक्षा रखते हैं कि उन्हें आयकर रिटर्न दाखिल करने में सहूलियत हो और उन्हें परेशान न किया जाए। इस लिहाज से कुछ बदलाव जरूरी हैं, जो इस प्रकार हैं–

  1. नया आयकर कानून तैयार हो रहा है। उसे लागू करने से पहले उसका मसौदा सामने लाकर सलाह मशवरा करना चाहिए।
  2. आयकर छूट को एक बार में बढ़ा कर 12 लाख रुपए सालाना कर दिया जाना चाहिए। इसके ऊपर की सारी आय पर 20 फीसदी कर का एक ही स्लैब होना चाहिए। साथ ही कैपिटल गेन, लॉन्ग टर्म, शॉर्ट टर्म गेन पर कर के प्रावधान खत्म कर देने चाहिए। हां, वृद्ध, दिव्यांग, स्वास्थ्य, गौशाला, पर्यावरण संबंधी कार्य, इत्यादि के लिए कर छूट का प्रावधान रखना चाहिए।
  3. आयकर से संबंधित विवादों के निपटारे से जुड़े कुछ जरूरी सुधार भी होने चाहिए। जैसे कमिश्नर (अपील) एक विभागीय अधिकारी होता है, जो आमतौर पर अपने से नीचे के अधिकारी द्वारा किए गए निर्णय को ही सही मानता है। इसमें बदलाव करने की जरुरत है। अपील का दूसरा मंच इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) है, जिसका दायरा बढ़ाने की जरुरत है और साथ ही वहां जिन वरिष्ठ अधिकारियों को नियुक्त किया जाए उनके निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय लेने के लिए यह प्रावधान कर दिया जाए कि वे आयकर विभाग में नहीं लौटेंगे, यानी सेवानिवृत्ति तक वहीं काम करेंगे।
  4. हर अपील का निपटारा ज्यादा से ज्यादा एक साल के भीतर होना चाहिए। अभी समयबद्धता का कोई प्रावधान नहीं है।
  5. एडवांस रूलिंग प्रक्रिया को काफी मजबूत, त्वरित और लोकप्रिय बनाने की ज़रूरत है। ऐसा होने से कोई भी करदाता पहले ही आयकर विभाग से किसी भी विषय पर और आयकर की देनदारी के विषय में जानकारी ले सकता है जो आयकर विभाग और करदाता दोनों के लिए बाध्यकारी होगा, और इस जानकारी को ध्यान में रख कर वो अपना कार्य करेंगे। इससे कई विवादों की संभावना उत्पन्न ही नहीं होगी।
  6. फिलहाल आयकर सर्च और सर्वे, डायरेक्टर जनरल (इन्वेस्टिगेशन) के कार्यालय द्वारा होता है। हैरानी की बात है कि सर्च और सर्वे हुए आयकरदाताओं का स्क्रूटिनी असेसमेंट सेंट्रल सर्किल में होता है जो उसी डायरेक्टर जनरल (इन्वेस्टिगेशन) के सीधे नियंत्रण में है। यह सीधा सपाट हितों का टकराव है। यह प्रक्रिया बिल्कुल अलग, निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। इससे भी ज्यादा अचंभे की बात यह है कि इन्वेस्टिगेशन विंग के कामकाज का कोई ऑडिट नहीं होता है, जबकि आयकर विभाग के अन्य सभी विंग का ऑडिट होता है चाहे वो लीपापोती ही हो।
  7. आयकर की टीम सर्च और सर्वे के लिए जाए तो पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। अभी उलटा होता है। आयकर की टीम जहां भी सर्च या सर्वे के लिए जाती है वो सबसे पहले उसके परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकॉर्डर को बंद कर जब्त कर लेती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से एकतरफा और अपारदर्शी है जहां आयकरदाता को पहले से ही कर अपवंचना का दोषी मान कर काफी गलत और गंदे तरीके से व्यवहार, और कानूनी प्रावधानों की अवहेलना की जाती है। करदाता को कानून की जानकारी नहीं होती, वो डरा होता है इसलिए उसका गलत फायदा उठाया जाता है।
  8. जिस भी व्यक्ति के यहां सर्च या सर्वे हो, या स्क्रूटिनी असेसमेंट की प्रक्रिया के दौरान उसके खिलाफ सबूत रोपने, या आंकड़ों से छेड़छाड़ करने, या व्यक्तिगत लाभ की पूर्ति नहीं होने पर जान बूझकर किसी भी सही मुद्दे को गलत मानने को और परेशान करने की प्रवृत्ति को अपराध बनाया जाना चाहिए। अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। माननीय न्यायालयों ने कई बार आयकर अधिकारियों के खिलाफ सख्त आदेश दिए हैं।
  9. सकारात्मकता लाने और अतीत को पीछे छोड़ने के लिए एक ‘सनसेट’ क्लॉज लाने की जरुरत है, जिसमें यह प्रावधान किया जाए कि एक निश्चित अवधि से पहले के मामले किसी हाल में नहीं खोले जाएंगे।
  10. हर आयकर दाता को अपना बैलेंस शीट जमा करना अनिर्वाय होना चाहिए जो फिलहाल नहीं है। अभी इनकम एंड एक्सपेंडिचर अकाउंट या रिसीप्ट एंड पेमेंट अकाउंट के साथ आयकर रिटर्न जमा किया जा सकता है।
  11. डेप्रिसिएशन के लिए आयकर कानून और कंपनी/एलएलपी कानून में अंतर है, जिससे काफ़ी विसंगति और परेशानी होती है। इसे एक होना चाहिए। बैलेंस शीट और कंप्यूटेशन अलग अलग जमा करने का झमेला खत्म हो कर सिर्फ बैलेंस शीट एक संपूर्ण दस्तावेज होना चाहिए, जिसमे आयकर विभाग के लिए प्रथम दृष्टि में वांछित सभी जानकारी उपलब्ध हो।
  12. फाइनेंशियल ईयर और असेसमेंट ईयर का दृष्टिकोण बेकार हो चुका है। यह जबरदस्ती भ्रम पैदा करता है और गलतियां करवाता है। सिर्फ पहली जनवरी से 31 दिसंबर तक का एक कैलेंडर ईयर होना चाहिए।
  13. हर इंसान जिनकी आय छूट सीमा से ज्यादा है भले ही उसकी आय कर मुक्त है, रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य होना चाहिए। ऐसा देश में फाइनेंशियल और टैक्स डिसिप्लिन का माहौल बनाए रखने के लिये जरूरी है। इनकम टैक्स रिटर्न जमा करना सम्मान और गर्व का विषय, तथा देशभक्ति का पर्याय होना चाहिए।

वस्तु व सेवा कर (जीएसटी)

जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से कारोबारियों को किसी न किसी तरह की परेशानी आती रहती है। उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए कुछ जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं। जो इस प्रकार हैं–

  1. जीएसटी का सिंगल रेट 12 फीसदी तय किया जाना चाहिए और सभी वस्तु और सेवा पर इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलना चाहिए, किसी भी तरह का अपवाद नहीं होना चाहिए। भूलभुलैया और मकड़जाल जैसी स्थिति, जो विवाद का जनक है, नहीं होनी चाहिए।
  2. सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी दृष्टिकोण को बदल कर सिर्फ एक जीएसटी होना चाहिए। राज्यों को विश्वास में लेकर, हर राज्य में समान जीएसटी और हर उत्पाद का समान मूल्य, चाहे वो प्रॉपर्टी खरीद बिक्री पर स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज हो, पेट्रोल डीजल हो, एक समान होना चाहिए। तभी सही मायने में एक देश एक कर का सपना साकार होगा।
  3. हर कमिश्नरी में अपीलीय ट्रिब्यूनल स्थापित किया जाना चाहिए। अपील का फैसला छह महीने में होना चाहिए।
  4. जीएसटी की टीम सर्च और सर्वे के लिए जाए तो पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। अभी उलटा होता है। जीएसटी की टीम जहां भी सर्च या सर्वे के लिए जाती है सबसे पहले उसके परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्डर बंद कर दिए जब्त कर लेती है जो प्रथम दृष्टि में ही गलत है।

कंपनी/एलएलपी

  1. इस विभाग में लगभग सभी काम ऑनलाइन होने लगा है जो प्रशंसा योग्य है। पर प्रक्रिया इतनी जटिल और धीमी है की सभी परेशान और त्रस्त हैं। छोटी ग़लतियां भी अपराध मानी जाने लगी हैं। पेनाल्टी की जगह सीधा प्रॉसिक्यूशन। लोग इस विभाग से डरने लगे हैं। जहां पेनाल्टी का प्रावधान है उसकी मात्रा काफ़ी ज्यादा है। अनगिनत चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी अपना सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस सरेंडर कर रहे हैं, जो चिंता का विषय है। जो हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स अपना व्यवसाय बंद कर देश छोड़ने का सोच रहे हैं उन्हें प्रेरित कर देश में ही निवेश करवाने की जरूरत है। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी।
  2. कंपनियों के विलय की प्रक्रिया काफी सरल और त्वरित होनी चाहिए। कंपनी और एलएलपी के विलय का भी प्रावधान होना चाहिए। ऐसा पहले होता था, परंतु एक मामले में उच्च न्यायालय के ऐसे फैसले के खिलाफ कंपनी विभाग द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय में अपील की गई है, जिसकी सुनवाई लंबित है। इस बात का तुरंत संज्ञान ले कर उचित कार्यवाही कर ऐसे विलय के प्रावधान का कानून तुरंत लागू करना चाहिए।

बैंकिंग

बैंकिग सेक्टर में सुधारों की चर्चा लंबे अरसे से चल रही है। सरकार को कई नीतिगत सुधार करने हैं। लेकिन अगर आम लोगों के हितों और उनकी सुविधाओं को देखते हुए कुछ छोटे छोटे सुधार कर दिए जाएं तो उससे लोगों को बड़ी राहत मिलेगी, खासतौर से निम्न और मध्य आय वर्ग के लोगों को। जो छोटे बदलाव तत्काल किए जा सकते हैं वो इस प्रकार हैं-

  1. देश का लगभग हर व्यक्ति बैंकों द्वारा अलग अलग सेवाओं के बदले मनमाने तरीके से कुछ न कुछ शुल्क काटने से त्रस्त और दुखी है। अलग अलग सेवाओं के नाम पर बैंक पच्चीस, पचास, या सौ रुपए तक यदा कदा खाते से काटते रहते हैं। ये शुल्क ऐसी सेवाओं के बदले लिए जाते हैं, जो खाताधारक को अनिवार्य होते हैं, जैसे एसएमएस भेजने, डेबिट कार्ड भेजने, बैंक खाते से लेन देन की जानकारी, स्टेटमेंट या पासबुक आदि लेने जैसे काम। ये निश्चित रूप से निःशुल्क होने चाहिए। आम लोग अपने रोजमर्रा की जिंदगी में इतने व्यस्त होते हैं कि वे इसकी शिकायत करने या कानूनी लड़ाई लड़ने के बारे में सोच भी नही सकते हैं। यह बुनियादी रूप से लूट है, जिसे कानूनी भाषा में अनजस्ट एनरिचमेंट कहते हैं, जिसे तुरंत बंद करना चाहिए।
  2. केवाईसी यानी नो यूअर कस्टमर का मामला भी आम उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द है। इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं है कि कितने समय के अंतराल पर ग्राहकों को कौन कौन से कागजात जमा कराने होंगे। अलग अलग बैंक अलग अलग मापदंड बनाए हुए हैं, जिनसे आम खाताधारकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  3. खाताधारकों के लिए भी केवाईसी के तर्ज पर केवाईबीबी यानी नो यूअर बैंक एंड बैंकर्स की भी व्यस्था होनी चाहिए। अगर कोई बैंक सेवा स्तर को सही नहीं रखता है, या कोई बैंक अधिकारी सही व्यवहार नहीं करता है, या कोई दूसरा बैंक बेहतर प्रतीत होता है; तो बैंक खाते को दूसरे बैंक में स्थानांतरित यानी पोर्ट करने की व्यवस्था होनी चाहिए। अभी मोबाइल फोन कंपनियों में यह संभव है तो बैंकों में भी हो सकता है। इससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और सर्वांगीण सुधार होगा।
  4. बैंक में खातेदार का चाहे जितना भी रुपया बचत खाते में या चालू खाते में या फिक्स्ड डिपॉजिट योजना में जमा हो, सबका कुल मिला कर सिर्फ पांच लाख रुपए का ही बीमा होता है। अगर बैंक किसी कारण से बंद हो जाता है तो डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट एश्योरेंस गारंटी कॉरपोरेशन यानी डीआईसीजीसी द्वारा सब मिला कर अधिकतम पांच लाख रुपए ही मिलेंगे। यह गलत है। खातेदार को उसकी पूरी रकम की गारंटी होनी चाहिए। यह सरकार की विश्वसनीयता का सवाल है। यह अच्छी बात है कि श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस रकम को एक लाख से बढ़ा कर पांच लाख किया। लेकिन आज के समय में वित्तीय अनिश्चितताओं के कारण लोग आशंकित रहते हैं। इसलिए सरकार को पूरी रकम की गारंटी देनी चाहिए। या फिर कम से कम ऐसी कोई बीमा योजना लागू करनी चाहिए, जिसका खाताधारी चाहे तो लाभ ले सके।
  5. रिजर्व बैंक ने काफी सोच विचार कर सिर्फ पचास हजार रुपए तक के डिमांड ड्राफ्ट नगदी रुपए से बनाने की अनुमति दी है। बैंक मनमानी कर इस प्रावधान को नहीं मानते हैं और आवेदक को इतना परेशान करते हैं की वो हताश हो कर प्रयास छोड़ देता है। यह ऐसे नागरिक और छोटे व्यापारी जिनकी बड़ी पहुंच नहीं है, उनके लिए अन्याय है।
  6. बैंक अधिकारी किसी भी पत्र के पावती नहीं देना चाहते। उसके लिए घंटों इंतजार करवाना, एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक बार बार भेजना, गलत व्यवहार, अपशब्द का प्रयोग, अपमान करना आदि तो आम बात है। इसे तो वे प्रताड़ना मानते ही नहीं। इस पर कड़े दिशा निर्देश होने चाहिए।
  7. खाताधारकों की निजता और उसके लेन देन की गोपनीयता के अधिकार को सुरक्षित रखने की जरुरत है। अफसोस की बात है कि बैंक अधिकारी आजकल आयकर अधिकारी भी बन गए हैं। खाताधारक कोई लेन देन कर रहा है या नहीं, इस पर नजर रखना तो ठीक है लेकिन वह कोई लेन देन क्यों कर रहा है इसका जवाब बैंक द्वारा पूछा जाना अनुचित है। इस विषय पर स्पष्ट दिशा निर्देश होना चाहिए।
  8. ऐसा माना जाने लगा है कि भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के तहत बैंकिंग ओंबुड्समैन बैंकों का ही प्रतिनिधि है, और उनसे बैंकों के खिलाफ फैसला लेना असंभव है। इस धारणा को बदलने की जरुरत है।
  9. केंद्र की श्री नरेंद्र मोदी सरकार ने अनेक बैंकों के विलय का कार्य पूरा कर लिया है। फिर भी कई राष्ट्रीयकृत बैंकों का विलय होना है। इस दिशा में भी कदम उठाने चाहिए ताकि अगले आम चुनाव तक यह कार्य पूरा हो जाए।

सामान्य सुझाव

बैंकिंग, आयकर और वस्तु व सेवा कर से इतर कुछ अन्य बदलावों की भी जरुरत है, जो निम्नलिखित हैं –

  1. आधार, पैन और मतदाता पहचान पत्र को एक साथ मिल कर एक नया नंबर दिया जाना चाहिए, जो हर जगह काम आए।
  2. बैलेंस शीट के परफॉर्मा में एकरूपता लानी चाहिए और आयकर, जीएसटी, आरओसी, एमसीए आदि के लिए एक ही फाइलिंग पोर्टल होना चाहिए।
  3. कई जरूरी जानकारी या आंकड़े प्रॉपराइटरशिप, पार्टनरशिप, एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स और ट्रस्ट के नाम पर छिपाए जाते हैं क्योंकि कंपनियों के मामले में आम लोगों के देखने और छानबीन के लिए कोई भी ऑनलाइन डाटा उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
  4. पुलिस की भाषा देवनागरी लिपि में लिखी उर्दू शब्दावली वाली होती है, जो आम लोगों के लिए दुरूह है और मौजूदा समय में अव्यावहारिक भी है। इसे समझना मुश्किल होता है। इसमें तुरंत बदलाव होना चाहिए। वैसे भी श्री नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में नए कानून यानी भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू कर दिए हैं इसलिए यह बदलाव और भी ज्यादा जरूरी है।

सरकार इन सुधारों या बदलावों को सिर्फ तीन साल के लिए प्रायोगिक तौर पर करे तो इससे सकारात्मक बदलाव तुरंत दिखने लगेंगे। सरकार यह फैसला करती है तो तीन कैलेंडर ईयर यानी 2026, 2027 और 2028 में ये सारे बदलाव सिस्टम में एडजस्ट हो जाएंगे। इससे कारोबार सुगमता सुनिश्चित हो जाएगी और साथ ही आम लोगों को राहत मिलने लगेगी। इसका फायदा 2029 के आम चुनाव में जरूर मिलेगा। तभी सरकार को इस दिशा में त्वरित गति से सुधार करने की आवश्यकता है। नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाले दृष्टिकोण से काम नहीं चलने वाला है। विपक्ष को भी चाहिए कि वो सिर्फ राजनीतिक कारणों से आवश्यक और सकारात्मक सुधारों का विरोध न करे। उसे भी देश की अर्थव्यवस्था के हित में काम करना चाहिए और हर सुझाव पर अड़ंगेबाजी नहीं करनी चाहिए। परंतु क्या देश का तंत्र और व्यवस्था ये जरूरी सुधार होने देगी? (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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