श्रीकृष्ण ने गौचारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी की थी। इस दिन श्रीकृष्ण पहली बार गाय चराने के लिए गए थे। अर्थात पहली बार कन्हैया ने ग्वाले का रूप धारण कर प्रथम बार गोप कर्म प्रारंभ किया था। श्रीकृष्ण के गौचारण आरंभ करने के कारण कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी कहा जाता है। गोपूजा का यह पर्व गौ संरक्षण और गौ संवर्धन को समर्पित है।
-अशोक “प्रवृद्ध”
श्रीकृष्ण बाल्यकाल से ही गौ अर्थात गाय, गौदुग्ध, मक्खन, गौचारण, गौसंरक्षण, गौसंवर्द्धन से गहरे रूप से जुड़े रहे हैं, और उनके जीवन चरित से गौप्रेम और गौ के प्रति उनकी ममत्व, स्नेह, दुलार, संरक्षण व देवत्व की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है। गौप्रेम और गायों की रक्षा करने के कारण ही श्रीकृष्ण का अतिप्रिय नाम गोविन्द पड़ा। बाल्यकाल में श्रीकृष्ण के द्वारा गौ दुग्ध निर्मित मक्खन चोरी कर खा जाने, गौचारण व गाय से संबंधित अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। भागवत पुराण की कथा के अनुसार श्रीकृष्ण अपने लिए मक्खन की चोरी नहीं करते थे, बल्कि वे चोरी कर बानरों को खिलाते थे। यदि बानरों को खिला नहीं पाते थे, तो पृथ्वी पर लोटकर क्रंदन करते थे।
बचपन से ही श्रीकृष्ण समदर्शी थे। यह उनको रुचिकर नहीं था कि गोपियाँ भर -भरकर धृत, दूध- मक्खन खाएं और और बानरों को कुछ भी न मिले। इसलिए गोपियों से चुराकर वे बानरों को देते थे। उनके लिए गोपी और बानर दोनों ही नवनीत के समान अधिकारी थे। एक अन्य प्रसंग के अनुसार नटखट श्रीकृष्ण को ऊखल से बांधने के लिए माता यशोदा रस्सी लाई, परंतु वह छोटी पड़ी। अंततः समस्त गोकुल ग्राम की रस्सियों को जोड़कर भी छोटी पड़ी, तो श्रीकृष्ण दयापूर्वक स्वयं ही बंध गए। विष्णु का एक नाम दामोदर भी है। दम अर्थात इंद्रियनिग्रह, और उदर का अर्थ है उत्कृष्ट गति। दम के द्वारा उच्च स्थान प्राप्त करने वाला दामोदर है। विष्णु इंद्र के कनिष्ठ भाई थे, उनको तप द्वारा विष्णुपद प्राप्त होता है।
महाभारत मे कहा गया है- दमाद् दामोदरं विदु। दामन् शब्द का अर्थ गाय की रस्सी भी है। दामोदर वह है, जिसका उदर गाय की रस्सी से बांधा गया था। यह श्रीकृष्ण का गौप्रेम ही था, जो उन्होंने गौ बांधने वाली रस्सी से स्वयं को बंधने दिया, और दामोदर कहलाये। एक अन्य कथा के अनुसार गो, गोप व गोपियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से सप्तमी तक गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। आठवें दिन इन्द्र अहंकार रहित होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा। गोपाष्टमी ब्रज संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी की यह तिथि श्रीकृष्ण के गौचारण से भी जुड़ी हुई है।
श्रीकृष्ण की गौचारण लीला की पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने गौचारण कार्य का प्रारंभ अपने उम्र के छठे वर्ष में प्रवेश करने के बाद की थी। उन्होंने इसके लिए अपने बड़े हो जाने की बात बताते हुए माता यशोदा से आज्ञा मांगी, तो माता ने उन्हें बाबा से पूछ लेने की बात कही। यह सुन बालक श्रीकृष्ण शीघ्र नंद बाबा से पूछने पहुंच गए। नंद बाबा ने कहा- लाला अभी तुम बहुत छोटे हो। अभी तुम बछड़े ही चराओ। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा- बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा। श्रीकृष्ण के नहीं मानने पर नंद ने कहा कि ठीक है, तुम पुरोहित शांडिल्य ऋषि को बुला लाओ, वह गौचारण का मुहूर्त्त देख कर बता देंगे। श्रीकृष्ण उसी समय पुरोहित शांडिल्य ऋषि के पास पहुंचे और उन्हें मक्खन का लालच देते हुए बोले- आपको बाबा ने बुलाया है, गौचारण का मुहूर्त्त देखना है। आप आज ही का मुहूर्त्त बता देना, मैं आपको बहुत सारा मक्खन दूंगा।
शांडिल्य ऋषि नंद के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने उनसे पूछा- क्या बात है? आप बार बार क्या गिनती कर रहे हैं? पुरोहित बोले, क्या बताएं नंदबाबा? केवल आज का ही मुहूर्त्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त्त ही नहीं है। पुरोहित की बात सुन कर नंद ने श्रीकृष्ण को गौचारण की स्वीकृति दे दी। श्रीकृष्ण ने गौचारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी की थी। इस दिन श्रीकृष्ण पहली बार गाय चराने के लिए गए थे। अर्थात पहली बार कन्हैया ने ग्वाले का रूप धारण कर प्रथम बार गोप कर्म प्रारंभ किया था। श्रीकृष्ण के गौचारण आरंभ करने के कारण कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी कहा जाता है। गोपूजा का यह पर्व गौ संरक्षण और गौ संवर्धन को समर्पित है।
कथा के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन माता यशोदा ने सुबह जल्दी उठकर अपने लल्ला का अति सुंदर श्रृंगार किया और मधुर गीत गाते हुए विभिन्न प्रकार के वाद्य भी बजाए। पंडितों ने वेद मंत्र से बाल गोपाल का पूजन किया। गोप, गोपियों और समस्त ब्रजवासियों ने मंगल गीत गाते हुए उन्हें बधाईयां दी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते श्रीकृष्ण चले, उनके पीछे बलराम और श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल चले। इस प्रकार से विहार करते हुए श्रीकृष्ण ने वन में प्रवेश किया तब से श्रीकृष्ण की गौचारण लीला का आरम्भ हुआ।
पुराणों में श्रीकृष्ण के गौचारण के समय और फिर गोकुल-वृंदावन से संबंधित भांति- भांति की कथाएं अंकित प्राप्य हैं। गौचारण से संबंधित इन कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के गौ चराने वन जाते समय उनके चरणों से वन भूमि अत्यन्त पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन जाता है। गौचारण के समय ही श्रीकृष्ण की भेंट श्रीराधा रानी एवं अन्य गोपिकाओं से होती है। गोचरण लीला के कारण ही श्रीकृष्ण गो पूजक और गोपाल कहलाए। इनको गायों के साथ घिरकर और गोष्ठ में रहना अत्यंत पसंद था। गायों के संग रहने में ही उनको असीम सुख की प्राप्ति होती थी। वे गायों के चरणों की धूल को अपने अंग में लगाते थे।
इससे गायों से भरे ब्रजमंङल में उनको वैकुंठ की विस्मृति हो जाती। गौ सेवा की शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने ग्वाले का स्वरूप धारण किया और गाय एवं गोपों के हित के लिए इनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए ही उन्होंने गिरिराज गोवर्धन पर्वत को अपनी उल्टे हाथ की छोटी उंगली पर धारण किया। यही कारण है कि आज भी ब्रजमण्डल में श्रीकृष्ण द्वारा की गई गोचारण लीला का अनुकरण उसी भक्ति भाव और पारंपरिक रूप से होता है। मान्यताओं के अनुसार ब्रजमण्डल में होने वाले इस कार्यक्रम और शोभायात्रा में सम्मिलित होने का फल अश्वमेध यज्ञ और वाजपेय यज्ञ के फल से भी अधिक है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी का त्योहार समस्त भारत में मनाया जाता है। और गाय की विधि विधान से पूजार्चना की जाती है। इस वर्ष 2024 में गोपाष्टमी का पर्व 9 नवम्बर 2024 दिन शनिवार को है। अष्टमी तिथि प्रारंभ 8 नवम्बर 2024 को अपराह्न 11:56 से होगा और अष्टमी तिथि समाप्त 9 नवम्बर 2024 को अपराह्न 10:45 तक होगी। मान्यतानुसार गोपाष्टमी के दिन गाय की विधिवत पूजा करने वाले व्यक्ति को सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अच्छे भाग्य का आशीर्वाद भी मिलता है। समस्त मनोकामना पूर्ण होती हैं। यही कारण है कि बृजवासी और संपूर्ण विश्व के वैष्णव लोग इस पर्व को काफी धूमधाम से मनाते हैं।
बहरहाल, भारतीय सनातन संस्कृति में गाय को सर्वदेवमयी माना जाता है। गाय में सारे देवी-देवता बसते हैं। गाय की पूजा से ग्रह-पीड़ा भी समाप्त होती है। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी भी कहा गया है। गाय भारतीय संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है। गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं और गाय को गोमाता कहकर संबोधित करते हैं। और दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ को पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान मानकर गोपाष्टमी के दिन पूजन- अर्चना करते हैं।