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राम से ज्यादा राम के भक्तों का ख्याल जरूरी है

india corruptionImage Source: ANI

india corruption:  राज्य में पेयजल के पाइप टूट रहे हैं, बिजली अनियमित रूप से आ और जा रही हैं, सीवर और गंदी नालियाँ बजबजा रही है, ऐसे में चित्रकूट में अरबों रुपया खर्च करने की योजना क्या एक बार फिर स्मार्ट सिटी परियोजना की तरह बुरी तरह फ्लाप नहीं होगी, इसकी क्या गारंटी हैं ?

विगत वर्षों में यह देखा गया है की जितनी भी अरबों रुपयों की परियोजनाओं को सरकार ने घोषित किया उनको अमलीजामा कभी नहीं किया जा सका।

आखिर निर्माण की या सुधार की जितनी भी योजनाए मुख्यमंत्री या मंत्री से घोषित कराई जाती है क्या उनके प्रगति की जानकारी अथवा परिणाम को जानना क्या जरूरी नहीं हैं।

स्मार्ट सिटी योजना मे अरबों रुपये खर्च किए गये परंतु लक्ष्य का बीस प्रतिशत ही पूर्ण हुआ।

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भोपाल मे रंगमहल के सामने शासकीय कर्मियों के आवास के लिए बनाई गई पाँच मंजिल छह इमारतें आज दो साल बाद भी खाली पड़ी हैं क्यूं..?

इसका जवाब शासान में बैठे लोग -बस यह कह के छूटी पा लेते है कि अंतर विभागीय मामला है जल्दी निपट लिया जाएगा। अरे भाई सरकार में जल्दी की अवधि कितनी होती है क्या इसकी कोई मियाद हैं भी या नहीं।

दूसरा सवाल यह भी है कि जिन लोगों की निष्क्रियता के कारण परियोजना का खर्च अधिक हुआ क्या उनसे कोई जवाब-तलब होगा या नहीं।

वैसे विगत दस वर्षों का अनुभव यही बतात है कि योजनाओं की घोषणएं करने वाले वाहवाही के लिए मुख्यमंत्री या मंत्री से सार्वजनिक बयान दिलवा कर उनको खुश कर देते हैं, परंतु उस परियोजना की प्रगति की घोषणा नहीं होती।

यही कारण है कि मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रोज-रोज कुछ ऐसी नई घोषणएं करते रहते हैं। अब अगर यही शासन है तो निश्चय ही अफसरशाही राजनीतिक नेत्रत्व को बुद्धू बना रही है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव की घोषणा

अन्यथा प्रत्येक योजना या परियोजना का आडिट हर वर्ष होकर मंत्रिमंडल के सामने रखा जाना चाहिए और मंत्री परिषद को उन अफसरों से जवाब तलब करना चाहिए जिनकी जिम्मेदारी इन योजनाओं को पूरा करने की थी।

अभी मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक घोषणा की है की चित्रकूट को अयोध्या के समान भव्य बनाएंगे। ठीक हैं परंतु क्या अफसरों ने उनको यह बताया है कि चित्रकूट को जाने वाली सड़कों की हालत कैसी हैं ?

वहां पेयजल और बिजली और सीवर का कैसा इंतजाम है ? रेल से जाने वाले तीर्थयात्रियों को क्या कष्ट हो रहा हैं – इसके बारे में वहां की जनता की शिकायत को कितना दूर किया गया ?

अखबारों की हेडलाइन रोज बने इसलिए कुछ बड़ी घोषणा प्रतिदिन करा दी जाए उससे जमीनी हालत में कोई तबदीली नहीं होगी।

और न सरकार की छवि ही बनेगी, उलटे वणः के भूक्तभोगी इससे और खिन्न ही होंगे। राज्य में जगह – जगह पर सड़क और पेयजल को लेकर अखबारों में खबर छपती है और धरना – प्रदर्शन होते हैं, पर निराकरण नहीं होता।

कूप मे भांग तो पड़ी हुई ही है(india corruption)

बात चाहे नगर निगम की हो या नगर परिषदों की उक्त दो समस्याएं अनसुलझी ही रहती है।

एक समस्या जो भोपाल मे देखी जा रही है वह है कि कालोनियों मंे पहुँच मार्ग या सड़क पर कोई दबंग अथवा बिल्डर अवैध कब्जा कर लेता है और नगर निगम उसे नगर एवं नियोजन निदेशालय का मसला बात कर हाथ झाड़ लेता है और टी एन सी पी निर्माण कार्य के वैध या अवैध होने की कानूनी पेंच बात कर भाग लेता हैं परेशान होते हैं वहां के रहवासी।

आज जरूरत है कि जो कुछ पहले से निर्मित है वह वैध है या नहीं उसका तुरंत निराकरण हो।

अभी हाल ही में बिल्डर लाबी का एक कारनामा सौरभ शर्मा कांड में निकलकर आया है, जिसमंे कानून को कुछ अफसरों ने अपनी जेब में रखकर आम लोगों को भूमि खरीदने की एक खास क्षेत्र मे अनुमति नहीं दी।

पर जब बड़े -बड़े आईएएस अफसरों को खरीदना हुआ तब सभी अनुमति मिल गई। अब सरकार का राजनीतिक नेत्रत्व भी इस मामले की अनदेखी ही कर रहा हैं।

यह मसला अदालत मंे यानि की हाईकोर्ट जरूर जाएगा वहां जज साहब ने अगर यह सवाल सरकारी पक्ष से पूछ लिया कि भूमि खरीदने की अनुमति आम नागरिकों क्यूं नहीं दी गई ?

और किस आधार पर आईएएस अफसरों को उसी स्थान पर भूमि खरीदने और भवन निर्माण की अनुमति किस आधार दी गई ? तब शायद सरकारी पक्ष को जवाब देना कठिन हो जाएगा।

इस आलेख का आशय यह है कि बहुत हो चुकी घोषनाएं और वादे सरकार के अब जो कुछ है उसे तो ठीक ढंग से चलाया जाए राजनीतिक बयानबाजी से रोजमर्रा की इन तकलीफों का हाल नहीं होगा,

जब तक अफसरों की जिम्मेदारी नहीं नियत होगी और यह काम राजनीतिक नेत्रत्व को ही करना होगा, अन्यथा कूप मे भांग तो पड़ी हुई ही है।

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