तेरहवां एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप का उत्सव देश में अगले डेढ़ महीने चलने वाला है। दस देश विश्व विजेता बनने के लिए भारत के मैदानों पर एक-दूसरे से खेलने वाले हैं। विश्व कप में अच्छा खेलने का दबाव सभी पर भारी पड़ता है।….बल्लेबाजों का बोलबाला रहने ही वाला है। लेकिन जिसकी गेंदबाजी में दमखम और कलाकारी होगी उसको हराना मुश्किल ही रहेगा। तनाव और दबाव भरे खेल में कोई भी टीम अपना बुरा दिन होने पर पचक कर हार भी सकती है। कुछ टीमें पूरे पचास ओवर खेलने में भी असमर्थ रहेंगी।
13वां एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप
“क्रिकेट एक भारतीय खेल है जिसकी आकस्मिक खोज अंग्रेजों ने की।“ ऐसा तीन दशक पहले समाजशास्त्री आशीष नंदी ने यूं ही कह दिया होगा। समय जैसे बीतता रहा, वैसे ही इस वाक्य पर भारतीयों का विश्वास बढ़ता गया। क्रिकेट को जैसा अपन भारतीयों ने अपनाया शायद वैसा तो अंग्रेजों का हम लोगों ने कुछ भी नहीं अपनाया। हमारी रगों में क्रिकेट का खून खास तेजी से दौड़ता और उछल-कूद मचाता है। हमारे जीवन में रोमांच के अनेक सुनहरे अवसर देता है। विश्व पटल पर हम भारतीयों के पांव जमे होने का स्वाभिमान भी देता है। क्रिकेट ही हमारी राष्ट्रभक्ति का असल जुनून हो गया है।
दुनिया में क्रिकेट खेलने वाले देश मुश्किल से कुल पंद्रह-बीस ही हैं। सूरज न डूबने वाले विशाल ब्रिटिश साम्राज्य में कुछ ही देशों ने क्रिकेट को अपनाया। मगर जैसा भारतीय उपमहाद्वीप ने अपनाया वैसा किसी और ने नहीं। यहां तक कि क्रिकेट को भारतीय अस्मिता व आस्था से जोड़ दिया। भारत में क्रिकेट खेलने का रिवाज व शैली अंग्रेजों के आने के बाद ही फैली और लोकप्रिय हुई। सन् 1932 में इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान पर भारत ने पहला व्यवस्थित पांच दिन का टेस्ट मैच खेला था। फिर खेलते-खेलते भारतीय टीम ने उसी मैदान पर अचानक सन् 1983 का एकदिवसीय विश्व कप जीत। कपिल देव के जांबाजों की गौरवपूर्ण जीत ने जो क्रिकेट की लोकप्रियता के लिए किया वह आज भारतीय शान का इतिहास है। फिर जब धोनी के धुरंधरों ने सन् 2011 का विश्व कप घरेलू मैदान पर जीता तो क्रिकेट की लोकप्रियता सनक की दिवानगी में बदल गयी। आज अपनी टीम जब मैदान पर उतरती है तो सौ करोड़ भारतीयों की आशा खेल से ज्यादा जीत पर होती है।
यह सब इसलिए की तेरहवां एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप का उत्सव देश में अगले डेढ़ महीने चलने वाला है। दस देश विश्व विजेता बनने के लिए भारत के मैदानों पर एक-दूसरे से खेलने वाले हैं। विश्व कप में अच्छा खेलने का दबाव सभी पर भारी पड़ता है। इंग्लैंड में हुए पिछले विश्व कप के पन्द्रह देश में से सिर्फ दस देश ही इस विश्व कप में जगह पा सके। विश्व कप की तैयारी में सभी देश आपस में एकदिवसीय खेल रहे थे। इस बीच पिछले और इस विश्व कप के बीच में बीसमबीस के दो विश्व कप भी खेले गए। विस्तार से क्रिकेट खेल का लगातार विकास होता रहा है। टेस्ट मैच के बाद एकदिवसीय और अब बीसमबीस खूब लोकप्रियता और समर्थन पा रहा हैं। आगे दसमदस को भी नकारा नहीं जा सकता है। खेल के विभिन्न प्रारूपों में इस विश्व कप से एकदिवसीय का भविष्य तय होगा। खेल के प्रेमी और दर्शक ही इस प्रारूप की नियति तय करेंगे।
इस विश्व कप के पहले देशों के बीच में खेले गए एकदिवसीय देखें तो टीमों की लय, लगन और लास्य को समझा जा सकता है। सभी मैचों में बीसमबीस का असर साफ तौर पर देखा गया। बीसमबीस की लप्पेबाजी से टीमों के स्कोर-योग लगातार बढ़ते रहे हैं। आज बीस ओवर में 175-200 रन आम बनते हैं। और पचास ओवर में अब 275 से 350 रन बनने लगे हैं। इन रनों का पीछा करने वाली टीमें भी आज जीतने लगी हैं। गेंदबाजों का जो भी बुरा हाल हो, बल्लेबाजों की तो बल्ले-बल्ले हो रही है। खेल में चल रही इस असाम्यता को भी सामान्य बनाने की चुनौती रहेगी। इसीलिए बल्लेबाजों का बोलबाला रहने ही वाला है। लेकिन जिसकी गेंदबाजी में दमखम और कलाकारी होगी उसको हराना मुश्किल ही रहेगा। तनाव और दबाव भरे खेल में कोई भी टीम अपना बुरा दिन होने पर पचक कर हार भी सकती है। कुछ टीमें पूरे पचास ओवर खेलने में भी असमर्थ रहेंगी।
आज टेस्ट क्रिकेट के पांच दिन और बीसमबीस के तीन घंटों के बीच में एकदिवसीय त्रिशंकू की तरह लटका हुआ है। इसके अस्तित्व और भविष्य के लिए यह विश्व कप खास रहेगा। कुछ भी हो, यह एकदिवसीय विश्व कप असीमित संभावनाएं और अद्भुत अनिश्चितताओं से भरा ही रहने वाला है। आईए, अपने उत्सव का आनंद लें।