भोपाल। विधि और न्याय व्यवस्था के कानूनों में परिवर्तन का दावा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा को बताया कि मोदी जी ने विगत में तीन प्रण लिए थे जिनमें एक था गुलामी की निशानियों को मिटा देंगे। फ़ौजदारी और साक्ष्य कानून में संशोधन के विधेयक पेश करते हुए उन्होंने कहा। अब मोदी जी और शाह साहब के पहले के बयानों की तरह यह भी हकीकत से बहुत दूर है। मोदी जी जब – जब लाल किले से कहेंगे कि मैं आज़ादी की (76 वीं) वर्षगांठ पर देश को बधाई देता हूँ, तब आखिर वे यही तो बता रहे हैं कि आज से 76 साल पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य से भारत “देट इज इंडिया” आज़ाद हुआ था। आप पंडित नेहरू को कितना भी कोसे, परंतु भारत के भाग्य से भावी की मुलाक़ात तो उन्होंने ही अपने साथियों समेत देखा था ! देश के प्रथम स्वतंत्रता दिवस का संबोधन भी उन्हीं का था।
चलिये अब बात करते हैं गुलामी की निशानियों को मिटाने की। हुजूर, ये इतिहास है, और इसे दुनिया ने देखा है, इसलिए आप गुजरे वक्त की हक़ीक़त को ना तो बादल सकते हैं ना ही मिटा सकते हंै। आप मुगलों से बहुत नफरत करो पर आप जहां से देश को संबोधित कर रहे हो वह भी, उन्हीं के द्वारा बनवाया गया है। विरासत वल्दियत की तरह होती है उसे ना तो बदला जा सकता है और ना ही मिटाया जा सकता है। हिटलर ने भी प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय का बदला लेने के लिए नेशनल सोसलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी बनाई। अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए उसने देश को दांव पर लगा दिया और अंत में देश को तबाह कर दिया और तानाशाह हार गया। पर नियति नहीं बदल सका।
इसके अलावा आईपीसी, (इंडियन पैनल कोड या दंड संहिता) सीआरपीसी यानि कि दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में आप संशोधन ही कर रहे हैं, कोई आमूल चूल नया कानून तो ला नहीं रहे हैं? फिर इस पैबंदी काम का इतना हल्ला क्यूं? अरे भाई इस लोकसभा ने तो गणतंत्र के संविधान में गुजरे 70 सालों में औसतन प्रतिवर्ष एक की दर से संशोधन किए हैं! जी हाँ आज़ादी दिलाने वाले हमारे नेताओं ने कम, लेकिन उसके बाद की पीढ़ी ने 70 से भी अधिक बदलाव किए। यह सब तत्कालीन सरकारों ने वक़्त की हालत को देखते हुए किए थे।
जब संसद में बैठे हुए नेताओं ने देश के सर्वोच्च कानून – भारतीय संविधान में इतने बदलाव किए, तब आप भी अपने संख्यासुर के बल पर मनमानी कर लीजिये। हाँ यदि आपके इस कदम से देश की न्याय व्यवस्था और अपराध नियंत्रण में बदलाव आए तो स्वागत योग्य होगा! परंतु गुजरे 9 नौ सालों का अनुभव बताता है कि आप कहते तो बहुत कुछ हो – परंतु वह अर्थहीन होता है। कितने वादे आपने देश से किए –याद है आपको ? कोई भी पूरा हुआ, हाँ एक राम मंदिर निर्माण का, जो आपको विरासत में मिला था, यह आपका वादा नहीं है। आप मौजूदा समस्याओं को हल करने में विफल रहे हैं! असफल फिल्म निर्माता की भांति है आपने भी वही किया, जो एक असफल फिल्म निर्माता करता है, एक फिल्म रिलीज करता है, दूसरी अधूरी होती है, और उसी समय तीसरी की घोषणा करता है। इस प्रकार वह वर्तमान की असफलता को ढंकने के लिए दोहरा बंदोबस्त करता है। याद कीजिये, स्विट्ज़रलैंड की बैंकों में जमा, देश के भ्रष्ट नेताओं और व्यापारियों का काला धन वापस इंडिया लाने की और सभी को 15 पंद्रह लाख रुपये देने की। बहुत बड़ा लालच था देश की जनता के लिए। पर हुआ क्या नौ साल हो गए और अमित शाह ने उस वादे को जुमला करार दिया! उसके बाद तो आपने अनेकों घोषणाएं और वादे देश से किए, पर सब झूठे निकले।
आज देश के पूर्वोतर प्रांत में मणिपुर में आपकी पार्टी की सरकार है – यानि भाषणों में आप जो कहते हो, डबल इंजन की सरकार वही विरेन सिंह की सरकार है, तीन माह हो गए हैं, वहां पर खून की होली खेली जा रही है। सशस्त्र बलों के अस्त्रागारों से हथियार लूटे जा रहे हैं पर कोई समाधान नहीं। सरकार की नाकामी और नागरिकों और नारियों की चीख को सुन कर सुप्रीम कोर्ट को हालत की जांच के लिए हाई कोर्ट की तीन अवकाश प्राप्त महिला न्यायधीशों की समिति को हालत और विस्थापितों को सहायता की जिम्मेदारी देनी पड़ी। मोदी जी ऐसा ना तो नेहरू जी ना इन्दिरा जी और ना राजीव जी और ना मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुआ। इस हिंसा के ज्वार से घबराए हुए आप लोग बैठे हुए है। अगर भिंडरणवाले के डर से इन्दिरा जी आपकी तरह चुप रहती – तब क्या होता ! कभी कल्पना की है ? उन्होंने हालत का मुक़ाबला किया –और फिर आतंकवादियों के साथियों की गोली का शिकार हुई ! आप होते तो अमरतसर जलता रहता। उन्होंने मिजोरम की राजधानी आइजुल पर तब बम गिराए – जब जमीनी रास्ते से सुरक्षा बलों का पहंुचना संभव नहीं था। क्यूंकि प्रदेश की राजधानी पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया था। देश की और निर्वाचित सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर थी ! आपके पास तो साधन है – जाइए वहां शांति वार्ता कीजिये। अगर आप ईमानदारी से जातीय उन्माद का नियंत्रण चाहते है और अगर आप इस अशांति को हिन्दू और ईसाई की समस्या के रूप में देखना चाहते हैं तो जो आप कर रहे और जो आपकी पारी की सरकार के मुखिया विरेन सिंह कर रहे हैं उनके अन्यायी फैसलों को तो सुप्रीम कोर्ट नियंत्रित करेगा ही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, आप कभी देश के प्रधानमंत्री के रूप में इस इंडिया अथवा भारत को संबोधित नहीं किया ! आप हरदम अपनी पार्टी के नेता के रूप में ही देश के मतदाताओं से मुखातिब रहे, इसीलिए आपके पिछले संबोधनों में भी अपनी उपलब्धियों (जो की है ही नहीं) का गुणगान ही करते रहे। कभी आपने देश के नागरिकों की दशा और समस्याओं के जिक्र तक नहीं किया। जब पेट्रोल के भाव दुनिया में कम हुए तब आपने उसे अपना नसीब बताया ! जो कि सच से कोसों दूर था। आज खाने – की वस्तुओं के दाम आकाश छू रहे हैं टमाटर 200 रुपये से अधिक हो गया कोई भी सब्जी 100 रुपये किलो से कम में नहीं मिल रही। अगर इसका फायदा किसान यानि उत्पादक को होता तब तो ठीक भी था, परंतु हमेशा की तरह बिचौलिये माल खा रहे हैं।
एक और तथ्य रखना है कि दुनिया के इतिहास में आज तक कोई भी विजेता भले ही वह विश्व विजेता ही क्यूं ना हो उसने नागरिकों को कष्ट और दुख तथा बरबादी ही दी है, सिकंदर से लेकर चंगेज़ खान, हलाकू और सलदिन सभी विजेता के रूप में इतिहास में दर्ज है। पर उनके समय और स्थान में प्रजा परेशान ही रही। भूख और बीमारी से और उजड़ी हुई फसलों से तबाह ही रही। और जिन शासकों को इतिहास जानता है वे विजय के बजाय अपने नागरिकों के सुख –सुविधा के लिए जाने जाते हंै। अशोक को महान सम्राट कहते है परंतु, बेहतर राजा के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य को जाना जाता है। विक्रमादित्य को तो अच्छे राजा के रूपे में कहानियां प्रचलित है। परंतु आप शायद अच्छे से ज्यादा विजयी कहलाना पसंद करते हंै इसीलिए निर्माण के द्वारा इतिहास में अपना नाम चाहते हैं। अब यह तो भविषय ही बताएगा की आप कितने सफल रहे या असफल…ss!