भोपाल। हमारे विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रीय देश भारत में हर 5 साल में सत्ता का स्वयंवर होता है, जिसमें देश की दुल्हन रूपी जनता 5 साल के लिए अपना ‘भरतार’ चुनती है, इसके लिए राजनीतिक दुल्हे विभिन्न रूप, रंगों और परिधानों में ‘स्वयंवर’ में शामिल होते हैं, और देश की ‘दुल्हन’ के सामने काफी लुभावने वादे करते हैं। अब इसी ‘स्वयंवर’ का समय भारत में काफी सन्निकट है, इसलिए अभी से दुल्हो ने अपने वादों के पिटारे खोल अपने विभिन्न स्वांग रचना शुरू कर दिए हैं, पिछले चुनावों तक यह दूल्हे अपने राजनीतिक दल की रंग बिरंगी पोषाकें पहनकर सामने आते थे, जो कई ‘घरानों’ से होते थे, किंतु इस बार इन दूल्हों ने अपने दो दल बना लिए हैं और इसी में शामिल होकर स्वयंवर में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं, पर सबसे बड़ी समस्या यह खड़ी हो रही है कि इनके दल तो राजनीतिक स्वार्थ के लिए मिल लिए, पर दिल नहीं मिल पा रहे हैं, इसलिए हर कोई अपने आप को दूल्हे के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, इस तरह एक-एक दल से दूल्हे के कई मुखोटे नजर आने लगे हैं।
जहां तक देश पर राज कर रहे मौजूद दल का सवाल है, उसका तो एक ही दूल्हा है, जो आज सत्ता के शीर्ष पर बैठा है, किंतु सत्तारूढ़ दल से पंगा लेने के लिए विपक्षी दलों ने जो “इंडिया” नाम का गठबंधन बनाया है, उसमें तीन दर्जन से भी अधिक दल शामिल है, और इन सभी दलों के शीर्ष नेता बिना स्वयंवर के अभी से अपने आपको ‘देश का दूल्हा’ (प्रधानमंत्री) मानने लगे हैं और उसी रूप में अब वह स्वयंवर में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं, अब ऐसे में देश की दुल्हन (जनता) यह समझ नहीं पा रही है कि वह किसके गले में जीत की ‘वरमाला’ डालें? इसलिए आजादी के बाद से देश में हुए स्वयंवरों (चुनावों) में यह स्वयंवर अपने आपमें अजीब रूप में सामने आ रहा है।
जहां तक इन स्वयंवरों का सवाल है, समूचे देश के सामने तो अगले साल के प्रारंभ में बड़ा स्वयंवर होगा, किंतु इसके पहले इसी साल के अंतिम महीनों में हमारे मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित अन्य एक-दो प्रदेशों में प्रादेशिक दूल्हा तय करने के लिए स्वयंवर होने वाले हैं और यह प्रादेशिक स्वयंवर अखिल भारतीय भव्य स्वयंवर के लिए “मापक यंत्र” की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं, इसलिए फिलहाल हर राजघराने (राजनीतिक दल) की नजर इन राज्यों के राज्यस्तरीय ‘स्वयंवरों’ पर है, इनके आयोजनों के लिए अंतिम रूप से तैयारी जारी है।
अब इन राजनीतिक महोत्सव के माहौल में ‘देश की दुल्हन’ बड़ी असमंजस की स्थिति में है, आखिर वह किसे चुने और किसे रिजेक्ट करें? इसलिए मौजूदा माहौल में देश की ‘दुल्हनें’ (जनता) अपने आप को राज्यस्तरीय स्वयंवरों को बड़ी आशा भरी नजरों से देख रही है और अपने दिमाग में मंथन कर रही है कि उसके अगले 5 साल के लिए कौन सा ‘दूल्हा’ ठीक रहेगा?
यहां एक विचारणीय समस्या यह भी है कि पिछले स्वयंवरों (चुनावों) के समय दुल्हन (जनता) इतनी असमंजस में इसलिए नहीं थी क्योंकि वह स्वयंवर दलीय आधार पर आयोजित होते थे, और दलों की ओर से दूल्हा सामने आता था, किंतु अब तो कई दल और उनके कई दूल्हे सामने आ रहे हैं, ऐसे में बेचारी दुल्हन अपने वर का चयन कैसे करें? फिर यदि बाद में दूल्हा बेवफा निकल गया तो वह अपनी शिकायत किस राजघराने से करें?
इसलिए यदि यह कहा जाए कि प्रजातंत्र का यह स्वयंवर पिछले 75 सालों में हुए स्वयंवरों से अलग हटकर है तो कतई गलत नहीं होगा। अब तो देश की दुल्हन को एक पुरानी फिल्म का गाना ही याद आ रहा है, जिसके बोल थे- “इतनी बड़ी महफिल और एक दिल किसको दूं”।