कांग्रेस के एक बहुत वरिष्ठ नेता ने हमसे पूछा कि क्या विपक्षी दलों के गठबंधन इन्डिया का कोई झंडा भी होगा? हमारे पास इसका क्या जवाब था सिवाय इसके कि सुना तो है! राजनीतिज्ञ तो राजनीतिज्ञ होते हैं बाकी लोगों से बहुत आगे की सोचने वाले। बुद्धिमान। बोले यूपीए का तो झंडा था नहीं। एनडीए का भी नहीं है। जनता पार्टी का था। 1977 में। जब सारे विपक्षी दल एक होकर विलय कर गए थे। क्या आज कोई ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है? कांग्रेस की पहचान खत्म करने का! बोले वैसे तो लोगो की भी जरूरत नहीं थी। क्या उपयोगिता है उसकी? दुरुपयोग के चांस ज्यादा हैं।
लेकिन फिर भी चलिए एकता का बड़ा संदेश देने के लिए लोगो ( प्रतीक चिन्ह) बना लेते हैं। मगर झंडा तो गठबंधन का कभी होता नहीं। यह आइडिया किसका है? जाहिर है हमारे पास एक ही जवाब था कि अपनी पार्टी में मालूम कीजिए। मगर सच यह है कि आज भी किसी को नहीं मालूम कि पार्टी में किस से पूछना है? कौन जानता है? फैसले कैसे लिए जाते हैं? कौन लेता है?
सौ कम तेरह की बड़ी भारी सी डब्ल्यू सी बना दी। सब को भर लिया। किसी को नहीं छोड़ा। न राहुल को गाली देने वाले को और न गणेश परिक्रमा करने वाले को। खैर एक हफ्ते से ज्यादा हो गया। बधाइयों, धन्यवाद के दिन बीत गए। मुबंई जाने से पहले एक मीटिंग तो कर लेते! पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई है। एक औपचारिक स्वीकृति तो ले लेते। विचार भी हो जाता कि संयोजक, 11 सदस्यीय समिति, और अब तो सैकेट्री भी कह रहे हैं वह, पर क्या राय है! और लोगो एवं झन्डे पर क्या? विवाद तो बड़ा प्रधानमंत्री पर बनाने
की कोशिश कर रहे हैं। मीडिया शुरू हो गया है। मगर शुक्र है कि न कांग्रेसी न दूसरे दलों का कोई नेता इसे महत्व दे रहे हैं। खैर कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी में ले तो सबको लिया। मगर बात किसी से नहीं हुई। आश्चर्य है कि वे भी मनोनीत होकर अध्यक्ष खरगे जी और राहुल को धन्यवाद दे रहे हैं जो पत्र लिखकर कह रहे थे कि इस मनोनयन ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया है और यह जो राहुल हैं वह अपने लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं।
आनन्द शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मुकुल वासिनक सब उस जी 23 के सदस्य थे जिन्होंने उस समय की अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर यह सब सवाल उठाए थे। राहुल के विरोध में बयान दिए थे। और उस मनोनयन का विरोध किया था जिसके सहारे अभी भी सीडब्ल्यूसी के मेम्बर बने हैं और पहले तो हमेशा सोनिया गांधी की कृपा दृष्टि से पद पाए हैं। लेकिन यह कांग्रेस है सब चलता है। 2014 की हार के बाद उसे और गड्डे में धकेलने में लगे लोगों को ईनाम मिलता है। और इन्दिरा गांधी से लेकर आज तक वफादार रहे लोगों को अपमान।
इन दिनों कांग्रेस में इस बात की बहुत चर्चा है कि मध्य प्रदेश में इंचार्ज के तौर पर इतना अच्छा काम कर रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयप्रकाश अग्रवाल को हटाया क्यों गया? वह भी बिना सुचित किए। अचानक। जब वे कांग्रेस मुख्यालय के अपने आफिस में बैठे भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश के लिए जारी किए टिकटों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे तो अचानक सोशल मिडिया पर सर्कुलर आता है जयप्रकाश अग्रवाल अब मध्य प्रदेश के इन्चार्ज नहीं।
जेपी ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के घर घर जाकर एक नया माहौल बना दिया था। सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं देश भर में कांग्रेसी कार्यकर्ता दुख और नाराजगी में घर पर बैठ गया है। मध्य प्रदेश में 15 महीने कांग्रेस की सरकार थी तब भी उसे किसी ने नहीं पूछा और केन्द्र में दस साल कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार रही तब भी उसे किसी ने नहीं पूछा। सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं कह सकती थीं तो दसियों बार कहा अपने मंत्रियों से संगठन के नेताओं से कि जनता से मिलो। कार्यकर्ताओं की सुनो। मगर कांग्रेसी क्या किसी की सुनते हैं! या तो इन्दिरा गांधी के डंडे से डरते थे या अपने स्वार्थ की आवाज सुनते हैं।
मगर जयप्रकाश मध्य प्रदेश में कार्यकर्ताओं के घर घर गए। उन्हें मना कर बाहर निकला। कांग्रेस सक्रिय हुई। मध्यप्रदेश के अपने नेताओं में दिग्विजय सिंह यह काम कर रहे थे। उनके कार्यकर्ताओं से पुराने संबंध हैं। कार्यकर्ताओं के साथ उनकी 2017 -18 की नर्मदा परिक्रमा ने ही उस समय माहौल बदला था। 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आई थी। मगर 15 महीने ही चल सकी।
इस बार फिर वहां एक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। लेकिन कांग्रेस को ज्यादा आत्मविश्वास में नहीं रहना चाहिए। मेहनत के मामले में आज भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। वे 24 घंटे सातों दिन वाले नेता हैं। और पार्टी की तरफ से चाहे जितनी अवहेलना की जाए मगर निराश नहीं होने वाले। हमेशा उत्साह से भरे। उनका मुकाबला कमलनाथ के लिए आसान नहीं है। कमलनाथ के लिए अभी तक कांग्रेस में सबसे अच्छी बात यह थी कि यहां राज्य के सब बड़े नेताओं ने अपनी गुटबाजी खत्म कर दी थी। किसी को भी उनके मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर आपत्ति नहीं थी।
मगर वह कांग्रेस क्या जो खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारे! अब चुनाव से ठीक पहले वहां इन्चार्ज को बदलना ऐसा ही खुद गलती करने वाला फैसला है। पिछले पांच सालों में वहां रणदीप सुरदेवाला पांचवें इन्चार्ज हैं। मोहन प्रकाश, दीपक बावरिया, मुकुल वासनिक और अब जय प्रकाश को वहां से हटाया।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अच्छी है। मगर खुद उसकी वजह से नहीं। भाजपा की डबल इंजन सरकार की नाकामी की वजह से। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह यह शो करते हैं कि गलतियां शिवराज सरकार की हैं। और उपलब्धियां हमारीं। वैसे तो भाजपा में तो इन दिनों सभी हैं मगर शिवराज वाकई बहुत सहनशील नेता हैं। वे हंसते हुए सब आरोप अपने उपर लेते रहते हैं। खैर तो मध्य प्रदेश में भाजपा में कई गुट बना दिए गए हैं। 20 साल की इनकम्बेन्सी है। भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी समस्या है। इतनी कि चुभ गई। प्रियंका गांधी के 50 प्रतिशत की सरकार कहने पर उन पर 41 एफआईआर करवा दी गईं। तो भाजपा की खराब स्थिति की वजह से वहां कांग्रेस की अच्छी स्थिति है। लेकिन छत्तीसगढ़ की तरह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस जीत रही है। आज की तारीख में कांग्रेस भाजपा में जो कम गलती करेगा वह जीतेगा। भाजपा ने लगाम लगाई है। कांग्रेस ने गलतियां करना शुरू की है।
तो खैर बात इन्डिया से शुरू हुई थी और उसमें कांग्रेस की सावधानी, असावधानी से। बड़ी पार्टी वही है। जिम्मेदारी भी ज्यादा है और उदार किस हद तक होना है इसकी सावधानी भी। इस बात में कोई दो राय नहीं कि इन्डिया आज बड़ी ताकत बन गई है। कई दल और आना चाहते हैं। आएंगे भी। उद्देश्य बड़ा है। मगर कांग्रेस को अपनी पार्टी भी देखना है। अभी चारों राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तेलंगाना के चुनाव में उसे अपनी ताकत दिखाना होगी। अगर जीत गई तो इन्डिया में उसकी ताकत बढ़ेगी। और नहीं तो गठबंधन में कमजोर हो जाएगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इसीलिए इन्डिया के स्ट्रक्चर ( ढांचे ) को समझने की कोशिश कर रहे हैं। गठबंधन नई पार्टी नहीं होता। संगठन का ढांचा खड़ा नहीं करना है। कामन मिनिमम प्रोग्राम लाकर माहौल बनाना है। मुबंई से दो चार बड़ी घोषणाएं रोजगार, महंगाई, सराकरी शिक्षा, सरकारी स्वास्थ्य पर करके अजेंडा सेट करना है। झंडे और लोगो से यह सब नहीं होगा। नाम बहुत अच्छा चुन लिया INDIA, वह खूब तकलीफ दे रहा है। अब जरूरत है यह बताने की उन्होंने क्या नहीं किया और हम इन्डिया अगर सरकार में आ गए तो पहले दिन ही यह कर देंगे। जनता को यही बात पसंद आती है कि पहली कलम से यह लिख दिया जाएगा!