भोपाल। भारत के राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों को यह महसूस होने लगा है कि भारत की राजनीति के लिए अगले 6 महीने काफी परिवर्तनशील व ऐतिहासिक सिद्ध होंगे और इसकी शुरुआत ‘इंडिया’ में ‘भारत’ के दबे पांव या गुपचुप प्रवेश कराने से हो गई है, पिछले कुछ दिनों से ‘इंडिया’ और ‘भारत’ राजनीति में विवाद व चर्चा का विषय बना हुआ है, यद्यपि हमारे संविधान में इन दोनों ही नामों से हमारे देश की पहचान कराई गई है, किंतु अब यह दोनों नाम भावी राजनीतिक उठापटक के संकेत माने जाने लगे हैं और अगले 6 महीने की भावी राजनीति उठापटक के घोतक भी।
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी की सरकार ने दो दिन बाद दिल्ली में होने वाले ‘जी20’ के आयोजन के जो निमंत्रण भेजे हैं, उनमें प्रेषक के तौर पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ तथा ‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ लिखा गया है, अर्थात हमारे देश की सरकार ने गुपचुप तरीके से ‘इंडिया’ में ‘भारत’ का प्रवेश करवा दिया है, यह निमंत्रण-पत्र इस बात का संकेत है कि भारतीय संविधान से अंग्रेजी नाम ‘इंडिया’ को हटाने की पूरी तैयारी कर ली गई है तथा इसे संवैधानिक रूप देकर सत्तारूढ़ भाजपा अगले चुनावों में इसे चुनावी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत करने वाली है, इसी तरह के और भी कुछ महत्वपूर्ण कदम मोदी सरकार अगले लोकसभा चुनावों के पूर्व उठाने जा रही है, जिसके लिए संसद का इसी महा 18 से 22 तारीख तक आहुत विशेष संसद सत्र काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, इसी सत्र के दौरान मोदी अपने अगले राजनीतिक पत्ते उजागर करने वाली है, मतलब यह कि मौजूदा संसद के कार्यकाल का संभवतः यह आखिरी लघु सत्र न सिर्फ राजनीतिक बल्कि हर दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाला होगा। शायद इसीलिए विशेष सत्र की घोषणा के साथ इसके एजेंडे का उजागर नहीं किया गया, जिस पर प्रतिपक्षी दलों के नेता आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं, अब कहां जा रहा है कि “जी-20 समागम” के बाद इस विशेष सत्र का एजेंडा उजागर किया जाएगा और तब प्रतिपक्षी दलों को अपनी रणनीति तैयार करने का पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाएगा और सरकार आनन-फ़ानन में सत्र निपटाने में सफलता प्राप्त कर लेगी, यही फिलहाल सरकार की रणनीति सामने आ रही है।
इसके साथ ही सरकार सूत्र निर्धारित समय से पूर्व पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों के साथ ही लोकसभा के भी चुनाव कराने के संकेत प्रकट कर रहे हैं, साथ ही “एक देश-एक चुनाव” का नारा भी उछाला जा रहा है, जिसके तहत कहा जा रहा है कि पूरे देश में पंचायत से लेकर संसद तक के सभी चुनाव एक साथ करवाए जाएं, जिससे की बार-बार चुनाव पर खर्च होने वाले करोड़ों रूपों की बचत के साथ चुनी हुई सरकारों को काम करने का प्रयास वैधानिक समय हासिल हो सके, अब सरकार अपनी प्राथमिकताओं में “एक देश-एक चुनाव” का मुद्दा किस स्थान पर रखे हुए हैं? फिलहाल यह तो स्पष्ट नहीं है किंतु मोदी जी अपने शासन के अवसान के पहले अपनी यह राजनीतिक मनसा भी पूरी जरूर करना चाहते हैं और देश के राजनीतिक इतिहास में अपना नाम सुर्खियों के साथ दर्ज भी करना चाहते हैं। मोदी जी की इसी मानसा के अनुरूप भारतीय चुनाव आयोग ने हाल ही में संविधान की धाराओं का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि देश में निर्धारित समय से 6 महीने पूर्व चुनाव कराए जा सकते हैं, साथ ही यह भी कहा कि सभी चुनाव एक साथ कराए जाने से चुनाव आयोग का मौजूदा खर्च अवश्य बढ़ेगा, लेकिन देश के बजट की काफी बचत होगी।
चुनाव आयोग ने हिसाब लगाकर सरकार को यह अंदाजा दिया था कि अगर 2024 में लोकसभा के साथ देश के सारे चुनाव भी कराए जाते हैं तो 40,75,100 बैलेट यूनिट, 33,63,300 कंट्रोल यूनिट और 36,62,600 वीवी पैड की आवश्यकता होगी। साथ ही मतदान केंद्र भी 10.36 लाख से बढ़कर 11.08 लाख हो जाएंगे, साथ ही चुनावी बजट में भी काफी वृद्धि हो जाएगी। चुनाव आयोग ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। अब यह आर्थिक बजट वृद्धि सत्तारूढ़ दल व उनके नेताओं के मंसूबों पर कितना असर डालती है, यह तो कुछ दिनों बाद इस मसले पर अंतिम फैसला आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। इस प्रकार फिलहाल यही कहा जा सकता है कि देश की राजनीति की दृष्टि से अगले 6 महीने काफी अहम सिद्ध होंगे।