sarvjan pention yojna
maiya samman yatra

आज प्रजातंत्र का मुख्य आधार-स्तंभ न्यायपालिका…?

आज प्रजातंत्र का मुख्य आधार-स्तंभ न्यायपालिका…?

Image Source: UNI

भोपाल । भारत की आजादी की ‘हीरक जयंति’ मनाने के बाद आज के हालातों को देखकर यह सहज ही महसूस होता है कि प्रजातंत्र की परिभाषा के चार अंगों से तीन अंग करीब-करीब निष्क्रीय हो चुके है और अब केवल और केवल न्यायपालकिा ही प्रजातंत्र का मुख्य आधार स्तंभ बन गया है, जिस पर देश की जनता को आज भी पूरा भरोसा है, शेष तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और खबर पालिका अपने मूल अस्तित्व खो चुके है और समय के साथ आज की गैर प्रजातंत्री बाढ़ के साथ बहने लगे है। सिर्फ न्यायपालिका ही है जो प्रजातंत्र की हर जरूरत पूर कर रही है और उसकी मर्यादा रख रही है।

मेरी इस धारणा का ताजा उदाहरण पिछले दिनों उस समय सामने आया जब प्रधानमंत्री जी सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के निवास पर गणेशोत्सव के कार्यक्रम में शामिल हुए और महाराष्ट्र के प्रमुख राजनीतिक दल शिवसेना (उद्धव) ने इस परिदृष्य पर अनाप-शनाप टिप्पणियां की और उनके प्रवक्ता ने तो यहां तक कह दिया कि- ‘‘मोदी सरकार के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में उनके द्वारा दायर मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न करें तथा उसे किसी दूसरे न्यायाधीश को सौंप दे’’, क्योंकि इस परिदृष्य को देखकर उन्हें उचित न्याय की उम्मीद नही रह गई है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानती मामले में मोदी सरकार पर जो पूर्वाग्रह पूर्वक काम करने की टिप्पणियां की, उसने यह सिद्ध कर दिया कि व्यक्तिगत सम्बंध न्याय की गरिमा में बाधक नही बन सकते और भारतीय प्रजातंत्र में आज न्यायपालिका ही सर्वोपरी है, जो अपने धर्म व कर्तव्य का निर्वहन बड़ी ईमानदारी व निष्ठा के साथ कर रही है और न्यायपालिका ने ही प्रजातंत्र को देश में अब तक जीवित रखा हुआ है।

अरविंद केजरीवाल की जमानत वाले प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणियां की वे भारतीय न्याय व्यवस्था को शिखर पर बैढ़ाने वाली है, इन टिप्पणियों में भारत की मुख्य सरकारी जांच एजेंसी सीबीआई (केन्द्रीय जांच संगठन) की कार्यप्रणाली को लेकर तीखी टिप्पणियां की गई है और सर्वोच्च न्यायालय की ये टिप्पणियां स्पष्ट करती है कि- सीबीआई निष्पक्ष नही है तथा वह पूर्णतः सरकार की मंशा के अनुरूप सरकार में विराजित राजनेताओं के राजनीतिक मकसदों की पूर्ति करती है, इस फैसले में उक्त सरकारी जांच एजेंसी सीबीआई पर अनेक सवाल खड़े किए गए है, खास करके एक न्यायाधीश की यह टिप्पणी कि- ‘‘सीबीआई को अपने को, पिंजरें के तोते वाली छवि से मुक्त करना चाहिए।’’

यह एक तथाकथित निष्पक्ष एजेंसी के लिए सबसे बड़ा आघात है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय का यह सवाल भी काफी महत्व रखता है कि- ‘‘केजरीवाल को तब गिरफ्तार क्यों किया गया जब उन्हें ईडी के मामले में जमानत मिल गई थी?’’ अब यदि इस सवाल के चलते आम आदमी पार्टी के नेता सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे है तो उन्हें गलत कैसे कहा जा सकता है? और सबसे बड़ी बात यह है कि यह पहली बार नही है, जब सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय से यह सुनना पड़ा हो कि यह सरकार प्रभाव व दबाव में काम कर रही है, इसके पहले मनमोहन सरकार के समय कोयला खदान आवंटन में घोटाले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘‘पिंजरे का तोता’’ कहा था और यहां सबसे बड़ी खेद की बात यह है कि सीबीआई ने इतनी सख्त टिप्पणियों के बाद भी इस कथित छवि से बाहर आने की कौशिश भी नही की।

यह अकेला ही उदाहरण नहीं है जब न्यायपालिका ने अपने आपकी निष्पक्ष छवि को प्रदर्शित किया है, इसके पहले भी अनेक प्रकरणों में सरकार को कटघरे में खड़ा कर अपनी निष्पक्षता प्रस्तुत की है, यद्यपि यह भी एक कटु सत्य है कि मोदी सरकार ने न्यायपालिका को अपने कब्जे में रखने के अनेक असफल प्रयास किए किंतु न्यायपालिका ने अनेक दबावों के बावजूद आज तक अपनी निष्पक्ष छवि बरकरार रखी है, जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इसीलिए यह कहना पड़ रहा है कि प्रजातंत्र के अन्य तीन स्तंभ खोखले हो चुके है, सिर्फ न्याय स्तंभ ही है, जिस पर आज के प्रजातंत्र का महल मजबूती से खड़ा है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें