सिख गुरु गुरु गोविन्द सिंह ने भी भावी कल्कि अवतार और उनकी शक्ति को स्वीकार करते हुए दशम ग्रंथ में कहा है कि भगवान विष्णु का दशम अवतार कल्कि अवतार 100 सिखों का अवतार होंगे, जो इस युग की समाप्ति पर श्वेत घोड़े पर सवार होकर पापियों और दुष्टों का संहार करने आएंगे। पौराणिक व सिख ग्रंथों में कल्कि का उल्लेख होने के कारण लोग इन्हें पूर्ण सत्य मानकर भक्ति और साधना के साथ भविष्य के भगवान कल्कि अवतार का जन्म का इंतजार सदियों से करते आ रहे हैं।
22 अगस्त –कल्कि जयंती
पौराणिक मान्यतानुसार भगवान विष्णु के सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में अब तक मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध कुल नौ अवतार हो चुके हैं, और दसवें व अंतिम अवतार भगवान कल्कि के इस धरा पर अवतरण होने का इंतजार अभी चल रहा है। भगवान कल्कि का प्रकट होना अभी बाकी है। कल्कि अवतार को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पुराणों में कल्कि अवतार के कलियुग के अंतिम चरण में आने की भविष्यवाणी की गई है। वर्तमान में कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है, लेकिन अभी से ही कलियुग के अंतिम चरण में होने वाले भावी कल्कि अवतार के लिए पूजा-पाठ और कर्मकांड आदि शुरू हो चुके हैं। अभी से ही भावी कल्कि अवतार के कथा, पुराण और जयंती पर्व तक प्रचलन में आ गए हैं। कल्कि भगवान की पूजा के लिए कई स्थानों पर मन्दिर भी बनाए जा चुके हैं। सबसे विशाल मन्दिर जयपुर राजस्थान में बना हुआ है। कल्कि अवतार की सम्भावित जन्मतिथि श्रावण शुक्ल षष्ठी को कल्कि जयंती के रूप में मनाने का प्रचलन भी है। बिना अवतार लिए ही प्रतिवर्ष कल्कि नामक इस भावी देवता की जयंती लगभग 300 वर्षों से मनाई जा रही है। इस जयंती को विधिवत मनाने की शुरुआत राजस्थान के मावजी महाराज ने की थी। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 2023 में कल्कि अवतार की जयंती 22 अगस्त को मनाई जाएगी।
कल्कि अवतार संबंधी वर्णन विष्णु पुराण, भागवत पुराण, भविष्य पुराण व विष्णु से संबंधित अन्य पौराणिक ग्रंथों में अंकित हैं। कल्कि पुराण तो सम्पूर्ण रूप से कल्कि अवतार को ही समर्पित है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्थान से कलियुग की शुरुआत हुई थी। नन्द वंश के राज से कलियुग में वृद्धि हुई, वहीं भगवान कल्कि के अवतार से कलियुग का अंत होगा। कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई है। वर्तमान में कलियुग के 5,124 वर्ष व्यतीत हो चुके है। मान्यता के अनुसार जब कलयुग अपने चरम पर होगा, तब भगवान विष्णु अपने दसवें अवतार में भगवान कल्कि रूप में इस पृथ्वी पर अवतरित होंगे। और कलयुग का अंत कर एक नई सृष्टि का सृजन कर मनुष्य को सनातन वैदिक धर्म पर आरूढ़ कराएंगे। उनका 64 कलाओं से युक्त यह अवतार कलियुग और सतयुग के संधि काल में होगा। इसीलिए भगवान कल्कि के आगमन को चिह्नित करने के लिए प्रतिवर्ष सावन के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक ग्रंथों में युग परिवर्तनकारी भगवान कल्कि के अवतार का प्रयोजन विश्व कल्याणार्थ बताते हुए कहा गया है कि यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से भी जाना जायेगा। संस्कृत शब्द कालका से कल्कि शब्द की उत्पति हुई है। कल्कि नाम ब्रह्मांड से सभी प्रकार के अधर्म, बुराई, गंदगी और कचरे को समाप्त करने वाले व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु भगवान अंधेरे बलों और इस संसार से अधर्म, बुराई को दूर करने के लिए कल्कि के रूप में प्रकट होंगे, और इस ब्रह्मांड में धर्म और शांति का स्थापन करेंगे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान कल्कि का अवतार संभल नामक ग्राम में होगा। श्रीमद्गागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में गुरु, सूर्य और चन्द्रमा के एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करने पर भगवान कल्कि का जन्म होने की भविष्यवाणी करते हुए कहा गया है-
सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।
पौराणिक ग्रंथों में कल्कि अवतार का संभल ग्राम में होने का उल्लेख तो किया गया है, परंतु अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कल्कि अवतार का जन्म स्थान बताया जाने वाला संभल कहां, कौन से राज्य और किस जिले में स्थित है? कुछ लोग इसे उड़ीसा का संभल (संभरम्भ) ग्राम मानते हैं, तो कुछ का कहना है कि उत्तरप्रदेश के गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद ज़िले का संभल गाँव ही कल्कि अवतार का जन्म स्थान होगा। कुछ भारत के मथुरा के पास स्थित वृन्दावन नामक ग्राम को मानते हैं। कुछ अन्य इसे चाइना के क्षेत्राधिकार के मरुस्थल में स्थित संभल गाँव मानते हैं। स्पष्ट है, अभी तक इनके जन्म स्थान के बारे में सर्वमान्य स्पष्ट राय नही बन पाई है।
मान्यतानुसार कलियुग के अंत में अधर्म का नाश कर सतयुग की पुनर्स्थापना के लिए कल्कि अवतार संभल नामक ग्राम में विष्णुयश नामक एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में होगा। इनके जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। इनकी माता का नाम सुमति होगा। अपने माता-पिता की पांचवीं संतान कल्कि यथासमय देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल अर्थात तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब सतयुग का प्रारंभ होगा। इनके बड़े भाईयों का नाम सुमंत, प्राज्ञ, कवी होगा। याज्ञवलक्य उनके पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी- लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। इनके संतानों का नाम जय, विजय, मेघमाल, बलाहक होगा। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होंगे और मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएंगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे। इस कार्य में इनका साथ श्रीराम भक्त हनुमान देंगे।
पौराणिक ग्रंथों में निष्कलंक अवतार कल्कि के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भगवान का स्वरूप अर्थात सगुण रूप परम दिव्य होता है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से संपन्न। वे श्वेत अश्व पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, परंतु क्रोध में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्र धारण किए हैं। उनके हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। कल्कि का यह चित्रण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। पुराणों मे कल्कि को सफ़ेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हुए चित्रित किया गया है। इसका अर्थ है- उनके आक्रमण में शांति अर्थात श्वेत रंग, शक्ति अर्थात अश्व और परिष्कार अर्थात युद्ध लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि समीपस्थ व दूरस्थ दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण। कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओं और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव का प्रतीक ही है। कल्कि देवताओं के आठ सर्वोच्च गुणों का प्रतीक है। उनका मुख्य उद्देश्य एक विश्वासहीन संसार की मुक्ति है। कलयुग को अंधेरे के प्रतीक युग के रूप में माना जाता है, जहां लोग धर्म और विश्वास को नजर अंदाज़ कर देते हैं और वे भौतिकवादी महत्वाकांक्षा और लालच में अपने उद्देश्य को भूल जाते हैं। मान्यता है कि विभिन्न भ्रष्ट राजाओं की हत्या के बाद, भगवान कल्कि मनुष्यों के दिलों में भक्ति का भाव जगाएंगे। लोग धर्म के मार्ग का अवलंबन और शुद्धता के युग का पालन करना शुरू कर देंगे, जिससे सनातन वैदिक धर्म पर विश्वास पुनः वापस आ जाएगा।
भगवान विष्णु के सबसे क्रूर अवतारों में से एक माने जाने वाले कल्कि अवतार की इस कथा को शाक्तगण देवी काली के साथ भी जोड़कर देखते हैं। उनका कहना है कि काली देवता की तस्वीर में सफेद घोड़े पर सवार हाथ में तलवार लिए दिखाई देने वाले कल्कि भगवान ही हैं, जिनके घोड़े के तीन पैर जमीन पर हैं, जबकि एक हवा में हैं। उनका मानना है कि सफेद घोड़े का यह पैर धीरे-धीरे जमीन पर आ रहा हैं, जिस दिन यह पूर्णतया जमीन पर आ जाएगा, वह कल्कि अवतार का समय होगा। इस दिन से कलयुग का अंत और नये युग की शुरुआत मानी जाएगी।
सिख गुरु गुरु गोविन्द सिंह ने भी भावी कल्कि अवतार और उनकी शक्ति को स्वीकार करते हुए दशम ग्रंथ में कहा है कि भगवान विष्णु का दशम अवतार कल्कि अवतार 100 सिखों का अवतार होंगे, जो इस युग की समाप्ति पर श्वेत घोड़े पर सवार होकर पापियों और दुष्टों का संहार करने आएंगे। पौराणिक व सिख ग्रंथों में कल्कि का उल्लेख होने के कारण लोग इन्हें पूर्ण सत्य मानकर भक्ति और साधना के साथ भविष्य के भगवान कल्कि अवतार का जन्म का इंतजार सदियों से करते आ रहे हैं। श्रावण शुक्ल षष्ठी के दिन कल्कि जयंती के अवसर पर विष्णु भक्त भगवान विष्णु के कल्कि रूप की पूजा- अर्चना कर शांतिपूर्ण जीवन के लिए उनसे आशीर्वाद प्राप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं, और अपने सभी बुरे कर्मों या पापों के लिए भी क्षमा मांगते हैं।