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किडनी मरीज और डॉयलिसिस

किडनी मरीज और डॉयलिसिस

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दुनिया में सबसे ज्यादा किडनी पेशेन्ट अपने देश में ही हैं। जब इस पर थोड़ी रिसर्च की पता चला कि ये सच है।  मार्च 2023 के आंकड़ों के हिसाब से देश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी किसी न किसी किडनी डिजीज से पीड़ित है यानी 1 करोड़ 41 लाख लोग। ये आंकड़े तब और सच लगे जब जून 2023 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में बीपीएल लाभार्थियों के लिये चलने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम में 20 लाख किडनी पेशेन्ट रजिस्टर हो चुके हैं।

हाल ही में मुझे रूटीन चैकअप से बॉयोप्सी तक के लिये कई बार मेदांता द मेडीसिटी (गुरूग्राम) जाना पड़ा। रात में रूकना भी पड़ा। इस दौरान मैंने वहां सैकड़ों किडनी पेशेन्ट देखे। बच्चों से बुजुर्ग तक। कुछ डॉयलिसिस पर थे तो कुछ ट्रांसप्लांट की तैयारी में। तो कुछ पहली बार आये थे। देखकर लगा कि दुनिया में सबसे ज्यादा किडनी पेशेन्ट अपने देश में ही हैं। जब इस पर थोड़ी रिसर्च की पता चला कि ये सच है।

मार्च 2023 के आंकड़ों के हिसाब से देश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी किसी न किसी किडनी डिजीज से पीड़ित है यानी 1 करोड़ 41 लाख लोग। ये आंकड़े तब और सच लगे जब जून 2023 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में बीपीएल लाभार्थियों के लिये चलने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम में 20 लाख किडनी पेशेन्ट रजिस्टर हो चुके हैं।

अगर इसमें उन लोगों को जोड़ दिया जाये जो चैरिटेबल संस्थाओं या प्राइवेट अस्पतालों में डॉयलिसिस कराते हैं तो यह संख्या कितनी बड़ी हो जायेगी जरा सोचिये। और ये हाल तब है जब डॉयलिसिस इसका इलाज नहीं जीवित रहने का जरिया मात्र है। कैसा भी अस्पताल हो एक डॉयलिसिस का खर्च आता है करीब 4000रूपये। सप्ताह में दो डॉयलिसिस जरूरी हैं, मतलब 8000 और महीने का 32 हजार।

जीवित रहने के केवल दो विकल्प

डॉयलिसिस मरीजों की बढ़ती संख्या पर बात करते हुए डॉ. दिनेश यादव (सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट, मेदान्ता) ने बताया कि किडनी फेल होने के बाद जीवित रहने के केवल दो विकल्प हैं डॉयलिसिस या ट्रांसप्लांट। जब मैंने “आर्टिफिशियल किडनी”, “लैब ग्रोन ऑर्गन्स”, “सुअर की किडनी इंसान में लगायी गयी” जैसी खबरों का जिक्र किया तो उनका कहना था कि ये सब अभी लैब तक सीमित हैं।

आज डॉयलिसिस पर लाखों लोग जिंदा है लेकिन इसमें जिंदगी बंध जाती है। शारीरिक-मानसिक-आर्थिक, सभी तरह का दबाब झेलना पड़ता है। एक डॉयलिसिस में दो-तीन घंटे लगते हैं, पैसा भी खर्च होता है। इसलिये अगर डोनर मिल जाये तो ट्रांसप्लांट से अच्छा कुछ नहीं।

ट्रांसप्लांट मतलब नया जीवन

डॉ. यादव ने बताया कि ट्रांसप्लांट के बाद मरीज लगभग पहले जैसी जिंदगी जी सकता है। काम पर जा सकता है। आराम से घूम फिर सकता है। खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं। सेक्स लाइफ ठीक हो जाती है। फर्टीलिटी बढ़ जाती है। महिलायें प्रेगनेन्ट हो सकती हैं।  इतना सब होने पर भी लोग ट्रांसप्लांट पर नहीं जाते, डॉयलिसिस पर रहते हैं क्यों? इसका जबाब देते हुए उन्होंने कहा कि इसका कारण है डोनर न मिलना। इसके अलावा खर्चे को लेकर फैला भ्रम। समझते हैं कि यह बहुत मंहगा है। जबकि ढाई-तीन साल के डॉयलिसिस में जितना खर्च होगा उतने में ट्रांसप्लांट हो जाता है। लेकिन ये तभी सम्भव है जब समान ब्लड ग्रुप का डोनर मिल जाये। डोनर अगर मां-बाप, भाई-बहन या नजदीकी रिश्तेदार हो तो सबसे अच्छा। वजह डीएनए मैच होने से रिजेक्शन के चांस घट जाते हैं।

छोटे परिवार होने से डोनर मिलना मुश्किल

डोनर पर बात करते हुए डॉ. यादव ने बताया कि परिवार छोटे होने से समान डीएनए का डोनर तो दूर मार्जिनल डोनर मिलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में विकल्प बचता है डिसीस्ड डोनर (कैडेवर किडनी) का। यानी दुर्घटना/कार्डियक अरेस्ट/ब्रेन स्ट्रोक में जान गवांने वालों की किडनी ट्रांसप्लांट की जाये। लेकिन ये तभी सम्भव है जब मृतक के परिजन ऑर्गन डोनेशन को तैयार हों।

अपने देश में हर साल औसतन 12 हजार किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं जबकि जरूरत है सवा दो लाख से ज्यादा की। इतनी बड़ी डिमांड तभी पूरी हो सकती है जब लोग ऑर्गन डोनेशन की महत्ता समझें, स्वेच्छा से अंग दान करें।

देश में होने वाले कुल किडनी ट्रांसप्लांट में 90 प्रतिशत किडनी जीवित डोनर से मिलती है। केवल 10 प्रतिशत मिलती हैं मृत डोनर से। जबकि भारत सरकार द्वारा जनवरी 2024 में जारी डेटा के मुताबिक देश में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा देते हैं। इसी तरह कार्डियक अरेस्ट/स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या भी लाखों में है। अगर इनमें से आधों के परिजन अंगदान को तैयार हो जायें तो ट्रांसप्लांट के लिये डोनर का इंतजार कर रहे मरीजों को नया जीवन मिल सकता है।

ट्रांसप्लांट के बाद कितनी जिंदगी? 

इसका जबाब देते हुए डॉ. यादव ने बताया कि जीवित डोनर से प्राप्त किडनी 20-25 साल आराम से चलती है। आज ऐसे कई मरीज हैं जिनका ट्रांसप्लांट 1976 में हुआ था, वे अभी तक पूरी तरह स्वस्थ हैं। किडनी कितने साल चलेगी यह निर्भर होता है पेशेन्ट की सेल्फ केयर और डोनेशन के समय डोनर की उम्र पर। कम उम्र के डोनर से मिली किडनी 25 साल, मां-बाप या सगे भाई-बहनों से मिली किडनी 30 और जुड़वां भाई-बहनों से मिली किडनी पूरी उम्र निकाल सकती है।

डिसीस्ड (मृत) डोनर से मिली किडनी के ट्रांसप्लांट की बात करते हुए डॉ. यादव ने बताया कि अगर मरीज समय पर दवायें ले और डॉक्टर के कहे मुताबिक चले तो 15 साल आराम से निकल जाते हैं। ऐसे केस भी हैं जिनमें ब्रेन डेड, डोनर से मिली किडनी 30 साल से ठीक काम कर रही है।

खर्च और कानूनी औपचारिकतायें

अपने देश में ट्रांसप्लांट हेतु ऑर्गन डोनेशन लीगल है। देश के सभी बालिग स्वेच्छा से अंग दान कर सकते हैं। अगर मृत या ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजन चाहें तो उसके अंग दान कर सकते हैं। इसके लिये उन्हें किसी अतिरिक्त कानूनी औपचारिकता की जरूरत नहीं।

कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी उम्र 18 से 70 के बीच है अपनी एक किडनी डोनेट कर सकता है। शर्त केवल इतनी है कि उसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो और लिम्फोसाइट क्रॉस मैच एचएलए एंटीबॉडीज़, मेडिकल जरूरतों के अनुरूप हों। अगर ट्रांसप्लांट पर आने वाले खर्च की बात करें तो इसमें लगभग साढ़े दस लाख का खर्च आता है।

कौन बन सकता है ऑर्गन डोनर?

मरीज के नजदीकी रिश्तेदार जैसे मां-बाप, पत्नी, भाई-बहन, दादा-दादी, पुत्र-पुत्रियां, नाती/नातिनें, पोते-पोतियां स्वेच्छा से किडनी डोनेट कर सकते हैं। जब मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप नहीं मिलता तो डॉक्टर, स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं। स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट में दो मरीज होते हैं जिनके डोनर अपने मरीज को किडनी देने के बजाय दूसरे मरीज को किडनी देते हैं। इसमें न कोई अतिरिक्त खर्चा होता है और न ही कोई साइड इफेक्ट्स। अगर किसी के पास डोनर नहीं है तो वह कैडेवर किडनी के लिये एप्लाई कर सकता है। कैडेवर किडनी यानी मृत व्यक्ति से मिली किडनी।

और अंत में…..

यह चिंता का विषय है कि दुनिया में सबसे ज्यादा किडनी पेशेन्ट अपने देश में हैं और दिनों-दिन इनकी संख्या बढ़ रही है। इसलिये हम सबका फर्ज है जितना सम्भव हो ऑर्गन डोनेशन को बढ़ावा दें। मरने के बाद अगर ये शरीर किसी के काम आ सके, इससे बढ़कर कुछ नहीं। याद करें हमारे देश में महर्षि दधीच जैसे दानी हो चुके हैं। जिन्होंने मानव जाति को बचाने के लिये जीते जी अपनी हड्डियां दान कर दी थीं। हम उनके वंशज हैं। क्या हम मरने के बाद अपने लोगों को नया जीवन देने के लिये अंग दान नहीं कर सकते? युगों बीत गये, आज भी दधीच सबसे बड़े दानी के रूप में याद किये जाते हैं। वे मरने के बाद भी अमर हैं। हम महर्षि दधीच तो नहीं बन सकते, हां मरने के बाद उनका अनुसरण कर लोगों को नयी जिंदगी जरूर दे सकते हैं। इसलिये आप सभी से गुजारिश है जितना सम्भव हो अंग दान को बढ़ावा दें। मरने के बाद सब मिट्टी हो जाता है। लेकिन अंग दान करके हम मरने के बाद भी जीवित रह सकते हैं।

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