भोपाल। आजादी के बाद इन 75 सालों में देश में बहुत कुछ बदल गया, जिन हाथों में कभी राष्ट्रीय ध्वज होता था आज उन हाथों में सत्ता-संघर्ष के हथियार हैं, जिन होठों पर क्रांतिकारी नारे होते थे, उन पर आज एक दूसरे के विरोधियों के लिए अपशब्द हैं, दिलों में जो राष्ट्रहित का जज्बा था, उसकी जगह अब सत्ताहित ने ले ली है, कुल मिलाकर आजादी का संघर्ष और उसके बाद के अब तक के बदलते युग को अपनी बूढ़ी आंखों से देखने वाले बुजुर्ग स्वयं आज के देश और देशवासियों को समझ नहीं पा रहे हैं।
आज की राजनीति का लक्ष्य देश सेवा नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ सत्ता हासिल करना रह गया है और आज के हमारे देश के कर्णधार राजनेता उसी उधेड़बुन को आज का ‘राजनीतिक धर्म’ बता रहे हैं, सत्ता प्राप्ति के लिए आज कैसे-कैसे जतन किए जा रहे हैं, यह किसी से भी छुपा नहीं है, आज तो जिसने सत्ता पा ली वही सबसे बड़ा ‘सेवक’ होता है।
अब नित नए सत्ता प्राप्ति के स्त्रोत खोजे जाते हैं, कभी गठबंधन करके तो कभी अनैतिक व आकर्षक राजनीतिक लोभ दिखाकर। यही आज की राजनीति का चलन हो गया है। भारत की आजादी के बाद करीब 3 दशक तक कांग्रेस ने बिना किसी ठोस विपक्ष के सत्ता चलाई, इसके बाद पिछली शताब्दी के आठवें दशक के अंत में स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक शाखा जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी के रूप में जन्म ले लिया और उसके बाद देश में सिर्फ दो ही राष्ट्रीय राजनीतिक दल रहे कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी और यही दोनों केंद्र व राज्यों की सत्ता पर ताबीज रहे दक्षिण भारत में इन दोनों राष्ट्रीय दलों की विशेष अहमियत नहीं रही, इसलिए देश के दक्षिणी हिस्से में वहां की क्षेत्रीय पार्टियां सत्तासीन रही, किंतु देश पर राज करने वाले उत्तर भारत में कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा सत्तासीन रही और आज भी करीब-करीब ऐसा ही है।
अब राजनीति के बदलते परिवेश में जब यह दोनों राष्ट्रीय दल अपने आप को कमजोर महसूस करने लगे तो इन्होंने समान विचारधाराओं वाले क्षेत्रीय दलों को अपने साथ जोड़ कर ‘गठबंधन’ तैयार कर लिए, भाजपा ने 39 दलों के साथ एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलाइंस या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) बनाया तो कांग्रेस ने अपने 38 सहयोगी 26 दलों के साथ इंडियन (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस) नाम से अपना गठबंधन बनाया। देश के करीब 65 राजनीतिक दलों ने दो राजनीतिक गठबंधन बनाए जो आगामी लोकसभा चुनाव के समय इसी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी, यद्यपि दोनों ही गठबंधनों में अधिकांश दल ऐसे हैं जिनका फिलहाल संसद में एक भी सदस्य नहीं है, किंतु भाजपा कांग्रेस को अपनी संख्या गिनाने के लिए यह दल काफी हैं, आज कांग्रेस के गठबंधन इंडियन में 26 दल शामिल है, तो भाजपा के राजग में 39 दलों का दावा किया जा रहा है। भाजपा कांग्रेस के लिए राज्य स्तर पर कितने सहयोगी हो सकते हैं, यह तो लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद ही पता चल पाएगा, तभी यह भी पता चलेगा कि भाजपा कांग्रेस का यह राजनीतिक प्रयोग सफल रहा है या नहीं?
वैसे यदि दोनों ही गठबंधनों में शामिल राजनीतिक दलों का अतीत देखा जाए तो गठबंधनों में शामिल यह दल अब तक एक दूसरे के लिए तलवारें भांजते आए हैं और एक दूसरे के चेहरे पर कालिख पोतने को भी हमेशा तैयार रहे हैं, आज उन्हीं कालिख से भरे हथेलियों में यह चंदन-पानी के लिए एक दूसरे को तिलक लगाने के लिए आमने सामने खड़े हैं और दिलों में दुश्मनी का तूफान ढोए अपने चेहरों पर कृतिम मुस्कान लाने को मजबूर हैं।
धन्य है आज की राजनीति यह इतनी तेजी से बदल रही है कि पुराने से पुराने धुरंधर राजनेता भी इसे समझ नहीं पा रहे हैं और यह पूरा तमाशा 200 दिन बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए है कि चुनाव के बाद इन दलों और इनके गठबंधनों का भविष्य क्या होगा? इसका उत्तर यह स्वयं भी नहीं जानते? देखिए आगे-आगे होता है क्या?