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चार सौ पार… गर्वोक्ति या वास्तविकता…?

चार सौ पार… गर्वोक्ति या वास्तविकता…?

भोपालI दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे भारत की मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल केवल पचास या साठ दिन ही शेष बचा है, अगले अप्रैल-मई में लोकसभा के चुनाव होना है, इस हिसाब से लोकसभा का मौजूदा सत्र् लोकसभा की इस पारी का अंतिम सत्र है, इस यथार्थ का अहसास देश के नेताओं, नागरिकों, राजनैतिक दलों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को भी है, जो इन दिनों कयासों पर ध्यान न देकर वास्तविक स्थिति के आंकलन में व्यस्त है, जिसका एक संकेत उन्होंने लोकसभा के मौजूदा सत्र में राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर हुई लम्बी बहस के जवाब में दिया है और कहा है कि ‘‘अगले लोकसभा चुनाव में देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को 370 तथा एनडीए गठबंधन को चार सौ से अधिक सीटें हासिल होगी।’’

अतः अब बहस इस बात पर है कि प्रधानमंत्री जी का यह कथन उनकी ‘गर्वोक्ति’ है या ‘वास्तविकता’? क्योंकि मोदी जी के इस बयान के बाद भाजपा के हौसले जहां बुलंदियों पर पहुंच गए है, वहीं प्रतिपक्ष दल, विशेषकर कांग्रेस में अब तक मोदी की इस गर्वोक्ति या कथन का माकूल जवाब नहीं मिलने से मायूसी है, कांग्रेसियों की अपेक्षा थी कि राहुल गांधी या सोनिया जी मोदी जी के इस कथन का माहौल के अनुरूप बयान देगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, राहुल अपनी यात्रा में व्यस्त है और सोनिया-प्रियंका अपने हाल में व्यस्त है, इसीलिए इन दिनों कांग्रेस में उदासी व मायूसी का माहौल व्याप्त है, न कही उत्साह की झलक नजर आ रही है और न राजनीतिक स्थिति से निपटने की ललक? देश के कांग्रेसी अब अपने आपको नेतृत्व विहीन समझने लगे है और यही आज कांग्रेस की दिनों दिन होती जा रही दुरावस्था का मुख्य कारण है।

आज देश में हर क्षेत्र में यही महसूस किया जा रहा है कि यहां विपक्ष नाम का कोई तत्व शेष बचा नही है, जो सत्तारूढ़ दल या उसकी सरकार को सही रास्ते पर चलने को मजबूर कर सके, क्योंकि जिस कांग्रेस या उसके नेताओं पर यह दायित्व था, उन्होंने अभी तक निराशा का ही विस्तार किया है, इसीलिए मजबूत व सुदृढ़ विपक्ष के अभाव में सत्तारूढ़ दल और उसकी सरकार अनियंत्रित रूप से हर कदम उठाने को स्वतंत्र हो गई है, जो देश के लिए अच्छे संकेत का घोतक नहीं है और मजबूत व सुदृढ़ प्रतिपक्ष के अभाव में सत्तारूढ़ दल व उसके नेताओं की मनमानियां भी बढ़ती जा रही है।

आज देश के जागरूक बुद्धिजीवी नागरिक इसी स्थिति को लेकर काफी चिंतित व उदासीन है। वे यह सोच नहीं पा रहे है कि यदि यही स्थिति आगे भी चलती रही तो इस देश का भविष्य क्या होगा? मजबूत प्रतिपक्ष के अभाव में सत्ता की स्वेच्छाचारित बढ़ती ही जा रही है, जिसका अहसास हर कोई कर रहा है। अब यदि इस मसले पर स्वतंत्र चिंतन किया जाए तो इस स्थिति के लिए देश की जनता ही दोषी है, जिसने मजबूत प्रतिपक्ष नहीं चुना, लेकिन ये सब स्थितियां लोकतंत्र के अभिशाप के रूप में जुड़ी हैं।

….और यहां यही मुख्य चिंता का विषय है कि चुनाव के पहले यदि सत्तारूढ़ दल व उसके नेताओं की ऐसी सोच है तो फिर चुनाव के बाद यदि इनकी वाणी फल जाती है तो फिर देश का भविष्य क्या होगा? आज की चिंता का यही सबसे बड़ा कारण है और हर बुद्धिजीवी राष्ट्रभक्त इसी चिंता से ग्रस्त है।

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