भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर जिस तरह से दलबदल चल रहा है उसको देखते हुए दोनों ही दलों में सबसे बड़ी चिंता टिकट वितरण के बाद संभावित दल बदल को लेकर है। दोनों ही दल इस कोशिश में लगे हैं कि स्थानीय स्तर पर दावेदारों के बीच इस प्रकार की सहमति बना ली जाए जिससे कि टिकट घोषित होने के बाद बगावत न हो।
दरअसल, जिस तरह राजनीतिक दल “करो या मरो” की तर्ज पर चुनाव अभियान चलाए हुए हैं और हर हाल में प्रदेश में सरकार बनाने के लिए प्रयासरत है लगभग उसी तरह टिकट के दावेदार भी अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर टिकट के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं। जिन लोगों को आशंका है कि शायद उन्हें टिकट न मिले इस कारण में दूसरी पार्टियों में भी संभावनाएं तलाश रहे हैं। भाजपा से टिकट काटने पर कांग्रेस और फिर उसके बाद आप पार्टी बसपा और सपा विकल्प है। वहीं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में जयश की भी पूछ परख बढ़ गई है। पूर्व विधायक ममता मीना भाजपा से इस्तीफा देने के बाद सीधे दिल्ली पहुंची और केजरीवाल से पति के साथ मुलाकात की क्योंकि उन्हें कांग्रेस में भी कोई संभावनाएं नजर नहीं आ रही थी। उनकी सीट पर दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह विधायक है और वह फिर से चुनाव लड़ने भी जा रहे हैं। ऐसी ही स्थिति में कई दिग्गज नेता विधानसभा पहुंचने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। दल को केवल जीत चाहिए। दावेदारों को टिकट चाहिए। शायद इसी कारण से भाजपा और कांग्रेस “जन आशीर्वाद यात्रा” और “जन आक्रोश यात्रा” के बाद चुपचाप कमरा बंद बैठकों का एक दौर चलाएंगे। जिसमें एक-एक सीट के उन दावेदारों को बुलाया जाएगा जहां एक से अधिक ऐसे दावेदार हैं जिन्हें टिकट नहीं मिलने पर वह बगावत कर सकते हैं और चुनाव का परिणाम भी बदल सकते हैं। उनका आपस में मेल-जोल कराया जाएगा और यह कह दिया जाएगा दो में से किसी एक को टिकट मिलेगा दोनों को मिलकर चुनाव लड़ना है।
कुल मिलाकर प्रदेश की राजनीति में विधानसभा 2023 के चुनाव कई महीनो में अभूतपूर्व होंगे। जहां दिग्गजों को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। वहीं दलों को अपने कई नेताओं का साथ छोड़ना पड़ेगा और नए नेताओं को मौका देना पड़ेगा क्योंकि हर कोई हर हाल में टिकट पाने के लिए बेताब है। दोनों ही दलों ने सीनियर नेताओं की एक सूची बनाई है जो संभावित दल बदल को रोक सके जिस तरह से सट्टा रूढ़ दल भाजपा में लगातार दल बदल हो रहा है उससे सतर्क होकर अंतिम सूची जारी होने के बाद होने दल वाले दलबदल को रोकने के लिए पार्टी गंभीर हो गई है क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में रामकृष्ण कुसमरिया, संजय शर्मा, धीरज पटेरिया और समीक्षा गुप्ता की बगावत नहीं एक दर्जन सीटों पर पार्टी का नुकसान कर दिया था और पार्टी सात विधायकों की कमी से सत्ता पाने से चूक गई थी। इस बार ऐसी स्थिति ना बने इसके लिए प्रयास हो रहे हैं। हालांकि 2018 की बजाय अब तक कहीं ज्यादा नेताओं ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस और अन्य दलों का सहारा ले लिया है। आचार संहिता लगने के पहले दोनों ही दल इस कोशिश में है की संभावित दल बदल को जितना अधिकतम हो सके उसे रोक लिया जाए।