भोपाल। जितने बेताब दावेदार विधानसभा में पहुंचने के लिए भाजपा या कांग्रेस से टिकट के लिए है उतने ही बेसब्री से ये दल भी प्रत्याशियों की तलाश कर रहे हैं। जहां जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिलेंगे वहां ऐसे प्रत्याशियों की तलाश की जा रही है जो दिग्गजों को उनके विधानसभा क्षेत्र में उलझाए रखें और जहां-जहां ऐसे प्रत्याशी मिलते जा रहे हैं उनकी घोषणा भी होने लगी है और सूची भी अंतिम रूप में है। बसपा के बाद सपा ने भी अपने चार प्रत्याशियों की घोषणा बुधवार को कर दी है।
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस किसी भी कीमत पर सरकार बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस कारण एक – एक सीट पर गहन चिंतन, मनन, सर्वे और अध्ययन चल रहा है और ऐसे प्रत्याशियों की तलाश की जा रही है जो पार्टी पर बोझ बनने की बजाय पार्टी को मददगार साबित हो सके। दोनों दलों को सभी 230 सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी मिलना मुश्किल है। इस कारण एक – दूसरे के घेरने के लिए ऐसे प्रत्याशियों की तलाश की जा रही है जो उन्हें उनके चुनाव क्षेत्र में उलझा के रखें।
भाजपा जहां छिंदवाड़ा, राघोगढ़ शहर जैसे कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले विधानसभा क्षेत्र में कमलनाथ, जयवर्धन, डॉ गोविंद सिंह जैसे दिग्गजों को घेरने के लिए रणनीति बना रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत जैसे नेताओं की घेराबंदी करके उनको हराने में सफल हुई थी। इसी तरह लोकसभा चुनाव 2019 में गुना शिवपुरी से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी चुनाव जीतने से रोका था। अब इस रणनीति पर इस बार भी कुछ और नेताओं की घेराबंदी कर रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस भी जो सीटें भाजपा लगातार जीत रही है उनमें घेराबंदी करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन सीटों पर दौरे करके अपनी रिपोर्ट सौप चुके हैं जिसमें उन्होंने ऐसे प्रत्याशियों के नाम भी सुझाए हैं जो जीत भी सकते हैं अन्यथा उलझने में जरूर कामयाब रहेंगे।
कुल मिलाकर इस बार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी जल्दी में है। चुनाव आयोग भी चाह रहा है कि दीपावली के पहले चुनाव हो जाए। 4 अक्टूबर तक मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन हो जाएगा और उसके बाद कभी भी चुनाव हो सकते हैं। वही राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन को लेकर बेताब है लेकिन जिस तरह से दल बदल चल रहा है। उसमें अभी रुको देखो और फिर आगे बढ़ो की रणनीति बनाई जा रही है क्योंकि दलों के अंदर जहां एक तरफ रूठों को मनाने का दौर चल रहा है तो दूसरी तरफ दल बदल भी बेधड़क जारी है। कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस कार्यालय में हुजूम दिखाई देने लगता है। फटाखे फूटने लगते हैं लेकिन अभी यह कहना मुश्किल है की जीत के पटाखे किस दल के कार्यालय के सामने फूटेंगे।