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हिंदू मुसलमान से हटकर जाति जनगणना बना मुख्य मुद्दा!

पिछड़ी जातियों

क्या मध्य प्रदेश से फिर साबित हो रहा है कि अब चुनाव धर्म को मुद्दा बनाकर नहीं जीते जा सकते? कर्नाटक ने तो अभी बताया ही था। वहां प्रधानमंत्री बजरंग बली को चुनाव में ले आए। धार्मिक उन्माद बढ़ाने की हर संभव कोशिश की मगर जनता हिंदू मुसलमान में नहीं फंसी। मध्य प्रदेश में यह बात मोदी जी की समझ में आ गई है। इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर जाने के बदले पार्टी की सबसे बड़ी तोपें अचानक मध्य प्रदेश के चुनावी मैदान में उतार दीं। भक्त और गोदी मीडिया इससे भी खुश हो गए कि वाह क्या चौंकाया मोदी जी ने! वे चौंकने को ही बड़ा काम समझने लगे हैं। एक दिन कहा जाएगा कि इन भक्त और मीडिया वालों ने बहुत बेवकूफ बनाया है। लगाओ इनमें चार चार! भक्त नफरत के नशे में और गोदी मीडिया डर में इसे भी मास्टर स्ट्रोक बताने लगेंगे तब तक जब तक कि उनमें पड़ नहीं जाते!

खैर भक्त और गोदी मीडिया अब अप्रासंगिक हो गए हैं। मोदी जी ने अपना ट्रैक बदल लिया है। इस महिला बिल, मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव लड़ाना इनमें भक्त और केवल वाह वाह करने वाली मीडिया की कोई जरूरत नहीं है। भक्त और मीडिया केवल हिंदू मुसलमान करने में उपयोगी थे। बाकी अब राजनीति जब जनता के रोजमर्रा से जुड़े मुद्दों पर वापस लौटती दिख रही है तो इन बैंड बाजा पार्टी और घोड़ी डांस करने वालों की कोई जरूरत नहीं है।

राहुल ने जातिगत जनगणना को चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया है। और अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव इसी पर होना हैं। कर्नाटक में हिट होने के बाद राहुल अपने नारे ‘जितनी आबादी उतना हक’ को अब देशव्यापी रूप दे रहे हैं। सोमवार को छत्तीसगढ़ में उनकी चुनावी सभा पूरी तरह जातिगत जनगणना और ओबीसी दलित आदिवासी महिलाओं को महिला बिल में अलग से आरक्षण देने पर ही केंद्रित रही।

उधर दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की सभा पूरी तरह कांग्रेस पर केंद्रित रही। वहां बीस साल से भाजपा का शासन है। बीच में कुछ समय के लिए 15 महीने कांग्रेस की सरकार थी। मगर मोदी जी कह रहे थे कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य बना दिया! डबल इंजन एक नया शब्द ईजाद किया है मोदी जी ने। वैसे भी खेल सारा जुमलों का ही है। अभी दो अक्टूबर आ रहा है। सरकार बनाते ही पहली दो अक्तूबर 2014 को स्वच्छता अभियान का जुमला दिया था। खुद झाडू लेकर सफाई करने लगे। मगर नौ साल हो गए गदंगी और बढ़ गई। क्योंकि करना कुछ नहीं है सिर्फ कहना है। 15 लाख हर एक एक के खाते में, दो करोड़ रोजगार हर साल, महिला सुरक्षा, जो भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के कारनामों से जाहिर है। दिल्ली पुलिस ने अभी अदालत में बताया कि वह हर मौके पर महिला पहलवानों के साथ हरकत करता था और अभी भी गिरफ्तारी से बाहर है और कह रहा है कि कौन उसका टिकट काटेगा? नाम बताओ कौन काट रहा है टिकट? के दंभ में अभी भी भाजपा, पुलिस, न्यायपालिका सब को चैलेंज कर रहा है। मीडिया को तो क्या चैलेंज करना वह तो गोदी में बैठकर लपाड़े खा रही है।

तो इन सारे जुमलों कहानियों में एक डबल इंजन भी लाया गया था। जिसके अब लगता है दोनों इंजन बैठ गए हैं। इसलिए तो मध्य प्रदेश में 20 साल से भाजपा की राज्य सरकार और साढ़े नौ साल से केंद्र सरकार के होते हुए भी कांग्रेस उसे बीमार बना देती है! मतलब जनता बिल्कुल ही बेवकूफ है! उसके दिमाग में यह नहीं आएगा कि अगर कांग्रेस 20 साल से सत्ता के बाहर रहते हुए भी राज्य को बीमार बना सकती है तो सत्ता में आने पर तो फौरन तंदुरुस्त भी कर सकती है।

जनता को बेवकुफ बनाया जा सकता है। मगर हमेशा नहीं। गांव देहात में कहते हैं कि भाई साहब थोड़ी सी अक्कल हममें भी है। रोटी हम भी खाते हैं। यहां रोटी और अक्ल का संबंध बहुत सारे लोग नहीं समझते इसलिए बता देते हैं कि रोटी का मतलब होता है अनाज पैदा करना आना और उसकी रोटी बनाना। इंसान अक्ल से यह सीखा है। जानवर नहीं कर पाता। इसलिए कहते हैं कि अक्ल उसमें नहीं है। तो गांव में कहते हैं कि रोटी हम भी खाते हैं। मतलब अक्ल केवल तुम में ही नहीं है। थोड़ी बहुत हममें भी है।

मोदी जी की एक बात की तो तारीफ करना होगी की वे हार नहीं मानते। मध्य प्रदेश में जब उन्हें लगा कि स्थिति ठीक नहीं है तो हथियार डालने के बदले उन्होंने और बड़े हथियार निकाल लिए। कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि वे चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे मगर अचानक उनका नाम घोषित कर दिया गया। ऐसे ही केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का। तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों का। सब हैरान परेशान। मगर आंख पर पट्टी बांधे मीडिया को लगा कि वाह क्या चौंकाया! उसी धुन में एक बड़े नेता से, जिन्हें बिना उनकी मर्जी के टिकट दिया गया है मीडिया ने कहा कि सर मान गए क्या मास्टर स्ट्रोक है तो उसे ऐसी मास्टर पीस गाली दी गई कि बहुत देर तक समझ में नहीं आया कि यह क्या हो गया! अंध भक्ति कर करके मीडिया की अक्ल भी तो कुंद हो गई है। खाली चिमटा और खड़ताल ही बजाते रहोगे तो हारमोनियम पर सारेगामापा निकालना भी भूल जाओगे।

तो मध्य प्रदेश जैसा कि राहुल ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पिछले साल इंदौर में ही कह दिया था कि हम जीत रहे हैं। राहुल इस समय फॉर्म में हैं तो उनका हर शॉट सही लग रहा है। कर्नाटक कहा था तो जीते। अब मध्य प्रदेश केवल कह ही नहीं रहे, बल्कि 150 भी कह रहे हैं। मोदी जी के कल के भोपाल के कांग्रेस केंद्रित भाषण और उसके बाद तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों को अचानक टिकट देने से यह साबित हो गया कि मध्य प्रदेश
में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है। दरअसल वहां अब जनता चुनाव लड़ रही है। वैसे यह पहली बार नहीं है कि जनता कांग्रेस को लाना चाह रही है। इससे पहले भी मध्य प्रदेश में जनता ने कोशिश की। मगर कांग्रेस ने उससे ज्यादा कोशिश की कि वह सत्ता में नहीं आए। गुटबाजी उसकी सबसे बड़ी समस्या थी। मगर अब कांग्रेस का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट ही यह है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है। सब एक हैं। जो छोटे मोटे डिफरेंसेंज
थे वे भी अब जनता के दबाव में दूर हो गए हैं। बस अब सब एक ही बात चाहते हैं कि टिकट वितरण सही हो। अगर टिकट सही प्रत्याशियों को दे दिए गए तो राहुल का 150 का आंकड़ा भी सही साबित हो जाएगा।

लेकिन कांग्रेस को खरगोश बनने से बचना होगा। ओवर कॉन्फिडेंस से। मोदी जी आखिरी आखिरी तक गेम छोंड़ेंगे नहीं। मुख्यमंत्री भी बदल सकते हैं। कांग्रेस और मोदी जी में यहीं फर्क है। कांग्रेस ने 2014 लोकसभा में चुनाव लड़ने से पहले ही हार मान ली थी। ऐसे ही पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात के अभी बेमन से चुनाव लड़े। जीत की कहानी हिमाचल से शुरू हुई। जहां प्रियंका गांधी ने खूंटा गाड़ दिया था। मतदान तक डटी रहीं। नतीजा जीत में मिला। और फिर उसके बाद कर्नाटक में राहुल, प्रियंका और खड़गे जी तीनों ने रात दिन एक कर दिया। आज के चुनाव यही मांगते हैं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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