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अनुभवी नेतृत्व कसौटी पर

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भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं एक – दूसरे को घेरने की रणनीति बना रहे हैं उसको देखते हुए दोनों ही दलों का अनुभवी नेतृत्व कसौटी पर है।

दरअसल, यह चुनाव नहीं आसान अब यह सही सभी समझ चुके हैं इसलिए चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी और चुनाव जिताने वाले नेताओं को दोनों ही दल धीरे-धीरे सामने ला रहे हैं। जहां देरी हो रही है वहां अनुभव नेताओं का बेसब्र होना भी सामने आ रहा है। मसलन पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने स्पष्ट तौर पर कहा कि उन्होंने भी 2003 में सरकार बना कर दी थी जबकि उन्हें जन आशीर्वाद यात्रा में पूछा नहीं गया यहां तक कि औपचारिक निमंत्रण भी नहीं दिया गया उन्होंने यह भी कह दिया है कि वे अब 25 सितंबर तक कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगी वर्षों तक कार्यालय मंत्री रहे पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा का भी दर्द छलक पड़ा है। उन्होंने कार्यकर्ताओं की ऊपेक्षा और रूठे हुए नेताओं को न मानने का आरोप लगाया। हालांकि आठ बार के विधायक और वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव की भी जन आशीर्वाद यात्रा में कोई भागीदारी पार्टी ने सुनिश्चित नहीं की है लेकिन अभी तक उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

बहरहाल, प्रदेश का विधानसभा चुनाव 2023 वैसे तो दोनों पार्टियों सामूहिक नेतृत्व पर लड़ रहे हैं लेकिन भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस की ओर से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का अनुभव कसौटी पर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां चार बार के मुख्यमंत्री हैं और इस चुनाव को वे “करो या मरो” की तर्ज पर लड़ रहे हैं उन्होंने सरकार का खजाना खोल दिया है। हर वर्ग को संतुष्ट करने में प्रतिदिन न केवल घोषणाएं हो रही है वरन उनका तत्काल क्रियान्वयन भी हो रहा है। इसके पहले ऐसी गति घोषणा और क्रियान्वयन में पहले कभी नहीं देखी गई। भले ही भाजपा ने इस बार फिर भाजपा फिर शिवराज का नारा नहीं दिया है बल्कि फिर एक बार भाजपा सरकार का नारा दिया है लेकिन इसके बावजूद शिवराज सिंह का अनुभव इस चुनाव में कसौटी पर है क्योंकि 2018 में महज कुछ विधायकों की कमी से सरकार न बनने के कारण उन्होंने जो असहजता महसूस की थी वह 2023 में ऐसा नहीं होना देना चाहते हैं। हालांकि भाजपा के सबसे बड़े रणनीतिकार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की देखरेख में पूरा चुनाव अभियान चल रहा है उनके विश्वसनीय मंत्री प्रदेश प्रभारी है और पूरी पार्टी 2018 का इतिहास नहीं दोहराना चाहती है।

वहीं दूसरी ओर 15 वर्षों के बाद 2018 में कांग्रेस की सरकार प्रदेश में बनाने वाले 40 वर्षों से सांसद केंद्र में अनेकों बार मंत्री रहने वाले कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एक बार फिर कसौटी पर है। वे स्वयं भी सरकार गिरने के बाद एक तरह से प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे हैं और तब से ही सरकार बनाने की गुणा भाग में लगे हुए हैं। बूथ स्तर पर मजबूती के लिए मंडलम सेक्टर का गठन करना एवं सर्वे के आधार पर बेहतर प्रत्याशी मैदान में उतरना उनके दीर्घकालिक अनुभव के आधार पर चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा प्रयास है। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी चल रहे हैं और राष्ट्रीय नेतृत्व में रणदीप सिंह सुरजेवाला और भंवर जितेंद्र सिंह को प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा है सभी गुटों को साधने की दृष्टि से अरुण यादव, सुरेश पचौरी और अजय सिंह को भी स्क्रीनिंग कमेटी में शामिल कर लिया गया है।

कुल मिलाकर प्रदेश में विधानसभा 2023 का मुकाबला बेहद कड़ा मुकाबला होने जा रहा है। ऐसे में दोनों ही दलों में जहां अनुभवी नेतृत्व कसौटी पर है। वहीं युवाओं को विपरीत परिस्थितियों में चुनाव जीतने की रणनीति भी सीखने को मिलेगी।

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