sarvjan pention yojna
maiya samman yatra

हमको ऐसा वैसा ना समझो हम बड़े काम …

हमको ऐसा वैसा ना समझो हम बड़े काम …

भोपाल। पंडित नरोत्तम मिश्रा ना तो लोकसभा का चुनाव लड़ रहे और ना ही विष्णु दत्त और मोहन सरकार की टीम की अहम कड़ी है.. लेकिन फिर भी राज्य की राजनीति में वो चर्चा में बने हुए है.. किसी के दिल्ली जाने की चर्चा कोई मध्य प्रदेश में लौट चुका ऐसे में नरोत्तम विधानसभा का चुनाव जरूर भले ही हार गए.. लेकिन अपनी उपयोगिता आज भी वो भाजपा के लिए नई जॉइनिंग टोली के संयोजक बनकर साबित कर रहे.. जिनके लिए मौके इससे पहले भी आए लेकिन नरोत्तम मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए ..

बावजूद इसके बीजेपी की बदलती इंटरनल पॉलिटिक्स में संगठन के कई पदाधिकारी और मोहन सरकार के मंत्रियों पर नरोत्तम आज भी भारी साबित होते हुए देखे जा सकते.. सियासत भी अछूती नहीं जहां अच्छों को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है.. ऐसे में जब राजनीति में भी एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग..कई खूबियों के बावजूद कई कमजोरी उनकी राह में रोड़ा साबित हुई.. तमाम झंझावतों से जूझने के बावजूद हौसले उनके बुलंद रहे.. अटल जी की लाइन हार नहीं मानूंगा.. की तर्ज पर नरोत्तम ना घर बैठे ना ठिकाना बदला..

नेता हो या जनता या कार्यकर्ता के बीच बने गिने चुने नेता में वह भी शामिल है.. जो किसी के दिमाग तो किसी के दिल में भी रहते हैं.. चाह कर भी मध्य प्रदेश के नेता उन्हें इग्नोर नहीं कर पा रहे चाहे फिर वह भाजपा के हो या कांग्रेस से ही क्यों ना जुड़े हो.. पिछले दो दशक की राजनीति में ऐसा नहीं कि बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को कभी नहीं छुपाने वाले नरोत्तम को परिस्थितियों ने उद्वेलित और व्यथित भी किया .. बावजूद इसके अपने से वरिष्ठ और सहयोगी नेताओं के साथ समन्वय की कमी भले आई लेकिन संवाद कभी खत्म नहीं होने दिया.. व्यक्तिगत तौर पर मीडिया फ्रेंडली नरोत्तम के लिए खोने को कुछ भी नहीं लेकिन पाने के लिए अभी भी संगठन में दिल्ली से लेकर मध्य प्रदेश तक खुला मैदान है..

बदलती बीजेपी में वो किसके लिए चिंता और किसके लिए चुनौती यह सब कुछ समझा जा सकता.. जिनको समझ आना चाहिए वो बखूबी समझते भी है.. जीत के आंकड़े सामने आने के साथ लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जब मध्य प्रदेश में नए सिरे से बिसात बिछा मोहरे फिट किए जाएंगे तब नरोत्तम के लिए एक बड़ा मौका जरूर आएगा.. मौका एडजस्टमेंट का.. मौका संबंधों को भुनाने का.. मौका काम के दम पर अपनी उपयोगिता फिर साबित करने का.. लेकिन फिर किस्मत को नजनदाज भी नहीं किया जा सकता.. जब भी भाजपा के अंदर केंद्रीय स्तर से राज्यों की राजनीति में बदलाव की संभावना बलवती होगी.. तब तक लोकसभा में दूसरी पारी के लिए पहुंच चुके प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा जिनकी जीत सुनिश्चित मानी जाने लगी के विकल्प और उत्तराधिकारी के तौर पर पंडित नरोत्तम मिश्रा का नाम एक बार फिर सुर्खियां बनने से इनकार नहीं किया जा सकता.. उस वक्त चिंतन मंथन पिछड़े वर्ग के डॉ मोहन यादव को पहले ही मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद संगठन में सोशल इंजीनियरिंग की नई बिसात से लेकर इनकार नहीं किया जा सकता..

चाहे फिर आदिवासी, अनुसूचित जाति और महिला वर्ग के साथ क्षेत्रीय समीकरण ही क्यों ना हो.. मूल्यांकन विधानसभा चुनाव के परिणामों से जोड़कर लोकसभा के परिणामों से भी होगा.. शिवराज के बाद डॉक्टर मोहन यादव तो विष्णु दत्त की जगह कौन यह सवाल सबसे बड़ा सवाल बनकर सामने होगा.. लेकिन ब्राह्मण चेहरा विष्णु दत्त की जगह ब्राह्मण नरोत्तम मिश्रा की दावेदारी को नजरअंदाज करना भी आसान नहीं होगा.. यह तो बात हुई मध्य प्रदेश के जातीय समीकरण को साधने की कोशिश लेकिन जिनको फैसला करना पार्टी हाई कमान ऐसे में अपनी पटकथा को राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात से भी जोड़कर देख सकता है.. राजनीति में कल क्या होगा इस मोदीकाल में तो अब कोई दावा ही नहीं कर सकता.. अनुमान कयासबाजी पहले भी बे बुनियाद साबित हुए ..

नरोत्तम मिश्रा उपयोगी, एनर्जेटिक समन्वयवादी, आक्रामक राजनेता के साथ मैनेजमेंट के मोर्चे पर महत्व के साथ अपनी उपयोगिता पहले भी साबित कर चुके हैं.. पिछले विधानसभा चुनाव से हाई कमान की नई स्क्रिप्ट के किरदार बदलते रहे हैं.. तो युवा पीढ़ी के साथ जातीय समीकरण दुरुस्त करने को पार्टी ने अपनी प्राथमिकता साबित किया.. लेकिन कई अनुभवी नेताओं को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया हो ऐसा भी नहीं.. एडजस्टमेंट के नाम पर दिल्ली से केंद्रीय मंत्री रहते नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल को यदि मध्य प्रदेश की राजनीति में लौटाया .. केंद्रीय मंत्री रहते फग्गन सिंह के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी उन्हें घर नहीं बैठाया गया.. तो विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद फग्गन सिंह से लेकर गणेश सिंह को फिर संसद जाने के अवसर के साथ उन्हें फिर टिकट दिया गया..

यही नहीं प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सांसद राकेश सिंह को राज्य की राजनीति में भेजा गया तो लंबे समय से मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी वापस मध्य प्रदेश भेजा गया.. ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है पंडित नरोत्तम मिश्रा की संगठन स्तर पर सक्रियता वह भी न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक के तौर पर आखिर उनकी नई संभावित भूमिका को क्या एक दिशा दे रही है.. नरोत्तम ने शिवराज सरकार के रहते कभी संकटमोचन के तौर पर तो कभी मंत्री रहते फ्लोर मैनेजमेंट से आगे संगठन की सियासत में पार्टी हित में मैनेजमेंट की लाइन को आगे बढ़ाने में बड़ा किरदार निभाया है..

अब जबकि वो सरकार के प्रवक्ता नहीं रहे फिर भी विपक्ष को कमजोर करने या फिर भाजपा को बदलने में जी जान से जुटे तब बड़ा सवाल आखिर बदलती बीजेपी में वह कहां खुद को फिट कर हिट साबित करेंगे.. नरोत्तम ने भाजपा की राजनीति में यदि कई दोस्त बनाए तो कई को उपकृत कर उन्हे मजबूत भी किया और कई ऐसे भी जिनको दबाव से अपने शरणागत आने को मजबूर किया.. तो उनके आलोचकों की भी कमी नहीं है.. नेतृत्व व्यक्तिगत और पार्टी स्तर पर उनकी विशिष्ट अलग कार्यशैली और विशेष प्रतिभा का उपयोग तो करना चाहता हैं ..पर उन्हें किसी निर्णायक पद पर पहुंचते देख जिन्हें वह अपना समझते उनके भरोसेमंद भी सीधा खुला समर्थन देने की बजाय उनसे दूरी भी बनाते रहे हैं..

स्वर्गीय नंद कुमार सिंह चौहान के अध्यक्ष रहते उनके उत्तराधिकारी के तौर पर नरोत्तम का नाम खूब चला था लेकिन उसके बाद न सिर्फ राकेश सिंह ने पार्टी की कमान संभाली बल्कि विष्णु दत्त शर्मा भी प्रदेश अध्यक्ष बन चुके हैं.. नाम मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव का भी कभी प्रदेश अध्यक्ष के लिए सामने आया था.. शिवराज सरकार में मंत्री रहते नरोत्तम तत्कालीन संगठन महामंत्री अरविंद मेनन हो या फिर सुहास भगत से लेकर हितानंद शर्मा के लिए अपनी उपयोगिता साबित करते रहे.. मौका तो एक वक्त नेता प्रतिपक्ष बनने का भी उनके लिए आया था लेकिन उस वक्त पंडित गोपाल भार्गव को शिवराज सरकार जाने के बाद कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते सदन में विपक्ष की कमान सौंप गई थी..

बदलती बीजेपी में जब उसकी रीति नीति उसकी चाल कहे या दिशा बदल चुकी है.. ऐसे में कई बार गच्चा ख चुके नरोत्तम पर नजर टिकना लाजमी है, वह बात और है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को नरोत्तम का यह नाम जो उनसे वरिष्ठ , अनुभवी किस हद तक कितना रास आएगा यह देखना दिलचस्प होगा.. डॉ मोहन सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीयऔर प्रहलाद पटेल ही नहीं राकेश सिंह के साथ वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त का खुला समर्थन भी उनके लिए एक नया माहौल बन सकता है.. पर्दे के पीछे विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर हो या फिर सांसद का चुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज समेत दिल्ली पहुंचने वाले सांसदों की भूमिका भी अहम हो जाती है..

ऐसे में डिसाइडिंग फैक्टर मोदी शाह का सीधा हस्तक्षेप और दिलचस्पी मायने रखती है.. लेकिन यह सच है की इसके बाद कोई बड़ा चुनाव फिलहाल नहीं लेकिन बदलती बीजेपी में एनर्जेटिक डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा फिलहाल फिट नजर आ रहे हैं.. जिनकी विधायकों और संगठन पदाधिकारी के साथ.. वो विरोधी चाहे वो भाजपा में शामिल हो चुके हो या खुलकर विरोध में खड़े होकर चुनौती देते रहे नरोत्तम को चाह कर भी इग्नोर नहीं कर पाएंगे..

भाजपा के लिए जरूरत साबित होते रहे नरोत्तम मिश्रा संगठन के लिए कितने जरूरी या मजबूरी बनकर सामने आते हैं, इसके लिए इंतजार करना होगा लोकसभा चुनाव के परिणाम का.. पंडित नरोत्तम मिश्रा अपनी पुरानी भूमिकाओं और संबंधों के आधार पर यह कह सकते हैं कि हमको ऐसा वैसा ना समझो हम बड़े काम के नेता हैं..

लेकिन यह भी कड़वा सच है बदलती बीजेपी में महत्वपूर्ण पद चाहे मुख्यमंत्री का हो या प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए न सिर्फ मापदंड बदले बल्कि कभी-कभी योग्यता भी आड़े आ जाती है.. लंबे समय तक संसदीय मंत्री रहे नरोत्तम ने विरोधी दलों में भी अपनी पकड़ बनाई.. उन्हें ना पसंद करने वाले भी ऐसे खूब मिल जाएंगे जिनकी आंखों की वह किरकिरी बने हुए हैं..पार्टी के अंदर नरोत्तम की गिनती यारों के यार वरिष्ठ के लिए भरोसेमंद साथी..

जो सवाल पूछे जाने पर बेबाक और बेलगाम अपनी बात रख मिशन विशेष की राजनीति के लिए जरूरी गहरे भी साबित हुए जिनकी थाह लेना आसान नहीं… जिनकी गिनती नई पीढ़ी के लिए एक जुझारू और विरोधियों के खिलाफ आक्रामक राजनीति करने वाले आदर्श नेता के तौर पर होती है.. मीडिया के लिए सुलभ दूसरे नेताओं की कार्यशैली से अलग खुद फोन उठाने वाले उन गिने चुने नेताओं में नरोत्तम शामिल है..

जो खास हो या आम विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे नेता हो या कार्यकर्ता के बीच समय रहते अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराते रहे.. गृहमंत्री की कुर्सी चली जाने के बावजूद जिनका सूचना तंत्र बहुत मजबूत लेकिन भाजपा की इंटरनल पॉलिटिक्स में यही उनकी ताकत और बदलती बीजेपी में उनकी योग्यता कमजोरी भी साबित हो सकती है.. वो कहते हैं ना स्वतंत्रता हटी तो दुर्घटना घटी.. सियासी आपदा यानी चुनाव हार जाने के बाद निर्मित नई परिस्थितियों में नरोत्तम के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन एक बड़ा अवसर जरूर साबित हो सकता है..

उनकी दावेदारी से भाजपा में कोई इनकार नहीं कर सकता.. लोकसभा और राज्यसभा की संभावना खत्म होने के बाद यह दावा भी अंतिम सत्य हो यह कहना भी जल्दबाजी ही होगा.. न्यू जॉइनिंग के जरिए सिर्फ माहौल भाजपा का ही नहीं बना बल्कि नरोत्तम ने अपनी नई भूमिका को लेकर भी जरूर बना दिया है..

नरोत्तम के लिए ‘नया रास्ता’ खोलेगा क्या न्यू ज्वाइनिंग..!

पंडित नरोत्तम मिश्रा के लिए क्या उनकी नई भूमिका संगठन, या चुनावी राजनीति में नया रास्ता खोलेगी..? उनकी अगुवाई में दूसरे राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश में जोर-शोर के साथ चलाए जा रहे विशेष अभियान ‘बीजेपी में नई ज्वाइनिंग’ एक नए रिकार्ड के साथ चर्चा में बना हुआ है.. इस अभियान ने विरोधी खासतौर से कांग्रेस पर बड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भाजपा ने काफी हद तक सफलता पाई .. गैरों पर करम अपनों पर सितम की यदि नई बहस शुरू हो गई तो भविष्य में इसके साइड इफेक्ट से भी इनकार नहीं किया जा सकता..

चुनावी रणनीति का यदि यह एक अहम असरदार हिस्सा तो विचारधारा की राजनीति में टकराहट की आशंका के बीच पार्टी विद डिफरेंट का दावा करने वाली भगवाधारीयो के लिए समय के साथ नई चुनौतियां को ले कर नई बहस भी शुरू हो सकती है.. एक साथ कई मोर्चों पर सियासी लड़ाई समय रहते लड़ने वाले भाजपा हाई कमान खासतौर से मोदी शाह की इस लाइन को समन्वय से आगे अपनी शर्त पर ही सही सियासत के इन समझौतों को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने बहुत सोच समझकर नरोत्तम को सौंपीं होगी.. जिनकी दूरदर्शिता कहें या जोड़-तोड़ या दिया जा रहा सम्मान.. विरोधी खेमे के अनुभवी…वरिष्ठ ..

भूले बिसरे.. नाराज अपनी उपेक्षा से आहत और दबाव या अपने व्यक्तिगत हित को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग पड़े नेताओं की लाइन भाजपा की दहलीज पर लग चुकी.. बड़ा दिल कहें या बड़ी सोच या फिर दूरगामी रणनीति जिसके लिए इस विशेष भर्ती अभियान में भाजपा ने बूथ स्तर पर पार्टी की खिड़की से ज्यादा दरवाजे खोल दिए.. कांग्रेस ने भाजपा के किस अभियान की शायद ही कल्पना की होगी.. जब कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष रहते विधानसभा चुनाव के समय ही न्यू ज्वाइनिंग की एक अलग टोली बनाकर इसकी जिम्मेदारी नरोत्तम मिश्रा को सौंप दी गई थी..

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के मध्य प्रदेश में प्रवेश करने के समय तो खुद कमलनाथ की अपने पुत्र नकुलनाथ के साथ के भाजपा में शामिल होने की चर्चा जोर पकड़ चुकी थी..लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस का माहौल बिगाड़ना और बीजेपी का बनाने की इसे जरूरत माना जाए या फिर विधानसभा का चुनाव हारने के बाद उपयोगी नरोत्तम को भाजपा में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए चुनावी राजनीति की मुख्य धारा से जोड़े रखने की दूरगामी रणनीति की एक अहम कड़ी बनाया गया.. विशेष भर्ती अभियान बिना नरोत्तम को जिम्मेदारी दिए बिना भी हो सकता था.. जिन्हें पहले भी शिवराज और विष्णु की भाजपा में चुनाव के समय भी बड़ी जिम्मेदारी दी गई..

कैलाश अब मोहन सरकार में मंत्री बन चुके हैं तो नरोत्तम को फिर भी संगठन से जोड़ कर रखा गया है.. बदलती बीजेपी के अंदर पुरानी और नई पीढ़ी हो या फिर सहयोगी नेताओं के बीच नरोत्तम की स्वीकार्यता को अमित शाह ने भी खूब परखा और समझा भी होगा.. पार्टी नेतृत्व ने उन्हें जो भी टास्क दिए उसे अंजाम तक पहुंचने में नरोत्तम ने कोई कसर नहीं छोड़ी.. दूसरे राज्यों की राजनीति को एडजस्टमेंट मानकर छोड़ दिया जाए तो नरोत्तम ने शिवराज के मुख्यमंत्री रहते सदन के अंदर और बाहर अपनी उपयोगिता को हमेशा साबित किया..

15 महीने की कमलनाथ सरकार के समय चर्चित ऑपरेशन लोटस की एक निर्णायक कड़ी बनकर सुर्खियों में रहने वाले नरोत्तम मिश्रा जब खुद विधानसभा का चुनाव दतिया से हार गए.. तो भी भोपाल स्थित उनके आवास पर मेल मुलाकात ने उनकी धमक और पहुंच का एहसास कराया.. दावेदारी तो लोकसभा चुनाव लड़ने के साथ राज्यसभा के लिए भी खूब चर्चा का विषय बनी.. चुनाव हारने के बाद ट्रेन से भोपाल रवाना होते समय मैं फिर लौट कर आऊंगा के उस शायराना अंदाज पर गौर किया जाए तो नरोत्तम को नई पारी के लिए सही समय पर एक सही भूमिका की दरकार बनी हुई है..

तब उन्होंने अपने समर्थकों को संदेश दिया था कि जल्द फिर अच्छे दिन आएंगे.. नरोत्तम बोले थे..इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पर बेखबर..तेरी जीत से ज्यादा चर्चे मेरी हार के हैं.. उसके बाद भी कई मौके निकल गए.. राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य के गुना से अब लोकसभा चुनाव लड़ने और जीतने की स्थिति में बचे हुए कार्यकाल के दावेदारों में नरोत्तम भी शामिल है..

भाजपा में न्यू ज्वाइनिंग की नई स्क्रिप्ट को मूर्त रूप देने में जुटे नरोत्तम ने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के साथ संगठन महामंत्री को भरोसे में लेकर भाजपा के नाम एक नया कीर्तिमान रचने में कोई कसर नहीं छोड़ी.. इस अभियान की दूसरी कड़ियां चाहे वह टोली के सदस्य, जिला अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष और अनुभवी वरिष्ठ नेता ही क्यों ना हो लेकिन इन आयातित नेताओं के लिए नरोत्तम को भरोसे में लेना जरुरी हो गया..

भाजपा की स्थापना दिवस 6 अप्रैल को इस नई ज्वाइनिंग टोली के दावे पर यदि यकीन किया जाए तो 1लाख 26 हजार से ज्यादा नेता कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए.. तो पिछले 3 महीने में यह आंकड़ा 2 लाख58 हजार 525 पहुंच चुका है.. खास बात इस सूची में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के 90 फ़ीसदी कार्यकर्ता है.. जबकि सामाजिक संगठनों से लेकर अधिकारी ,कर्मचारी भी इसका हिस्सा बने.. यह सब कुछ पीएम मोदी के व्यक्तित्व भाजपा की डबल इंजन सरकार के विकास के एजेंडे के साथ पार्टी के राष्ट्रवाद और सनातन की सियासत के साथ राम मंदिर से जोड़ा गया..

पंडित नरोत्तम मिश्रा के दावे पर यदि यकीन किया जाए तो अभी यह संख्या न सिर्फ बढ़ेगी बल्कि राजनेताओं का भाजपा प्रेम ..मध्य प्रदेश में कांग्रेस को अलग थलग कर उसकी भूमिका को बहुत सीमित करके रख देगा.. अभी तक सबसे बड़ा चेहरा यदि कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को माना जा रहा जिनकी मुलाकात दिल्ली में जेपी नड्डा और अमित शाह से भी हुई.. तो मध्य प्रदेश की 29वीं सीट छिंदवाड़ा में कमल खिलाने के लिए वर्तमान विधायक कमलेश शाह और पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना की एंट्री के अलावा मालवा महाकौशल से लेकर दूसरे क्षेत्र के कई महापौर ,परिषद से जुड़े सदस्य पूर्व विधायक और पूर्व सांसद इसका हिस्सा बन चुके हैं..

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें