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­कहीं देर ना हो जाए…

भोपाल। “दुविधा में दोनों गये मिले ना राम रहीम” की तर्ज पर चुनाव लड़ने के विकल्प सीमित होते जा रहे हैं। भाजपा के जहां 94 प्रत्याशी घोषित होने ही बचे हैं वहीं कांग्रेस ने लगभग 140 सीटों पर प्रत्याशी तय कर लिए हैं और 90 सीटों पर कसरत कर रही है। यहां तक की बसपा और आप पार्टी भी अपने अधिकांश प्रत्याशी तय कर चुकी है। ऐसे में जो लोग अपने दल से टिकट न मिलने पर दल बदलकर चुनाव लड़ने की योजना पर काम कर रहे हैं उन्हें जल्दी निर्णय लेना चाहिए क्योंकि कुछ लोगों को यही उत्तर मिल चुका है कि अब देर हो चुकी है। पहले आते तो आपको टिकट जरूर देते
दरअसल, राजनीति में टाइमिंग का बहुत बड़ा महत्व है।

यदि निर्णय लेने में देरी की तो फिर पछताना भी पढ़ सकता है क्योंकि चुनावी तैयारी को लंबा वक्त चाहिए और प्रमुख राजनीतिक दल काफी पहले से अपनी रणनीति बना लेते हैं और उसी के अनुसार जमावट करते हैं और ऐन वक्त पर बहुत कम सीटों पर बदलाव करना संभव होता है और इसी स्थिति में अब राजनीतिक दल पहुंच गए हैं। भाजपा के अधिकांश टिकट घोषित हो चुके हैं। केवल 94 सीटों पर प्रत्याशी घोषित होना बाकी है और अनुमान लगाया जा रहा है कि जिन 66 वर्तमान विधायकों के टिकट अभी होल्ड पर है उनमें से लगभग 40 विधायकों के टिकट कट सकते हैं। जिनके लिए एक तरफ पार्टी टिकट घोषित करने के पहले डैमेज कंट्रोल की व्यवस्था कर रही है और दूसरी तरफ इनके लिए अन्य किसी दल में विकल्प भी कम बचे हैं अभी भी सपा और जयस कहीं कहीं बसपा और आप भी टिकट दे सकती है हालांकि भाजपा से टिकट कटने के बाद कांग्रेस पहली पसंद होती है लेकिन कांग्रेस में अब अधिकांश सीटों पर प्रत्याशी तय हो चुके हैं और पितृ मोक्ष के बाद कभी भी सूची जारी हो सकती है। भाजपा से कांग्रेस में बहुत पहले आ चुके नेताओं को टिकट मिल भी सकता है लेकिन भाजपा की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस से टिकट मिलने की उम्मीद कम है।

कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस में अधिकांश टिकट तय हो चुके हैं। भाजपा को जहां केवल 94 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करना है वहीं कांग्रेस को सभी 230 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करना है। रणनीति के अनुसार ही दोनों दलों में काम चल रहा है। भाजपा टिकट घोषित होने के पहले डैमेज कंट्रोल में लगी हुई है क्योंकि जो भी टिकट काटना है वह अंतिम सूची में ही काटना है। वहीं कांग्रेस भाजपा की के प्रत्याशियों के खिलाफ जीत सकने वाले उम्मीदवारों की तलाश सूची रोके हुए कुछ लोगों को चुनाव लड़ने का इशारा कर चुकी है और वह अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय है।

पिछले कुछ वर्षों में दलबदल को जिस तरह से बढ़ावा मिला उसके कारण दोनों दलों को टिकट वितरण करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ रही है क्योंकि कौन, कब, कहां चला जाए कहा नहीं जा सकता लेकिन अब जाने वालों के लिए भी देर हो गई है और जो लोग अभी भी दल बदल का इरादा रखते हैं उन्हें जल्दी करना ना चाहिए क्योंकि फिर कहीं देर ना हो जाए।

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