भोपाल। मध्यप्रदेश में मिशन 23 फतह करने के लिए सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने जन आशीर्वाद यात्रा का मन से ही सही बना लिया.. पार्टी के अधिकृत ऐलान के साथ और दूसरे मोर्चों पर नई जमावट का इंतजार.. आचार संहिता लागू होने से पहले चुनावी माहौल बना इस बार बीजेपी नए प्लान के साथ एक नहीं पांच यात्राएं निकालने जा रही है.. कार्यकर्ताओं में करंट लाने और मतदाताओं का नए सिरे से भरोसा प्राप्त करने की इस कोशिश में नेतृत्व से जुड़े कुछ संदेश सामने आए तो क्लियरटी का अभाव अभी भी नजर आ रहा है..
चाहे फिर वह प्रदेश की विकास यात्रा पर निकले शिवराज की पांचवीं बार मामा को मुख्यमंत्री बनाए जाने की जनता के बीच शिवराज की मार्मिक अपील और कुछ दिन बाद उनके साथ 4 अन्य जन आशीर्वाद यात्रा का नया गणित.. संदेश सियासी फिर भी बहुत कुछ छुपा लेना पार्टी नेतृत्व की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.. या फिर वक्त का तकाजा जिसने रणनीति नए सिरे से बनाने को मजबूर किया.. फिर भी सवाल विरोधियों के आंख की किरकिरी और अपनों द्वारा की जा रही घेराबंदी की आशंका के चलते कमजोर शिवराज क्या मोदी शाह के बड़े मिशन 2024 लोकसभा चुनाव से पहले 2023 विधानसभा चुनाव की अपेक्षाओं पर खड़ा उतर पाएंगे.. संगठन और राष्ट्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप से सामने आ रही नई जमावट के बीच बेफिक्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों विकास यात्रा के जरिए कार्यकर्ता की नब्ज पर हाथ रखकर मतदाताओं के बीच नाराजगी को भाप लेने के साथ जनता की अपेक्षा समझने के लिए पूरा प्रदेश नाप लेना चाहते हैं..
पिछले एक माह में उन्होंने लाडली बहना योजना के मास्टर स्ट्रोक के साथ हर वर्ग समाज के लिए कुछ नई घोषणा और क्षेत्र विशेष के लिए सौगातो की झड़ी से माहौल काफी हद तक बदला है..तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की धमक ने पुरानी और नई पीढ़ी के नेताओं को एकजुट हो जाने का संदेश भी दे दिया है.. फिलहाल भाजपा में नेताओं की भरमार..अनुभवी नेतृत्व मैदान छोड़ने को तैयार नहीं तो युवा जुझारू नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने लिए टिकट की संभावनाएं तलाशने लगे.. सबसे मजबूत कैडर के लिए पहचाने जाने वाले मध्यप्रदेश में दूरदर्शी मुख्यमंत्री शिवराज की स्वीकार्यता, अनिवार्यता और उपयोगिता के बावजूद छत्रप और दिग्गज की संख्या भी कम नहीं.. अमित शाह, अश्वनी वैष्णव भूपेंद्र यादव के कमान संभालने से पहले भी शिवप्रकाश मुरलीधर राव अजय जामवाल की मैराथन बैठकों में कई दौर के चिंतन मंथन और भोपाल से लेकर दिल्ली तक लंबी माथा पच्ची के बाद इन प्रस्तावित जन आशीर्वाद यात्राओं का नेतृत्व जिन पांच नेताओं को सोपा गया.. उनमें शिवराज के बाद सभी चार को सीएम इन वेटिंग की श्रेणी में रखा जा सकता है.. ये सभी अपने क्षेत्र के दमदार कद्दावर पर लोकप्रिय नेता ..
लेकिन इन सभी का उपयोग संभवता उनके अपने प्रभाव वाले क्षेत्र से बाहर भी करने की मंशा पार्टी नेतृत्व रखता है.. समय सीमित इसलिए अकेले मुख्यमंत्री शिवराज का सभी 230 विधानसभा सीटों तक पहुंचाना अब दूर-दूर तक संभव नजर नहीं आ रहा.. यह भी एक वजह होगी जो जन आशीर्वाद यात्रा का चेहरा शिवराज समेत नेताओं को कमान सौंपने का फैसला लिया गया.. सांसद और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा पर पार्टी प्रमुख के नाते बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा रही.. सवाल क्या विष्णु दत्त अपने कार्यक्षेत्र बुंदेलखंड या अपने गृह क्षेत्र मुरैना ग्वालियर चंबल के साथ राजधानी भोपाल के आसपास भी यात्रा से जुड़ेंगे.. या मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर शिवराज और विष्णु दत्त दूसरी यात्राओं में सहभागिता करेंगे.. या जिन क्षेत्रों से भाजपा को नेतृत्वकर्ता जन आशीर्वाद यात्रा के लिए नहीं मिले अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में ऐसे क्षेत्र सबसे ऊपर होंगे..
सांसद और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया यूं तो ग्वालियर चंबल का प्रतिनिधित्व करते पार्टी अपने पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र सिंह को क्या पूरे प्रदेश में घूमा पाएगी तो ग्लैमरस चेहरा युवाओं की पसंद ज्योतिरादित्य को क्या सिंधिया घराने के प्रभाव वाले और दूसरे क्षेत्रों तक ले जाया जाएगा.. या फिर या फिर कांग्रेस दिग्गजों के गढ़ में भाजपा सिंधिया को सामने रखकर चुनावी माहौल बनाएगी.. राष्ट्रीय महासचिव की लगातार चौथी पारी का दायित्व निभा रहे कैलाश विजयवर्गीय को क्या उनके प्रभाव वाले मालवा निमाड़ से बाहर भी भेजा जाएगा .. इस दौरान शिव विष्णु तो जोड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र सिंह, शिवराज और सिंधिया, सिंधिया और विजयवर्गीय की जोड़ी भी कार्यकर्ताओं में जोश भर सकती है.. पार्टी ने चुनौतियों का खुलासा न करते हुए यात्रा के स्वरूप उसके मकसद का अधिकृत ब्योरा अभी तक मीडिया से साझा नहीं किया है .. मंत्री भूपेंद्र सिंह, पर्यटन निगम के अध्यक्ष विनोद गोटिया, गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष आशुतोष तिवारी ओम प्रकाश धुर्वे जैसे नेताओं ने जरूर जन आशीर्वाद यात्रा का रूट और उससे जुड़ी रिपोर्ट पार्टी नेतृत्व को सौंप दी है… शिवराज विष्णु दत्त नरेंद्र सिंह ज्योतिरादित्य, कैलाश विजयवर्गीय इन सभी के जनाधार, कार्यकर्ताओं पर पकड़, जनता के बीच भरोसा और केंद्रीय नेतृत्व के इन पर वरद हस्त पर बहस की जा सकती है..
सवाल यह भी खड़ा किया जा सकता है क्या शिवराज के बाद की भाजपा का नेतृत्व जन आशीर्वाद यात्रा का नेतृत्व करने जा रहे इन नेतृत्वकर्ता से निकलकर क्या भविष्य में सामने आ सकता है.. संभवत पार्टी की रणनीति जिनकी पहुंच शिवराज तक नहीं , जो सत्ता से नाराज और जो विष्णु दत्त के भरोसे की टीम में शामिल नहीं हो पाए उन सभी के सामने और दूसरे चेहरे ला उन्हें काम पर लगाने की रणनीति के तहत पार्टी की जीत सुनिश्चित करना मानी जा रही.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कार्यकर्ताओं के बीच उम्मीदवार से ज्यादा कमल चुनाव चिन्ह पर वोट डालने का आग्रह कर चुके हैं.. तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी इशारों इशारों में बहुत कुछ सख्त संदेश पार्टी की बैठकों में तो बाहर कार्यकर्ताओं को दे चुके.. सवाल पांच यात्राएं कहीं आपसी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनकर तो नहीं रह जाएंगी.. सत्ता और संगठन की दिलचस्पी यात्रा विशेष के नेतृत्व कर्ता तक सिमट कर रह जाने की गुंजाइश क्या खत्म हो जाएगी.. मीडिया के मोर्चे के साथ पार्टी प्रबंधन, प्रचार प्रसार और दूसरे सहयोग को लेकर क्या सभी पांच को संतुष्ट कर पाएगी.. पार्टी का लक्ष्य यदि 230 विधानसभा सीट तक इस यात्रा के जरिए पहुचने का है.. तो क्या इसके लिए उप यात्राएं भी निकाली जाएगी.. आदिवासी, दलित आरक्षित सीटों पर आखिर भाजपा की रणनीति क्या होगी.. क्या फग्गन सिंह कुलस्ते, लाल सिंह आर्य ,राजेंद्र शुक्ला, वीरेंद्र खटीक, नरोत्तम मिश्रा ,गोपाल भार्गव, प्रहलाद पटेल जैसे नेताओं को भी क्या इन जनआशीर्वाद यात्रा का मंच नसीब होगा..
5 सितंबर से 25 सितंबर के बीच इन संभावित जन आशीर्वाद यात्रा में क्या राष्ट्रीय नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करने के लिए जेपी नड्डा ,अमित शाह नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और दूसरे नेताओं को शामिल किया जा सकता है.. 25 सितंबर को यात्रा के भोपाल में समापन पर जंबूरी मैदान का पुराना दृश्य जरूर बन सकता है.. जिसमें संभवत मोदी शाह शामिल हों.. कड़वा सच फिलहाल यात्रा के लिए पार्टी महाकौशल से लेकर विंध्य का कोई नेता सामने नहीं ला पाई.. महाकौशल जहां से कांग्रेस के सीएम इन वेटिंग कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सीधे मुख्यमंत्री के सबसे बड़े दावेदार बनकर सामने है.. तो विंध्य क्षेत्र जहां 2018 में भाजपा को निर्णायक बढ़त मिली और कांग्रेस बड़ा गच्चा खा गई थी.. चेहरा पार्टी नेतृत्व के पास नजर नहीं आ रहा..नाम बड़ा हमेशा की तरह चुनाव में शिवराज की ढाल साबित होते रहे केंद्रीय मंत्री बदलती भूमिका में एक बार फिर नरेंद्र सिंह तोमर एक यात्रा का नेतृत्व करने जा रहे हैं.. शिवराज के बाद की भाजपा के लिए नरेंद्र सिंह को इस यात्रा के बाद चुनाव में अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए एक मौका और मिल सकता है.. लंबी पारी खेलने के लिए मैदान में पहले से ही मोर्चा संभाले हुए प्रदेश अध्यक्ष और सांसद विष्णु दत्त शर्मा के लिए शुभंकर साबित होने का एक बड़ा मौका.. दूसरे चार दिग्गज नेताओं के बीच विष्णु दत्त की यात्रा उन्हें एक नई ताकत तो नई राजनीतिक दशा भी दे सकती है.. कार्यकर्ताओं में करंट लाने की क्षमता रखने वाले फिलहाल लंबे समय से संगठन तक सीमित होकर रह गए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जो फिलहाल पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव गृह प्रदेश में अपनी जड़ें और मजबूत कर सकते ..
और कांग्रेस की आंख की सबसे बड़ी किरकिरी जनता के बीच खासे लोकप्रिय भाजपा जिनमें अपना भविष्य भी देखती केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्हें सीएम इन वेटिंग के तौर पर पिछली बार कांग्रेस ने चुनाव अभियान की कमान सौंपी थी.. कांग्रेस से मोहभंग हो जाने के बाद भाजपा में सिंधिया के लिए मौका कि वो उपयोगिता के साथ अपनी स्वीकार्यता पर भी नेतृत्व के अलावा कार्यकर्ता और जनता की मोहर लगवाएं.. ये सभी मुख्यमंत्री शिवराज के साथ अलग-अलग भाजपा के रथ पर सवार होने वाले हैं.. प्रदेश नेतृत्व ने लंबी जद्दोजहद के बाद इन 5 नाम पर सहमति बनाई होगी.. तो राष्ट्रीय नेतृत्व ने बहुत सोच समझकर मोहर लगाते हुए इन्हें जन आशीर्वाद यात्रा का चेहरा बनाया होगा.. इन महारथियों के अलावा कई चुनाव जीतने वाले दूसरे विधायक हो या संसद के अंदर बतौर प्रखर वक्ता अपनी पहचान और भी कई लोगों ने बनाई होगी.. लेकिन पंच निष्ठा वाली भाजपा पार्टी के पंच परमेश्वर बनकर सामने आए ये 5 क्या दूसरों पर भारी साबित हुए.. सवाल क्या यह नेता अपनी जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए जहां से गुजरेंगे वहां पुरानी और नई पीढ़ी के बीच तक हट खत्म कर देंगे.. टिकट के दावेदारों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी या इस दौरान चेहरा चयन कर लिया जाएगा.. यात्रा का फीडबैक और टिकट के दावेदारों का प्रदर्शन उनकी सिफारिश पर क्या टिकट चयन का आधार बनेगा..
कांग्रेस के अंदर से उठी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को ध्यान में रखते हुए भाजपा यदि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को भी जन आशीर्वाद यात्रा का चेहरा बनाती तो महाकौशल ना सही आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की रणनीति और बेहतर कारगर साबित हो सकती थी.. पिछड़ा वर्ग के शिवराज से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तो ठाकुर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के साथ पार्टी का बड़ा ब्राह्मण चेहरा विष्णु दत्त शर्मा, अनुसूचित जाति, जनजाति से आगे कैलाश वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं.. सामाजिक संतुलन के मोर्चे पर दलित समाज का कोई चेहरा जन आशीर्वाद यात्रा का नेतृत्व नहीं कर रहा.. सिर्फ आदिवासी ही नहीं अनुसूचित जाति का नेतृत्व सामने लाने में या तो पार्टी ने दिलचस्पी नहीं ली या फिर संकट भरोसे का खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.. इसी तरह जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए जनता के बीच किसी महिला नेतृत्व की कमी क्या आधी आबादी की उपेक्षा पर भी सवाल खड़े किए जा सकते हैं.. बदलती बीजेपी के अंदर मध्यप्रदेश में भी अनुभवी के साथ युवा विष्णु दत्त और ज्योतिरादित्य जरूर जनता के बीच भाजपा के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हुए देखे जा सकते.. बड़ा सवाल इन पांच जन आशीर्वाद यात्रा से कार्यकर्ता द्वंद से बाहर निकलेगा या फिर भ्रम उसे नए सिरे से सोने को मजबूर करेगा.. संयुक्त नेतृत्व और समन्वय की सियासत की यह रणनीति पांच नेताओं को सामने रखकर क्या कार्यकर्ताओं में करंट ला पाएगी..या फिर क्रिस्टल क्लियरटी की कमी पार्टी की समस्याओं में इजाफा करेगी..
जन आशीर्वाद यात्रा का नेतृत्व करने वाले नेताओं की पार्टी के अंदर एक अलग पहचान से इनकार नहीं किया जा सकता.. तभी तो कई और दिग्गजों को नजरअंदाज कर इन चेहरों को यात्रा की कमान सौंप गई है.. लेकिन कार्यकर्ताओं का भरोसा, जनता के बीच उनकी पकड़ और लोकप्रियता का आकलन जरूर यात्रा से बनने वाला माहौल बताएगा.. भीड़ के मापदंड पर किसमें कितना दम, विरोधियों पर कौन भारी, प्रबंधन के मोर्चे पर कौन कितना कारगर ही नहीं चुनाव बाद भविष्य की भाजपा के लिए कौन कितना उपयोगी.. शायद यह संदेश भी ना चाहते हुए व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा के चलते इन यात्राओं से निकाल कर सामने आए.. हालांकि पार्टी का मकसद और रणनीति साफ है कि घर बैठे कार्यकर्ता को बाहर निकाला जाए नाराज नेता को भरोसे में लिया जाए.. सब कुछ भूल कर चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी जाए.. फिर भी चुनौतियों से इनकार नहीं किया जा सकता.. समस्या सिर्फ पिछला चुनाव हार चुकी सीटों पर ही नहीं है.. चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त लिस्ट है.. जहां वर्तमान विधायक और मंत्री वहां एंटी इनकमेंसी, सर्वे रिपोर्ट में जिन 50 से अधिक विधायकों के टिकट काटने का दबाव वहां यात्रा क्या माहौल बनाएगी..
जहां विरासत की राजनीति को नेतृत्व ने ठेंगा दिखा दिया करीब 15 से ज्यादा सीटों पर एक अलग समस्या, जब आदिवासी नेतृत्व और मुख्यमंत्री की मांग उछाली जा रही तब अनुसूचित जनजाति के अलावा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता.. अमित शाह का माइक्रोमैनेजमेंट और शिवराज की सोशल इंजीनियरिंग के बावजूद लोधी बाहुल्य 25 विशेष विधानसभा क्षेत्र पर आखिर भाजपा की रणनीति क्या होगी.. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्रीउमा भारती ही नहीं केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को भी इन यात्रा का सहभागी नहीं बनाया गया.. बड़ा सवाल इन विशेष सीटों पर आखिर जन आशीर्वाद यात्रा की सफलता के लिए रणनीति क्या होगी.. लाख टके का सवाल क्या संसद सत्र के खत्म होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के साथ विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश को दिल्ली द्वारा कोई नया संदेश दिया जाएगा..