राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव…नब्ज पर हाथ…?

Image Source: ANI

भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के तीसरे कार्यकाल की पहली ‘अग्नि परीक्षा’ नवम्बर माह में दो प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र व झारखण्ड के विधान सभा चुनावों के साथ होने जा रही है। पूरे देश पर ‘चक्रवर्ती’ सम्राट के सुनहरें सपने देखने वाली, भारतीय जनता पार्टी फिलहाल तो काफी बढ़- चढ़कर नित नए दावे कर रही है, किंतु साथ ही वह यह भी जानती है कि उसकी ‘दुखती नब्ज’ कहां है और उसका इलाज किसके पास है? मोदी जी की इस अग्नि परीक्षा का फैसला नवम्बर में ही होने वाला है, इस अग्नि परीक्षा में खरी उतरने के बाद भारतीय जनता पार्टी निकट भविष्य में चुनाव होने वाले राज्यों के लिए अपनी रणनीति तैयार करेगी और तभी मोदी जी के व्यक्तित्व का असर भी नजर आएगा।

वैसे राजनीतिक पण्डित पिछले लोकसभा चुनावों को ही मोदी जी की लोकप्रियता का ‘थर्मामीटर’ मानकर चल रहे है, जिसमें यह स्पष्ट हो गया कि पहली बार प्रधानमंत्री बनते समय जो उन्हें लोकप्रियता के आधार पर बहुमत मिला था, वह दूसरे और तीसरे चुनाव में नही मिल पाया, अब जबकि वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने है, तब उन्हें दूसरे छोटे-मोटे दलों की बैसाखियों का सहारा लेना पड़ा। भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नही मिल पाया, जबकि वे नेहरू व इंदिरा जी से अपनी तुलना करते कई बार नजर आए है, आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने करीब सत्रह साल प्रधानमंत्री के रूप में काम किया था और उनके बाद उनकी बेटी इंदिरा जी ने भी करीब-करीब इतने ही समय देश पर राज किया, दोनों की मौत प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए ही हुई, नेहरू जी को ‘ब्रेन हेमरेज’ हुआ और इंदिरा जी की हत्या हुई, किंतु इतना अर्सा गुजर जाने के बाद आज भी इन दोनों के शासनकाल को याद किया जाता है।

अब हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी भी वही सपना देख रहे है, जबकि वे जानते है कि अब न तो नेहरू-इंदिरा के समय की राजनीति रही और न ही नेता के प्रति उतना समर्पण भाव, आज की राजनीति से ‘जनसेवा’ का पूरी तरह लोप हो चुका है और आज की राजनीति का एकमात्र लक्ष्य ‘सत्ता’ और ‘कुर्सी’ हो गया है, इस स्थिति के लिए अकेली राजनीति ही दोषी नही है, इसके लिए मतदाता भी जिम्मेदार है, जिसमें आज न देशभक्ति, न सेवा का भाव शेष रहा है और न ही राष्ट्रप्रेम का कोई अंश, कहने का तात्पर्य यह कि आज की राजनीति-राजनेता और उन्हें नेता बनाने वाली जनता भी भरोसे के लायक नही रही है,

अर्थात् आज हर कहीं राजनीति ही हावी हो गई है, फिर वह चाहे मतदाता का व्यक्त्गित जीवन ही क्यों न हो? अर्थात् ऊपर से नीचे तक ‘बाड़ा बिगडा’ हुआ है, आज देश का आम मतदाता अपनी समस्या से जूझ रहा है, तो सत्ता की कुर्सी पर विराजित राजनेता अपने नशे में झूम रहा है और इस प्रकार किसी को किसी की भी चिंता नही है, यह है आज की राजनीति, देश में हर कहीं भूख, बैरोजगारी, उत्पीड़न, अत्याचार का नजारा नजर आ रहा है, फिर भी देश भगवान भरोसे चल ही रहा है, वह भगवान चाहे राजनेता हो या वास्तविक नीली छत्तरीवाला ईश्वर। इसीलिए विश्व में सबसे ज्यादा भगवान पूजक भारत में ही है और राम-कृष्ण ने भी भारत में ही अवतार लेना उचित समझा।

इस प्रकार कुल मिलाकर जिस देश को अतीत में ‘विश्वगुरू’ का दर्जा प्राप्त था, आज वह कई देशों का शिष्य बनने को मजबूर है और आज यही समय की बलिहारी है, इसीलिए हम धर्मावलम्बी हर जुल्म व तकलीफ को ‘कलियुग’ के साये के भरोसे छोड़कर आत्म संतुष्टि प्राप्त कर लेते है। इस प्रकार इसी राजनीतिक दौर की चादर में महाराष्ट्रª और झारखण्ड के चुनाव परिणाम भी छिपे है, जिन्हें भाजपा अपने ‘चक्रवर्ती’ होने का हिस्सा मान रही है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें