मंगल पाण्डेय चर्बी युक्त कारतूसों के विरुद्ध थे। उन्हें यह भली-भांति पत्ता था कि ब्रिटिश अधिकारी भारतीय हिन्दू सैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों में भेदभाव करते थे। इससे परेशान होकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से लड़ने का बीड़ा उठाया था। और भारत के एक वीर पुत्र ने स्वाधीनता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। वीर मंगल पाण्डेय के पवित्र प्राणहव्य को पाकर स्वातंत्र्य यज्ञ की लपटें भड़क उठीं।
8 अप्रैल – मंगल पाण्डेय बलिदान दिवस
भारत की समृद्धता को देखकर ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार, चतुर व्यापारी भारत में आए तो देश में चल रही राजा- महाराजाओं के आपसी फूट ने उनमें भारत पर राज करने की इच्छा पैदा की। अंग्रेजों ने इस इच्छा की पूर्ति हेतु हर हथकंडे अपनाए। देश को अपनी मुट्ठी में कर भारत की दासता को लंबा बनाया।
भारतीयों पर कठोरं जुल्म ढाए। ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज्य हड़प और ईसाई मिशनरियों द्वारा जबरन धर्मान्तरण आदि की नीति ने भारतीयों के मन में शीघ्र ही ब्रिटिश शासकों के प्रति नफरत पैदा कर दी। और सन 1757 ईस्वी से ब्रिटिश के गुलाम बने भारत में सौ वर्षों बाद ही इस दासता से मुक्ति के लिए सामूहिक संघर्ष करने की स्थितियां बनने लगीं।
सन् 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को जन-जन का मुक्ति संग्राम बनाने के लिए तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता सेनानियों ने बड़े ही व्यापक पैमाने पर तैयारी की थी। इस समवेत मुक्ति संग्राम को आरम्भ करने की तिथि भी इसके रणनीतिकारों द्वारा 31 मई 1857 निर्धारित की गई थी। लेकिन इस तिथि से दो माह पूर्व ही गंगा की उर्वर भूमि में पड़ा क्रान्ति बीज फूट पड़ा।
और 29 मार्च 1857 को कलकता के बैरकपुर छावनी में इस संग्राम के अग्रणी आगरा-अवध प्रान्त वर्तमान उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले अब बलिया जिला की बलिया तहसील के नगवा गांव निवासी अंग्रेजी फौज की 34 नम्बर देशी सेना की 39वीं पलटन के 1446 नम्बर सिपाही मंगल पाण्डेय ने ब्रिटिश सेना के दो अधिकारियों मि. बॉफ और मि. ह्यूसन को मौत के घाट उतार कर स्वाधीनता की बलिवेदी पर अपना स्थान आरक्षित कर लिया।
इस आरोप में अंग्रेजी सरकार ने 6 अप्रैल 1857 को न्यायालय में दिए गए फैसले के अनुसार 18 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दिए जाने की घोषणा की। लेकिन मंगल पाण्डेय के डर से 8 अप्रैल 1957 को ही आंग्ल शासकों ने उन्हें फ़ांसी पर चढा दिया। जिससे मंगल पाण्डेय भारत के प्रथम क्रांतिकारी, प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी और स्वाधीनता की वेदी पर अपनी आहुति देने वाले प्रथम बलिदानी के रूप में विख्यात हो गए। मात्र 30 वर्षों की उम्र में उन्होंने अपने जीवन को देश के नाम बलिदान कर दिया था।
भारत में प्रथम बार मंगल पाण्डेय के नाम के पूर्व बलिदानी अर्थात शहीद शब्द का प्रयोग किया गया। इस घटना का दूसरा असर यह हुआ कि मंगल पाण्डेय के द्वारा शुरू किया अंग्रेजों के विरुद्ध यह विद्रोह शीघ्र ही सम्पूर्ण देश में जंगल की आग की भांति फ़ैल गया। इस आग को अंग्रेजों ने बुझाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन मंगल पाण्डेय की बलिदान की कहानी के प्रशस्तीकरण से देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर यह आग भड़क चुकी थी, जिसके कारण 1947 में यह देश छोड़कर उन्हें भागना पड़ा।
महान क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को आगरा व अवध के नाम से प्रसिद्ध तत्कालीन संयुक्त प्रान्त वर्तमान उत्तरप्रदेश के बलिया जिले में स्थित नगवा गांव के एक सामान्य परंतु प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पाण्डेय सन 1849 में 22 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए। मंगल पाण्डेय बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना में एक सिपाही थे।
वे सामान्य रूप में अपनी सेना की सेवा में कर्तव्यनिष्ठ थे। वे अति महत्वकांक्षी व्यक्ति थे। वे अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा व लगन से करते थे। उनकी इच्छा भविष्य में एक बड़ा कार्य करने की थी। लेकिन जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में एनफील्ड पी.53 राइफल में नई कारतूसों का प्रयोग शुरू हुआ तो मामला बिगड़ गया।
इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पूर्व मुंह से खोलना पड़ता था। इस बीच भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में यह बात घर कर गई कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने को तुले हुए हैं, क्योंकि यह हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए क्रमशः धर्मभ्रष्ट करने वाला और नापाक था।
फलस्वरूप भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना बलवती होने लगी। जिसके कारण समवेत मुक्ति संग्राम को आरम्भ करने के लिए निर्धारित तिथि 31 मई 1857 के पूर्व ही 29 मार्च 1857 को भारतीय सैनिक मंगल पाण्डेय ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला कर दिया। और दो ब्रिटिश अधिकारियों को मार गिराया।
वह पहला अवसर था, जब किसी भारतीय ने ब्रिटिश अधिकारी पर हमला किया था। हमले के कुछ समय बाद ही उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और कुछ दिन बाद उन्हें फांसी दे दी गई, लेकिन फांसी देने के बाद भी ब्रिटिश अधिकारी उनके पार्थिव शरीर के पास जाने से भी डर रहे थे।
इसी कारण भारत में मंगल पाण्डेय आज भी एक महान क्रांतिकारी के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने ब्रिटिश कानून का विरोध किया। मंगल पाण्डेय चर्बी युक्त कारतूसों के विरुद्ध थे। उन्हें यह भली-भांति पत्ता था कि ब्रिटिश अधिकारी भारतीय हिन्दू सैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों में भेदभाव करते थे। इससे परेशान होकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से लड़ने का बीड़ा उठाया था। और भारत के एक वीर पुत्र ने स्वाधीनता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
वीर मंगल पाण्डेय के पवित्र प्राणहव्य को पाकर स्वातंत्र्य यज्ञ की लपटें भड़क उठीं। क्रांति की ये लपलपाती हुई लपटें अंग्रेजों को लील जाने के लिए चारों ओर फैलने लगीं। मंगल पाण्डेय द्वारा सुलगाई गई स्वाधीनता संग्राम की यह ज्वाला अंग्रेजों के लाख प्रयासों के बाद भी नहीं बुझी। इसके ठीक एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत हो गई। ओर गुर्जर धनसिंह कोतवाल इसके जनक और नायक के रूप में सामने आए।
और देखते ही देखते यह संग्राम पूरे उत्तरी भारत में फैल गया। जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है, जितना वे समझ रहे थे। मंगल पाण्डेय ने स्वाधीनता संग्राम की ज्वाला भारत में धधकाई थी, जिसने बाद में एक भयंकर रूप धारण कर लिया। और अंत में भारतीयों से हारकर अंग्रेजों को भारत छोड़ भागना ही पड़ा।